मुजफ्फरनगर से अजित सिंह, बागपत से जयंत लड़ेंगे चुनाव
मेरठ : राष्ट्रीय लोकदल (आरएलडी) के मुखिया अजित सिंह मुजफ्फरनगर सीट से और उनके बेटे जयंत चौधरी बागपत से लोकसभा चुनाव लड़ेंगे। अजित सिंह हाल के दिनों में कह चुके हैं कि यह उनका अंतिम चुनाव होगा। खास बात यह है कि अजित सिंह अपनी पारंपरिक सीट बागपत अपने बेटे जयंत के लिए छोड़ी है। इसके पहले वह इस सीट से चुनाव लड़ते आ रहे थे। पश्चिमी उत्तर प्रदेश में रालोद का जनाधार माना जाता है लेकिन पिछले लोकसभा और विधानसभा चुनावों में उसे नकुसान उठाना पड़ा है। हालांकि, कैराना लोकसभा सीट पर हुए उप चुनाव में मिली जीत ने उसे वापसी का मौका दिया।
बागपत लोकसभा सीट से अजित सिंह ने आठ बार चुनाव लड़ा है और दो बार इस सीट पर उन्हें हार का सामना करना पड़ा है। सपा-बसपा और आरएलडी के सीट शेयरिंग फॉर्मूले से यह साफ हो गया है कि आरएलडी बागपत, मथुरा और मुजफ्फरनगर सीट पर चुनाव लड़ने जा रही है। पार्टी नेताओं का कहना है कि 2013 के मुजफ्फरनगर सांप्रदायिक दंगों के बाद मुस्लिम और जाट वोटों का ध्रुवीकरण हो गया था। पार्टी इस वोट बैंक को फिर से एकजुट करना चाहती है। अजित सिंह का इस सीट से चुनाव लड़ने के फैसले को पार्टी की दूरगामी रणनीति से भी जोड़कर देखा जा रहा है।
टीओआई की रिपोर्ट के मुताबिक आरएलडी के संगठन सचिव राज कुमार सांगवान ने कहा, 'मुजफ्फरगनर में करीब 3.74 लाख जाट मतदाता हैं जो इस निर्वाचन क्षेत्र के 16 लाख वोटर्स का 22 प्रतिशत है। इस सीट पर 5.5 लाख मुस्लिम मतदाता हैं और हम यदि तीन लाख दलित वोटरों को जोड़ दें तो यह संख्या कुल वोटों के करीब 75 फीसद हो जाती है। इसके अलावा मुजफ्फरनगर की सीमा बागपत से मिलती है और यह सीट आरएलडी का गढ़ है।'
सांगवान ने आगे कहा, 'अजित सिंह ने पिछले दो वर्षों में अपनी 'भाईचारा' रैली से जाट और मुस्लिम समुदाय को जोड़ने की कोशिश की है। मुजफ्फरनगर की घटनाएं बागपत को भी प्रभावित करती हैं। इस तरह से वह दोनों जिलो में अपने वोट बैंक को एक एकजुट करते आए हैं।'
कुल मिलाकर गठबंधन में शामिल रालोद अपना खोया हुआ जनाधार पाने के प्रयास में है। पिछले लोकसभा और विधानसभा चुनावों में उसे भारी नुकसान उठाना पड़ा। 2014 के लोकसभा चुनाव में उसे एक भी सीट नहीं मिली जबकि 2017 के विधानसभा चुनाव में उसे एक सीट मिली। साल 2017 में कैराना सीट के लिए हुए उपचुनाव में उसे जीत मिली। हालांकि इस सीट पर उसकी उम्मीदवार तबस्सुम हसन को सपा, बसपा और कांग्रेस का समर्थन प्राप्त था। कैराना सीट भाजपा सांसद हुकुम सिंह के निधन के बाद खाली हुई थी और इस सीट पर हुए उप चुनाव में तबस्सुम ने सिंह की बेटी मृगांका को हराया।