सही उच्चारण के लिए शब्दों के मूल स्रोत का अध्ययन करें: डाॅ0 आयशा सिद्दीक़ी
“उच्चारण की शुद्धता” पर आकाशवाणी लखनऊ में आयोजित कार्यशाला संपन्न
लखनऊ: आकाशवाणी लखनऊ के उद्घोषकों एवं कार्यक्रम कर्मियों के दैनन्दिन क्रिया-कलापों में परिष्कार लाने के लिए आकाशवाणी एवं तल्हा सोसाइटी, लखनऊ द्वारा चार-दिवसीय कार्यशाला का आयोजन, आकाशवाणी लखनऊ के सभागार में किया गया। 04 जनवरी से प्रारम्भ इस कार्यशाला में उर्दू और हिन्दी के विद्वानों ने प्रतिभागियों को सम्बोधित किया। कहानीकार डाॅ0 आयशा सिद्दीक़ी ने बताया कि किसी भी शब्द का सही उच्चारण जानने के लिए आवश्यक है कि हम शब्दों के मूल स्रोत का अध्ययन करें। एक ही शब्द से बहुत सारे शब्दों की उत्पत्ति होती है। जैसे – ‘शाद‘ शब्द का अर्थ खुशी होता है। इससे नाशाद भी बनता है और शादमानी भी बनता है। लखनऊ विश्वविद्यालय के रूसी भाषा विभाग की भूतपूर्व प्रोफेसर डाॅ0 साबिरा हबीब ने प्रस्तुतिकरण के विभिन्न पक्षों पर विस्तृत जानकारी दी। उन्होंने कहा कि बहुत से ऐसे शब्द आज प्रचलन में हैं जिनका गलत उच्चारण किया जाता है। जैसे – उर्दू में प्रायः ख़वातीनों शब्द का इस्तेमाल बहुत सारे लोग करते हैं जबकि सही शब्द ख़वातीन है। ख़वातीन शब्द ख़ातून शब्द का बहुवचन है। इसी तरह अल्फ़ाज़ों का इस्तेमाल किया जाता है। जबकि सही शब्द अल्फ़ाज़ है। जोकि उर्दू शब्द लफ़्ज़ का बहुवचन है। तल्हा सोसाइटी की संयोजक और वरिष्ठ पत्रकार कुलसुम तल्हा ने मीडिया में आए दिन गलत शब्द इस्तेमाल किए जाने की तरफ इंगित करते हुए कहा कि हम लखनऊवासियों को इस बात का गर्व है कि हम दुनिया के विभिन्न हिस्सों में अपनी मीठी ज़्ाुबान की वजह से पहचाने जाते हैं। उन्होंने कहा कि तल्हा सोसाइटी लखनऊ और देश के विभिन्न हिस्सों में सही शब्दों के इस्तेमाल के लिए लगातार कार्य कर रही है। कार्यशाला के समापन दिवस पर प्रख्यात साहित्यकार शन्नै नक़वी ने फ़ैज़, ख़ुमार बाराबंकवी और फ़िराक़ गोरखपुरी की ग़ज़लें गाकर प्रतिभागियों को सुनाई। कार्यशाला में मोहम्मद क़मर ने प्रतिभागियों को उर्दू शब्दों को लिखने का प्रशिक्षण दिया। आकाशवाणी लखनऊ के वरिष्ठ कार्यक्रम अधिशासी प्रतुल जोशी ने हिन्दी शब्दों के सही उच्चारण के बारे में जानकारी दी। इस कार्यशाला में आकाशवाणी लखनऊ के प्राइमरी चैनल के उद्घोषकों के साथ ही समाज के विभिन्न तबकों के लोगों ने हिस्सा लिया।