अखिलेश के कुम्भ पहुँचने से सियासी सरगर्मी बढ़ी, प्रियंका-राहुल भी लगाएंगे डुबकी
प्रयागराज: प्रयागराज में चल रहे कुंभ में राजनीतिक पार्टियों की दिलचस्पी अचानक से बढ़ने लगी है. अखिलेश यादव कुंभ में पहुंचे हुए हैं और अखाड़ों के साधु-संतों से उनकी मुलाकात हो सकती है. इस बीच खबर है कि योगी आदित्यनाथ की अगली कैबिनेट बैठक कुंभ में ही होने वाली है और इसमें बीजेपी सांसद के रूप में अमित शाह भी शामिल हो सकते हैं. कांग्रेस पार्टी ने हाल ही में प्रियंका गांधी को महासचिव का पद सौंपा है और इसके साथ ही पूर्वी यूपी का जिम्मा भी दिया है.
मीडिया रिपोर्ट के मुताबिक प्रियंका गांधी 4 फरवरी को कुंभ में डुबकी लगाने के साथ ही महासचिव का पद संभाल लेंगी. लोकसभा चुनाव से पहले यूपी में सभी पार्टियां कुंभ मेला के बहाने साधु-संतों को रिझाने का अभियान छेड़ दिया है. योगी सरकार ने इस बार होने वाले कुंभ मेले को लेकर 4200 करोड़ के बजट का प्रावधान किया था, जो 2012 में होने वाले कुंभ से तीन गुना ज्यादा है. इस बार मेले का क्षेत्र भी 2012 के मुकाबले बहुत ज्यादा है, इसका मतलब साधु-संतों को रिझाने का पहला चरण योगी आदित्यनाथ बहुत भारी बहुमत से जीत गए हैं.
संतों का आशीर्वाद प्राप्त करने के दूसरे चरण में योगी को सपा और कांग्रेस से जबरदस्त टक्कर मिल सकती है, लेकिन जिस तरह से योगी आदित्यनाथ ने अपने पूरे कैबिनेट को कुंभ में आने का न्योता दे दिया है उससे लड़ाई दिलचस्प हो गई है. लेकिन इस राजनीतिक धर्म युद्ध में योगी का ही पलड़ा भारी दिख रहा है, क्योंकि एक तो खुद महंत की छवि और उसके बाद राम मंदिर की आस, संतों के उम्मीद की किरण की तरह प्रज्जवलित हो रहे हैं.
राहुल गांधी को सॉफ्ट हिंदूत्व की छवि का तमगा तो कर्नाटक चुनाव के दौरान ही मिल गया था. रही-सही कसर मानसरोवर यात्रा ने पूरी कर दी थी जिसके बाद वो उदारवादी हिन्दुओं के सम्राट बन गए थे. दूसरी तरफ नरेन्द्र मोदी और अमित शाह हैं जिन्हें स्वभाविक जाता है. कूल मिलाकर प्रतिस्पर्धा जबरदस्त होने वाली है लेकिन कांग्रेस की पुरानी हिन्दू विरोधी छवि को प्रियंका और राहुल गांधी कितना धो पाएंगे ये तो आने वाला समय ही बताएगा.
लोकसभा चुनाव से पहले कुंभ मेला का आयोजन बीजेपी के लिए फायदे के साथ घाटे का सौदा भी है. कुंभ में लगने वाले धर्म संसद में राम मंदिर निर्माण को लेकर साधू-संतों का नजरिया स्पष्ट है, अगर भाजपा को संतों का आशीर्वाद चाहिए तो उन्हें राम मंदिर पर ठोस कदम आगे बढ़ाना होगा, क्योंकि फिर एक आश्वासन मोदी और शाह को संतों के श्राप का भागी बना देंगे. उन्हें तारीख बतानी होगी क्योंकि संतों के सामने सुप्रीम कोर्ट का बहाना नहीं चलेगा. खैर, इन सबके बीच यूपी की राजनीति में हिंदूत्व का तड़का लगना शुरू हो गया है, लेकिन इस बार दिलचस्प बात यही है कि इस खेल में बीजेपी अकेली नहीं है.