2019 चुनाव के लिए संघ ने यूपी में नियुक्त किए 71 प्रभारी
नई दिल्ली: लोकसभा चुनाव 2019 के लिए बीजेपी और आरएसएस ने आंतिरक तौर पर अपनी मुहिम तेज़ कर दी है। देश में सबसे ज्यादा लोकसभा सीट वाले राज्य उत्तर प्रदेश में दोनों ही संगठनों के कार्यकर्ता जमीन पर फीडबैक ले रहे हैं। इकोनॉमिक्स टाइम्स की ख़बर के मुताबिक सूबे के सभी 80 लोकसभा क्षेत्रों में आरएसएस के कार्यकर्ता एक्टिव हो गए हैं और जनता का मन भांपने की कोशिश में जुटे हैं। माना जा रहा है कि ग्राउंड जीरो से मिले फीडबैक के आधार पर बीजेपी चुनावों में जनता को लुभाने की कोशिश करेगी।
पिछले लोकसभा चुनाव में बीजेपी ने बेहतरीन प्रदर्शन करते हुए उत्तर प्रदेश की 80 सीटों में से 73 पर कब्जा जमाया था। अब आगामी लोकसभा चुनाव की परिस्थितियों को देखते हुए पार्टी किसी भी सूरत में इस आंकड़े के करीब पहुंचना चाहती है। क्योंकि, उत्तर प्रेदश में बीएसपी प्रमुख मायावती और एसपी अध्यक्ष अखिलेश यादव की राजनीतिक जुगलबंदी बीजेपी के लिए खतरे की घंटी है। बीजेपी को बढ़त दिलाने के लिए आरएसएस और दूसरे हिंदू संगठनों ने पूरा जोर लगा दिया। आरएसएस ने बीजेपी के द्वारा जीती गईं 71 सीटों पर अपने प्रभारी नियुक्त किए हैं। ये प्रभारी ग्राउंड जीरों से सांसदों के काम और उनकी लोकप्रियता का विश्लेषण करेंगे। इन्हीं के फीडबैक के आधार पर टिकट का वितरण भी किया जाएगा। वहीं, बीजेपी ने उत्तर प्रदेश में तमाम मतभेदों को दूर करने की जिम्मेदारी गुजरात के पूर्व गृह मंत्री गोर्धन जड़ाफिया को सौंपी है।
संघ ने यूपी की जिम्मेदारी अपने जॉइंट सेक्रेटरी कृष्णा गोपाल को सौंपी है। माना जा रहा है कि गोपाल जिसकी अनुशंसा करेंगे उसकी टिकट की दावेदारी पक्की मानी जाएगी। हालांकि, अभी तक मिली जानकारी के मुताबिक यूपी में पीएम मोदी की लोकप्रियता कायम है। बावजूद, उनके संसदीय क्षेत्र वाराणसी में भी नेताओं की गतिविधियां जोरशोर से चल रही हैं। गुजरात के नवसारी से सासंद सीआर पाटिल अपना अधिकांश वीकेंड वाराणसी में ही गुजार रहे हैं। वहीं, पड़ोस में गाजीपुर से सांसद मनोज सिन्हा और चंदौली से महेंद्र नाथ पांडे वाराणसी में ही डंटे रहते हैं।
बीजेपी जातिगत समीकरण को साधने पर ज्यादा तवज्जो दे रही है। पार्टी के नेता जातीय विशेष से जुड़ी हस्तियों को अपने पाले में मिलाने के लिए खूब कोशिश कर रही हैं। इसके लिए पार्टी ने अपने रणनीति के तहत चुनाव सह-प्रभारी दुष्यंत गौतम और नरोत्तम मिश्रा को अलग से जिम्मेदारी दी है। गौतम जहां दलित मतदाताओं को साधने की कोशिश में जुटेंगे वहीं मिश्रा बुंदेलखंड के सवर्ण वोटरों को लुभाने की कोशिश करेंगे।