– इं. हरेन्द्र पाल, लखनऊ

स्मृतिलोप बस वह तरीख तो याद नहीं लेकिन 21 वर्ष पूर्व 1997 में सितम्बर माह रहा होगा, जब श्री त्रिलोकी नाथ पाल (वैज्ञानिक एवं सामाजिक चिन्तक) के निवास छितवापुर लखनऊ पर मेरा जाना हुआ था। संयोगवश समाजसेवी श्री पी0के0 सिंह के साथ अजीबोखास शख्शियत रखने वाली दीदी उर्मिला पाल जी से मेरी पहली मुलाकात हुई। चूंकि मैंने स्वयं जुलाई 97 में एन0वी0आर0आई0 ज्वाइन किया था बहुत कम लोगों को जानता लेकिन टी0एन0 पाल जी के लेख व कालम तुम भी सोचो, मैं भी सोचूं, पाल भारती मासिक पत्रिका में पढ़ता रहता वा प्रभावित था। उनके निवास पर उर्मिला दीदी को एक सामाजिक चिंतक के रूप में जानने का अवसर मिला।

श्री टी0एन0 पाल जी के निवास पर ही मुझे बताया गया कि कैसरबाग प्रेक्षागृह में मेधावी छात्र सम्मान समारोह प्रस्तावित है और यह पाल बघेल महिला महासभा के तत्वाधान में उर्मिला जी कर रही है। शायद यह उनका भी पहला मेधावी छात्र सम्मान समारोह था उसके बाद से जो दीदी के साथ का सिलसिला चला तो 29 दिसम्बर 2018 को उन्होंने स्वयं ही इस मुलाकात को हमेशा हमेशा के लिए अलविदा कर दिया। न चाहते हुये भी उनसे विदा लेना पड़ा।

30 दिसम्बर 2018 को उनकी अर्थी को कंधा देते समय भी दिल से आवाज आ रही थी कि कोई जिये तो इसी शान से जीवन जिये कि जाने के बाद भी लोग उसे याद करें। उनकी बहिन एवं भतीजे केे सिवा उनके नरही आवास पर कोई खून का रिश्ता किसी से न था। लेकिन जब अन्तिम समय में लखनऊ वा आस-पास के क्षेत्र का कोई ऐसा समाज का आम व खास न था जो उनकी अन्तिम यात्रा में उनके साथ न था। कंधा देने के लिए भाईयों के कंधे थे जो बारी-बारी से प्रतीक्षा कर रहे थे। यहाँ का मंजर यह था कि भले ही शामिल होने वाले लोगो का खून का रिश्ता नहीं था लेकिन सभी रिश्ते की डोर में उनके पीछे-पीछे चले जा रहे थे, लखनऊ भैंसा कुण्ड में 30 दिसम्बर को उन्हें अन्तिम विदाई दी गई।

अब जब वे न होंगी तो उनके किस्से उनकी कहानी होगी। मेरा सफर 1997 से जो उनके साथ शुरू हुआ उर्मिला दीदी के नेतृत्व में पी0के0 सिंह, आर0सी0 पाल, सोहन लाल जी, विजय पाल, इन्द्रमोहन पाल, और न जाने कितने नाम जुड़ते गये और सब उनके नेतृत्व में काम करते रहे। वर्ष 2002 के आते आते पाल बघेल महिला महासभा (उ0प्र0) की इमेज एक धरातल पर काम करने वाली संस्था की बन गई थी। हम सब पुरूष सहयोगियों की हैसियत से काम करते थे न पर्चे न बैनर पर किसी का नाम होता था केवल उर्मिला दीदी का नेतृत्व मंजिलों की ओर ले जाता था। 2000 में स्मारिका का प्रकाशन तत्पश्चात परिचय पुस्तिका (डायरेक्टरी) का प्रकाशन कई महत्वपूर्ण काम होते रहे सफर चलता रहा। 1997 में कैसरबाग से होते हुये नरही स्कूल और फिर वर्षो से अनवरत नगर निगम त्रिलोकी नाथ हाल दीदी के जुझारू व्यक्तित्व का गवाह बना। उर्मिला दीदी में महिलाओं को संगठित कर स्वाभिमानी बनाने की अद्भुत कला थी। पेशे से तो वकील थी ही साथ ही उन्होंने हरपल महिला सशक्तिकरण की पैरवी की व महिलाओं से सदैव कंधे से कंधा मिलकर चलने की अपील की। स्वयं उर्मिला जी जुझारूपन एवं दृढ़ इच्छा शक्ति की प्रतिमूर्ति थी। जिस समय में जब स्त्रियों का पढ़ना लिखना लगभग प्रतिबन्धित था। तब 1946 में जन्मी दीदी ने बचपन से बेरिस्टर बनने का ख्वाब देखा और उसे पूरा किया। वे लखनऊ हाई कोर्ट में वकालत करने वाली शायद अपने समय की अपने समाज की प्रथम महिला एडवोकेट होगी।

