नई दिल्ली: पुलवामा की घटना एक बड़ी चूक थी. ये चूक किसकी थी? इसकी जांच क्यों नहीं कराई जा रही है? हम तो कह रहे हैं कि ये चूक ही नहीं, बहुत बड़ी साज़िश भी है. सरकार को चुनाव की घोषणा से पहले इसकी जांच के आदेश देने चाहिए, नहीं तो फिर कुछ नहीं होने वाला. सब भूल जाएंगे. सीमा पर जवान ऐसे ही मरते रहेंगे." 14 फ़रवरी को सीआरपीएफ़ के काफ़िले पर हुए चरमपंथी हमले में मारे गए अजीत कुमार की पत्नी ये बातें काफ़ी ग़ुस्से में बताती हैं और फिर उनकी आँखों से आँसू टपकने लगते हैं.

हालांकि आज ही भारत प्रशासित कश्मीर में त्राल इलाके के पिंगलिना गांव में सुरक्षाबलों और चरमपंथियों के बीच मुठभेड़ में तीन चरमपं​थी मारे गए हैं, जिसके बाद भारतीय सेना ने कहा है कि पुलवामा हमले के मुख्य साजिशकर्ता मुदस्सिर अहमद ख़ान भी मारे गए चरमपंथियों में शामिल है.

लेकिन अजीत कुमार की पत्नी को इस बात का भी दुख है कि पुलवामा घटना के बाद हुई एअर स्ट्राइक की हर जगह चर्चा हो रही है जबकि पुलवामा में जवानों के मारे जाने का जैसे कोई ग़म ही न हो.

उन्नाव में कोतवाली क्षेत्र के लोकनगर मोहल्ले के रहने वाले अजीत कुमार आज़ाद सीआरपीएफ बटालियन 115 में तैनात थे.

14 फ़रवरी को वो भी उस काफ़िले में शामिल थे, जिस पर चरमपंथी हमला हुआ था. एक दिन पहले ही उनकी अपने परिवार वालों से बात हुई थी और तब उन्होंने बताया था कि बटालियन सुरक्षित जगह भेजी जा रही है.

अजीत कुमार की मां राजवती देवी सवाल करती हैं कि आख़िर एअर स्ट्राइक की घटना को राजनीति से क्यों जोड़ा जा रहा है?

वो कहती हैं, "जंगल में कहीं जाकर आप बम फ़ोड़ आए, जिसे न किसी ने देखा और न ही उसके बारे में कोई पुख़्ता सबूत हैं, उसे इतना प्रचारित किया जा रहा है. इतने जवान उससे पहले मर गए और उसके बाद भी मारे जा रहे हैं, उसकी कोई चर्चा नहीं. हम रोज़ टीवी में देख रहे हैं कि एअर स्ट्राइक का फ़ोटो लगाकर, नेता लोग भाषण देकर अपनी बहादुरी दिखा रहे हैं. कहा जा रहा है कि वहां इतने लोग मर गए. अरे भाई, मर गए होते तो वहां कुछ न कुछ तो मिलता ही."

अजीत कुमार की मां जब ये बता रही होती हैं उसी समय उनकी पत्नी मीना गौतम रोते हुए बेहद ग़ुस्से में कहती हैं, "कहीं कोई नहीं मरा है. जो मरे थे उनके शव आए हैं, वहां कौन मरा है, किसने देखा है. सब फ़र्ज़ी है."

अजीत कुमार के परिवार में चार भाइयों के अलावा उनके माता-पिता, पत्नी और दो छोटी बेटियां हैं. पत्नी मीना देवी को राज्य सरकार ने सहायक क्लर्क की नौकरी दी है.

परिवार वालों को मुआवज़ा भी मिला है लेकिन इस बारे में बात करने पर वो बिलख उठती हैं, "हमारा तो सब कुछ छिन गया है. वो चाहते थे कि बेटियों को डॉक्टर बनाएंगे. इस मुआवज़े से हम क्या बना लेंगे डॉक्टर? लेकिन ये हमारी समस्या है. हम तो चाहते हैं कि पुलवामा में जो ग़लती हुई है, वो लोगों के सामने आए ताकि दोबारा वो ग़लती न हो. फिर से बिना किसी वजह के जवान न मारे जाएं. आज हमारे पति दुश्मनों से लड़ते हुए मारे जाते तो हमें कितना गर्व होता, लेकिन…."

सीआरपीएफ़ की 115 बटालियन के सिपाही अजीत कुमार अपने पांच भाइयों में सबसे बड़े थे. उनके एक और भाई सेना में हैं जबकि एक भाई हाल ही में पुलिस कांस्टेबल हुए हैं.

इन लोगों का आरोप है कि उनकी बात कहीं नहीं सुनी जा रही है जबकि इस बारे में वो विभागीय अधिकारियों और मीडिया समेत हर जगह बता चुके हैं.