भारतीय वैज्ञानिक का दावा, ग़लत थे न्यूटन और आइंस्टीन
विज्ञान और प्रौद्योगिकी मंत्री हर्षवर्द्धन बनेंगे कलाम से भी बड़े वैज्ञानिक
पंजाब के जालंधर में 106ठवीं विज्ञान कांग्रेस का आयोजन किया गया था। आयोजन के दूसरे दिन शुक्रवार (4 दिसंबर) को तमिलनाडु के वैज्ञानिक कनक जगाथला कृष्णन को आइंस्टीन के सिद्धांत पर चर्चा के लिए बुलाया गया। यहां उन्होंने सनसनीखेज दावा किया कि न्यूटन और आइंस्टीन गलत थे। साथ ही कहा कि भविष्य में विज्ञान और प्रौद्योगिकी मंत्री हर्षवर्द्धन भारत के ‘मिसाइल मैन’ एपीजे अब्दुल कलाम से बड़े वैज्ञानिक बनेंगे। कृष्णन तमिलनाडु के अलियर स्थित वर्ल्ड कम्यूनिटी सर्विस सेंटर के वरिष्ठ वैज्ञानिक होने का दावा करते हैं।
कृष्णन ने कहा, “एक बार जैसे ही मेरे सिद्धांत साबित हो गए, भौतिकी के बारे में अभी लोग जो समझ रहे हैं, वह गलत हो जाएगा।” कृष्णन ने सर आइजक न्यूटन के बारे में कहा कि उनके पास गुरुत्वाकर्षण की शक्तियों के बारे में काफी कम समझ थी। उन्होंने कहा, “न्यूटन गुरुत्वाकर्षण की प्रतिकारक शक्तियों को समझने में सक्षम नहीं थे। यही वजह है कि वे इससे संबंधित ज्यादा सवालों के जवाब नहीं दे सके। उनकी गणना सही थी लेकिन उनके सिद्धांतों में समस्या थी। मैं इन सभी सिद्धांतों को हल करने में सक्षम रहा हूं। भौतिकी को लेकर सिर्फ न्यूटन ही अल्पज्ञानी नहीं थे, बल्कि अल्बर्ट आइंस्टीन ने सापेक्षता के सिद्धांत को लेकर दुनिया को गुमराह किया।”
भारतीय वैज्ञानिक ने कहा कि अंतरिक्ष की स्व-संकुचित प्रकृति की वजह से चीजें एक विशेष गति से चलती हैं, गुरुत्वाकर्षण की वजह से नहीं। उन्होंने कहा, “अंतरिक्ष सूर्य व अन्य सभी ग्रहों से भारी है और सभी ग्रहों को दबाता है। उनके ऊपर बराबर का दबाव बनाया जाता है, इस वजह से वे घूमते हैं। अंतरिक्ष के स्व-संकुचित प्रकृति को न्यूटन और आइंस्टीन नहीं समझ सकें। आइंस्टीन ने दुनिया के लोगों को सही राह नहीं दिखाई।” कृष्णन ने गुरुत्वाकर्षण को समझने वाले अपने सिद्धांतों को स्टीफेन हॉकिन्स व दुनिया के अन्य बड़े शोधकर्ताओं के साथ साझा करने का दावा किया। इसके साथ ही उन्होंने कहा कि भविष्य में विज्ञान व प्रौद्योगिकी मंत्री हर्षवर्द्धन ‘मिसाइल मैन’ अब्दुल कलाम से बड़े वैज्ञानिक बनेंगे।
कृष्णन ने धरती पर गुरुत्वाकर्षण शक्ति के प्रभाव और जलवायु परिवर्तन पर भी सवाल उठाया। उन्होंने कहा, “यदि गुरुत्वाकर्ष जैसी कोई शक्ति है तो ग्लेशियर से पिघलकर आने वाला पानी धरती द्वारा अंदर क्यों नहीं खींच ली लिया जा रहा है? यह मैदानी इलाकों में क्यों जा रहा है? ऐसा इसलिए कि गुरुत्वाकर्षण शक्ति वह नहीं है जो हम समझ रहे हैं।” कृष्णन ने आगे कहा कि यदि एक बार गुरुत्वाकर्षण के बारे में लोगों के बीच विचार बदल जाता है और उनके सिद्धांतों को स्वीकार कर लिया जाता है तो गुरुत्वाकर्षण तरंगों को ‘नरेंद्र मोदी तरंगों’ के रुप में जाना जाएगा। गुरुत्वाकर्षण के प्रभाव को ‘हर्षवर्द्धन प्रभाव’ के रूप में जाना जाएगा।