भरत झुनझुनवाला ने मोदी सरकार की ई-कॉमर्स पॉलिसी का बताया छलावा
सरकार ने हाल में ई-कॉमर्स पॉलिसी में संशोधन किए हैं. कोई सप्लायर अपने कुल उत्पादन का 25 प्रतिशत या उससे अधिक माल किसी ई-प्लेटफॉर्म के माध्यम से नहीं बेच सकता है. यह भी कहा गया है कि कैशबैक जैसे इंसेंटिव अथवा विशेष डिस्काउंट भी किसी विशेष माल पर नहीं दिए जा सकेंगे. इन स्पष्टीकरण का उद्देश्य यह है कि ई-कॉमर्स कंपनियों द्वारा किसी विशेष माल को बढ़ाने के लिए इस प्लेटफार्म का दुरुपयोग न किया जाए.
मूल रूप से सरकार की यह पहल सही दिशा में है और सार्थक है. लेकिन आल इंडिया ऑनलाइन वेंडर्स एसोसिएशन ने इस पॉलिसी को लीपापोती बताया है. उनका कहना है कि ई-कॉमर्स प्लेटफार्मो द्वारा पूर्व में जो तमाम नीति के उल्लंघन किए गए हैं उनपर सरकार कोई कदम नहीं उठा रही है. वर्तमान पॉलिसी में जो परिवर्तन किए गए हैं इनको लागू करने और इनके उलंघन के ऊपर कार्रवाई करने को आगे खिसका दिया गया है. उनके अनुसार सरकार की पॉलिसी यह है कि ई-कॉमर्स कंपनियों द्वारा जो देश के कानून का उल्लंघन अब तक किया गया है उसके ऊपर खामोशी बनाए रखो और जनता का ध्यान यह कह कर हटा दो कि अब हमने ई-कॉमर्स पॉलिसी को और सख्त बना दिया है. वेंडर्स एसोसिएशन के इस वक्तव्य में दम दीखता है.
इस परिप्रेक्ष्य में ई-कॉमर्स प्लेटफार्म के दुरुपयोग को रोकने के लिए सरकार को निम्न कदमों पर विचार करना चाहिए. सर्वप्रथम ई-कॉमर्स कंपनियों द्वारा अबतक नियमों के जो उलंघन किए गए हैं उनको सार्वजनिक करके उनपर सख्त कार्रवाई करनी चाहिए. दूसरा यह कि सरकार बड़ी ई-कॉमर्स कंपनियों पर प्रतिबंध लगा सकती है कि उन्हें कम से कम 30 या 50 प्रतिशत माल भारतीय छोटे उद्योगों से खरीदना होगा. जैसे बैंकों के लिए अनिवार्य है कि उन्हें निर्धारित मात्ना में ऋण छोटे उद्योगों को देना होता है उसी प्रकार ई-कॉमर्स कंपनियों पर भी बंधन लगाया जा सकता है. तब ई-कॉमर्स कंपनियों को मजबूरन घरेलू कंपनियों से हाथ मिलाने होंगे.