समाज कल्याण विभाग से सेवानिवृत्त श्री आर0जी0 पाल बताते है समाज कल्याण विभाग में जाॅब से पूर्व जब उन्होंने वकालत की तो कोर्ट में पहली बार उनके पहले केस में ही उर्मिला पाल का विपक्षी वकील होने का अनुभव अनुपम था।

सात-आठ वर्ष पाल बघेल महिला महासभा और उसके साथ अ.भा. पाल महासभा शाखा लखनऊ संयुक्त रूप से कार्यक्रम कराती रही। लगभग 4 वर्ष उर्मिला दीदी ने मेधावी छात्र सम्मान समारोह व आ.भा. पाल महासभा शाखा लखनऊ की टीम ने होली मिलन अलग-अलग कराने का निर्णय लिया। यह किसी भी सामाजिक चिन्तक एवं समाजसेवी के लिए घोर निराशा एवं टीस उत्पन्न करने वाला निर्णय था।

अन्ततः उर्मिला दीदी ने हार नहीं मानी अपने नेतृत्व कौशल एवं जीवटता ने यह साबित किया कि वे अलग से नेतृत्व देने मंे आज भी सक्षम हैं व अपने नेतृत्व में नई टीम बनाकर पिछले 4 वर्षों के मेधावी छात्र सम्मान समारोहों का सफल आयोजन कर अपनी नेतृत्व क्षमता का लोहा मनवाया।

1997 से 2018 तक 21 वर्ष लगातार कार्यक्रम आयोजन करते रहना आसान नहीं होता इसके लिए दृढ़ विश्वास, अदम्य इच्छाशक्ति एवं नेतृत्व क्षमता की आवश्यकता होती है। क्योंकि हर कार्यक्रम में कुछ नाराज होते हैं, कुछ नये जुड़ते हैं, नाराज होने उन्हें मनाने व नये जोड़ने की प्रक्रिया सतत् चलती रहती है।

दीदी उर्मिला पाल आज हमारे बीच नहीं हैं लेकिन फिर भी अपने किये गये कार्यों की जो अमिट छाप उन्होंने हमारे बीच छोड़ी है उसके माध्यम से वे हमारे बीच हमेशा रहेगी।

मैंने एक गीत सुना था कि ‘दुनिया से जाने वाले चले जाते है कहाँ’ इसका जवाब तो हमे आज भी नहीं मिला। लेकिन इस गीत की दूसरी पंक्ति ‘नहीं मिलते हैं कदमों के भी निशा’ को आज दीदी ने झुठला दिया है। क्योंकि अपने दृढ़ इच्छा शक्ति व सामाजिक कार्यो से उन्होंने जो अपने कदमों की अमिट छाप छोड़ी है। वह कभी मिट नहीं सकती।

परम पूज्या उर्मिला जी की महान आत्मा के प्रति हम अपने श्रद्धा सुमन अर्पित करते हैं। आत्मा अजर अमर अविनाशी है। उर्मिला जी देह रूप में हमारे बीच नहीं है लेकिन वह एक प्रबल विचार के रूप में हमारे बीच सदैव जीवित रहते हुए हमारा युगों-युगों तक मार्गदर्शन करती रहेंगी।

प्रेरणा स्त्रोत एवं सदैव स्मरणीय।


– इं. हरेन्द्र पाल, लखनऊ, मोबाइल: 9839423719