यह हैं अयोध्या मामले के मध्यस्थ
नई दिल्ली: सुप्रीम कोर्ट ने मध्यस्थता के जरिए अयोध्या में राम मंदिर केस का समाधान करने को कहा है. देश की सर्वोच्च अदालत ने दोनों पक्षों से बातचीत के जरिए केस का समाधान करने के लिए कुल तीन मध्यस्थ का पैनल नियुक्त किए हैं. जिनमें एक मध्यस्थ सर्वोच्च न्यायालय के पूर्व न्यायाधीश जस्टिस कलीफुल्ला हैं तो दूसरे वकील श्रीराम पंचू और मीडिएटर हैं, जबकि तीसरे मध्यस्थ आध्यात्मिक गुरु श्री-श्री रविशंकर हैं. इस पैनल की अध्यक्षता जस्टिस कलीफुल्ला करेंगे. सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि इस मध्यस्थता की कार्रवाई पूरी तरह से गोपनीय रखी जाएगी और इसकी मीडिया रिपोर्टिंग नहीं की जाएगी. कोर्ट ने पैनल को रिपोर्ट देने के लिए चार हफ्ते का वक्त दिया है. मध्यस्थता के लिए बातचीत फैजाबाद में होगी.
जस्टिस कलीफुल्ला स्वर्गीय जस्टिस फकीर मोहम्मद के बेटे हैं. अप्रैल 2012 में वह सुप्रीम कोर्ट में जज बने थे. 2016 में वह सुप्रीम कोर्ट से रिटायर हुए. सुप्रीम कोर्ट में जज बनने से पहले वहजम्मू-कश्मीर हाई कोर्ट में कार्यरत रहे. जहां वह कार्यवाहक मुख्य न्यायाधीश बने थे. पहली बार उन्होंने दो मार्च 2000 को न्यापालिका में बतौर जज कदम रखा, जब मद्रास हाईकोर्ट में स्थायी न्यायाधीश के तौर पर तैनाती मिली. जस्टिस कलीफुल्ला तमिलनाडु के शिवगंगा जिले के कराईकुडी के रहने वाले हैं. उनका जन्म 23 जुलाई 1951 को हुआ. 20 अगस्त 1975 से उन्होंने बतौर वकील प्रैक्टिस शुरू की थी. देश के पूर्व चीफ जस्टिस टीएस ठाकुर की उस पीठ का सदस्य रह चुके हैं, जिसने बीसीसीआई में सुधारों के लिए अहम आदेश जारी किए थे.
श्री श्री रविशंक धर्म और अध्यात्म के गुरु हैं. वे ऑर्ट ऑफ लिविंग फाउंडेशन के संस्थापक हैं. रविशंकर का जन्म तमिलनाडु में 13 मई 1956 को हुआ. उनके पिता का नाम वेंकट रत्न था जो भाषाविद थे. आदि शंकराचार्य से प्रेरणा लेते हुए पिता ने उनका नाम रविशंकर रखा. रविशंकर पहले महर्षि योगी के शिष्य थे. उन्होंने तब अपने नाम के आगे श्रीश्री लगाना शुरू किया, जब प्रख्यात सितार वादक रविशंकर ने आरोप लगाया था कि वे उनके नाम की प्रसिद्धि का लाभ उठा रहे हैं. 1982 में रविशंकर ने ऑर्ट ऑफ लिविंग फाउंडेशन की स्थापना की. सुदर्शन क्रिया ऑर्ट ऑफ लिविंग कोर्स का आधार है.
श्रीराम पंचू चेन्नई के रहने वाले हैं. वह मद्रास हाई कोर्ट के वकील होने के साथ मशहूर मध्यस्थ यानी मीडिएटर हैं. कई केस में बतौर मीडिएटर और आर्बिट्रेटर वह सुलह-समझौते करवा चुके हैं. वह मीडिएशन चैंबर्स के फाउंडर हैं. यह फाउंडेशन मध्यस्थता कराने के लिए जाना जाता है. वह इंडियन मीडिएटर्स एसोसिएशन के प्रेसीडेंट होने के साथ ही इंटरनेशनल मीडिएशन इंस्टीट्यूट(आईएमआई) के डायरेक्टर हैं. उन्होंने 2005 में उन्होंने भारत का पहला मध्यस्थता केंद्र स्थापित किया. उन्होंने मध्यस्थता को भारत की कानूनी प्रणाली का हिस्सा बनाने में अहम भूमिका निभाई. उन्होंने कॉमर्शियल, कारपोरेट और कांट्रैक्चुअल झगड़ों का निपटारा किया. वह मध्यस्थता पर Mediation: Practice & Law सहित दो किताबें लिख चुके हैं.