शिक्षकों एवं छात्रों पर लविवि प्रशासन का तुगलकी फरमान, कुलपति उड़ा रहे हैं नियमों की धज्जियाँ : CYSS
लखनऊ : LU के एक फरमान के बाद विश्वविद्यालय की पीएचडी प्रवेश प्रक्रिया विवादों में घिरती नजर आ रही है। दरअसल प्रशासन ने दाखिले की प्रक्रिया शुरु होने के बाद एकाएक नियमों में अनदेखी करते हुए बदलाव कर दिया जिस मामले को लेकर शिक्षकों और अभ्यार्थियों ने विश्वविद्यालय प्रशासन पर मनमानी करने का आरोप लगाया है।
इस मामले पर 'आप' का छात्र संगठन CYSS ( छात्र युवा संघर्ष समिति) के प्रांतीय अध्यक्ष वंशराज दुबे ने कहा कि शिक्षकों और शोधकर्ताओं के साथ यह एक बहुत बड़ा छलावा और धोखा है वही अगले तीन साल में सेवानिवृत्त हो रहे अनुभवी शिक्षकों को शोध पर्यवेक्षक न बनाये जाने का फरमान जारी करना प्रशासन की तानाशाही है।
उन्होंने कहा कि लखनऊ विश्वविद्यालय के अंदर जिस तरीके से एक के बाद एक तुग़लकी फ़रमान कुलपति द्वारा और प्रशासन द्वारा जारी किया जा रहा है यह दरअसल विश्वविद्यालय की पूरी लोकतांत्रिक व्यवस्था और नियमों को बर्बाद करने के रास्ते पर ले जाया जा रहा है।
वंशराज दुबे ने कहा कि विश्वविद्यालय प्रशासन कैसे और किन नियमों के तहत पीएचडी की सीटों में भारी कटौती कर रहा है और किस आधार पर वरिष्ठ शिक्षकों से पीएचडी कराने का अधिकार छीन सकते है। यह एक तरह से शिक्षा प्रणाली और उसके स्तर को ख़त्म करने का प्रयास है।
दरअसल आगामी 3 सालों में विश्वविद्यालय से लगभग 25 प्रोफ़ेसर रिटायर होने जा रहे हैं इसके चलते विश्वविद्यालय प्रशासन ने उनके शोध कराने के अधिकार को पहले ही छीन लिया जिसे लगभग 70 से 80 सीटें कम हो जाएंगी । जबकि नियमतः वह आगे भी एक गाइड के रूप में शोध करा सकते थे। आप को बता दे कि अंग्रेजी विभाग में पहले 60 सीटे पीएचडी की थी जो अब नये नियमों के मुताबिक घटकर सिर्फ़ 32 सीटे ही रह जाएंगी। यही नही पीएचडी के और विभागों का अमूमन यही हाल है।