क्रिसमस डिजीज से पीड़ित 40 घंटे के नवजात को मिली नयी जिंदगी
20000 में से एक पुरुष को होने की सम्भावना होती है यह दुर्लभ बीमारी
लखनऊ अपोलोमेडिक्स सुपर स्पेशियलिटी हॉस्पिटल के पीडियाट्रिक्स डा0 मृत्युंजय कुमार के साथ डा0 शेफालिका, डा0 इंद्रपाल, डा0 शिवानी व डा0 सिद्धार्थ की टीम ने दो दिन के हीमोफिलिया से पीड़ित नवजात शिशु का सफल इलाज करते हुये उसे नयी जिंदगी प्रदान की।
अपोलोमेडिक्स सुपर स्पेशलिटी हॉस्पिटल के संस्थापक व अध्यक्ष डॉ सुशील गट्टानी ने इस बेहद मुश्किल इलाज के बारे में बताते हुये कहा कि हमारे सामने सबसे बड़ी चुनौती ये थी कि ये सर्जरी किसी व्यस्क की नहीं बल्कि दो दिन के नवजात शिशु की होनी थी जो क्रिसमस रोग जिसे हीमोफिलिया बी या फैक्टर आईएक्स हिमोफिलिया भी कहा जाता है, से पीड़ित था। हेमोफिलिया क्रोमोसोमएक्स से जुड़ी एक वंशानुगत बीमारी है, जो मुख्य रूप से लड़कों को प्रभावित करती है। जन्म लेने के दूसरे दिन ही नवजात को अपोलोमेडिक्स सुपर स्पेशियलिटी हॉस्पिटल लाया गया जहाँ बच्चे की तत्काल प्राथमिक चिकित्सा शुरू कर दी गई। जब शिशु को उपचार के लिये भर्ती किया गया था तब उसके शरीर का पूरा रंग पूर्णत पीला पड़ चुका था और उसकी स्थिति बेहद गंभीर थी व नवजात के शरीर से लगातार बहता खून रूकने का नाम नहीं ले रहा था। ऐसे में हमारी टीम ने बिना समय गवाए उसे मैकेनिकल वेंटिलेटर पर रखा। बहुत अधिक दबाव का उपयोग करने के बाद भी बड़े पैमाने पर फेफड़े के रक्तस्राव के कारण हमारे लिए एसपीओ 2˃ 50% बनाए रखना वास्तव में चुनौतीपूर्ण था।
अपोलोमेडिक्स सुपर स्पेशियलिटी हॉस्पिटल के पीडियाट्रिक्स डा0 मृत्युंजय कुमार ने बताया कि 3 दिनों के बाद बच्चे की स्तिथि में सुधार देख वेंटिलेटर सपोर्ट को थोड़ा कम किया गया। आखिरकार हमारी टीम की अथक मेहनत रंग लाई और नवजात का 7 वें दिन तक रक्तस्राव पूरी तरह बंद हो गया। रक्तस्राव होने के कारण कमजोर हुये नवजात को उसके पोषण बनाये रखने के लिये उसको दवा के साथ-साथ 12 वें दिन माँ का स्तनपान कराया गया। इस तरह के मामले क्या लखनऊ शहर में पहले सामने आए हैं, यह कहना बहुत मुश्किल है। लेकिन मैंने नवजात शिशु में हेमोफिलिया बी की ऐसी किसी प्रस्तुति के बारे में कभी नहीं सुना है। भले ही इस बीमारी का निदान शहर में पहले किया गया हो या ना किया गया हो, परन्तु इसकी रिपोर्ट पहली बार की गई है।
डा. मृत्युंजय ने इस बीमारी की जानकारी देते हुए बाताया कि नवजात एचडीएन सेकेंडरी टू हीमोफिलिया बी (क्रिसमस रोग) से पीड़ित था। हीमोफिलिया बी, हीमोफिलिया ए की तुलना में 4 गुना कम होता है। ये एक अनुंवाशिक बीमारी है, ज्यादातर 80-85 फीसदी मामले हीमोफिलिया ए के ही होते है जबकि हीमोफिलिया बी के मामले काफी कम सामने आते हैं। यदि एक महिला (करियोटाइप एक्स-एक्स) एक माता-पिता से हीमोफिलिया जीन की असामान्य है तो उसे भी ये बीमारी अपनी चपेट में ले सकती है लेकिन अधिकांश ये बीमारी लड़कियों की अपेक्षा लड़को को ज्यादा होती है क्योंकि पुरुषों के पास केवल एक अक्स क्रोमोज़ोम होता है। रक्त विकार सभी जातीय समूहों को समान रूप से प्रभावित करता है। हीमोफीलिया ए और बी एक्स गुणसूत्र या एक्स क्रोमोसोम द्वारा होता है। ये हम सब जानते हैं कि महिलाओं में दो एक्स क्रोमोसोम होते है परन्तु पुरुषों में दो अलग-अलग प्रकार के एक्स और वाई क्रोमोसोम होते हैं। पुरुषों में एक्स क्रोमोसोम महिला से और वाई क्रोमोसोम पिता से आता है। इन्हीं क्रोमोसोम से बच्चे का लिंग निर्धारित होता है। क्रोमोसोम में ही हीमोफीलिया पैदा करने वाले जीन्स होते हैं। महिलाएं इस रोग की वाहक होती हैं। यानी बेटे में एक्स क्रोमोसोम माँ से मिलता और यदि एक्स क्रोमोसोम हीमोफीलिया से ग्रसित हो तो बेटे को हीमोफीलिया हो जाएगा। परन्तु बेटी में एक एक्स क्रोमोसोम माँ से मिलता है और यदि वो हीमोफीलिया से ग्रसित हो लेकिन पिता से आने वाला क्रोमोसोम हीमोफीलिया से ग्रसित नहीं हो तो बेटी में यह बिमारी नहीं होगी। पिता से बच्चों में हीमोफीलिया अधिकतर नहीं होती है। हीमोफीलिया ए और बी वाले लोगों में अक्सर, अन्य लोगों की तुलना में लंबे समय तक रक्तस्राव होता है।
हीमोफीलिया को हीमोफीलिया ए व हीमोफीलिया बी दो वर्गों में वर्गीकृत किया गया है। हीमोफीलिया ए में फैक्टर-8 की मात्रा बहुत कम या शून्य हो जाती है। जबकि, हीमोफीलिया बी फैक्टर-9 के शून्य या बहुत कम होने पर होता है। लगभग 80 प्रतिशत हीमोफीलिया रोगी, हीमोफीलिया ए से पीड़ित होते हैं। सामान्य हीमोफीलिया के मामले में पीड़ित को कभी-कभी रक्तस्राव होता है, जबकि स्थिति गंभीर होने पर अचानक व लगातार रक्तस्त्राव हो सकता है।