-आशीष वशिष्ठ

हिन्दी पट्टी के तीन राज्यों से सत्ता गंवाने के बाद भाजपा सदमे में है। भले ही भाजपा के तमाम नेता और प्रवक्ता हार के अलग-अलग कारण गिनाये, लेकिन एक बात साफ है कि कांग्रेस ने भाजपा को लोकसभा चुनाव से पहले हार की गहरी चोट पहुंचाई है। वहीं भाजपा के कांग्रेस मुक्त गुब्बारे की हवा भी निकालने का काम किया है। ये चुनाव नतीजे कांग्रेस के खुशखबरी तो हैं ही वहीं इन नतीजों ने आईसीयू में पड़ी कांग्रेस में प्राण फूंकने का काम किया है। महागठबंधन की जोर पकड़ती मुहिम में मनमाफिक नतीजों से विपक्ष का साहस दोगुना हुआ है। कुल मिलाकर इन चुनाव नतीजों ने जहां मोदी-शाह की जोड़ी के तिलस्म को चकनाचूर किया है। वहीं इन चुनाव नतीजों ने भाजपा को 2019 के लोकसभा चुनाव के लिये नये सिरे से सोचने के मजबूर कर दिया है। हिंदी हार्टलैंड ही बीजेपी का गढ़ बना था। उसमें सेंध लगाने में कांग्रेस पार्टी कामयाब रही है। हालांकि कांग्रेस की असली चुनौती यूपी में है। फिलवक्त ये भाजपा के लिये गहरे चिन्तन और मनन का वक्त है। अगर मतदाताओं का मनोभाव अगले तीन-चार महीनों तक ऐसा ही रहा तो भाजपा दिल्ली की गद्दी भी गंवा बैठेगी।

तीन राज्यों में से छत्तीसगढ़ और मध्य प्रदेश में भाजपा की डेढ दशक पुरानी सरकारों को कांग्रेस ने आखिरकर कांग्रेस ने उखाड़ डाला है। सबसे ज्यादा चमत्कार छत्तीसगढ़ में हुआ। वहां तो भाजपा के बेहद शर्मनाक हार का सामना करना पड़ा। राजस्थान व मध्यप्रदेश में कांग्रेस-भाजपा की कड़ी टक्कर में आखिरकर मुकाबला कांग्रेस ने जीता। भाजपा इन तीन राज्यों में ‘एंटी इनकम्बैंसी’ को प्रमुख वजह बता रही है, लेकिन हार का ठीकरा ‘एंटी इनकम्बैंसी’ पर नहीं फोड़ा जा सकता। इस हार के बाद ब्रांड मोदी की लोकप्रियता पर भी असर डाला है। विदेशी अखबारों में इस बाबत लंबी रपटें प्रकाशित हुई हैं।

लोकसभा चुनाव का सेमीफाइनल माने जा रहे इन चुनाव में पीएम नरेंद्र मोदी ने सभी राज्यों में जाकर रैलियां कीं और राजस्थान में तो पूरा जोर लगा दिया था। वो अलग बात है कि रणनीति के तहत पीएम मोदी की कम रैलियां रखी गयी थी, ताकि हार का ठीकरा किसी दूसरे के सिर फोड़ा जा सके। असल में बीजेपी भी पूरे प्रचार में इसी पर फोकस कर रही थी कि 2019 में फिर से मोदी को लाने के लिए इन राज्यों में बीजेपी की जीत जरूरी है। कांग्रेस अगर इन राज्यों में बीजेपी को मात देकर मोदी की उस अजेय इमेज को बुरी तरह तोड़ दिया है जो इमेज बीजेपी दिखाने की कोशिश करती रही है।

बेशक इन जनादेशों के बाद, कमोबेश उत्तर भारत में, कांग्रेस का नये सिरे से पुनरोत्थान होना तय है, जहां इन राज्यों में ही लोकसभा की 65 सीटें हैं। अब इन जनादेशों के बाद कांग्रेस के सहयोग से महागठबंधन बनाने के प्रयास तेज और सार्थक हो सकते हैं,लेकिन तेलंगाना में कथित महागठबंधन बिल्कुल नाकाम रहा। राजस्थान में पांच साल और मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़ में कांग्रेस का 15 साल से चल रहा वनवास राहुल गांधी की अगुवाई में खत्म हुआ है। जो कांग्रेस के भविष्य के लिए अच्छे संकेत हैं।

इस हार के बाद मोदी-शाह की जोड़ी के लिये पार्टी के अंदर और बाहर मुश्किलें आने वाले दिनों में बढ़ने वाली हैं। तीनों राज्यों में हार से लोकसभा चुनाव के पहले ही मोदी और अमित शाह की जिताऊ क्षमता और कार्यप्रणाली पर घर के भीतर से ही सवाल उठेंगे और जिन लोगों को किनारे बिठा रखा गया है वे मुखरित हो उठेंगे। इसके प्रारंभिक संकेत मप्र में बाबूलाल गौर और रघुनंदन शर्मा जैसे वरिष्ठ नेताओं के ताजा बयानबाजी से मिल ही चुके हैं। इस जनादेश के बाद भाजपा में मोदी विरोधी गुट मुख होगा, इससे इंकार नहीं किया जा सकता है।

पिछले पांच वर्षों में पहली बार कांग्रेस भाजपा को करारी शिकस्त देने में सफल हो पायी है। चुनाव नतीजे विपक्ष के लिए ऑक्सीजन का काम करेंगे। उम्दा नतीजों के बाद कांग्रेस फिर से सेंटर पॉइट में दिखेगी और विपक्षी एकता की धुरी बनने की फिर एक कोशिश हो सकती है। रफाल से लेकर किसानों का मुद्दा और नोटबंदी से हुई दिक्कतों पर विपक्ष सरकार की घेराबंदी संसद और सड़क में कर सकता है। शानदार जीत के बाद कांग्रेस के उभार के साथ-साथ पार्टी अध्यक्ष राहुल गांधी का राजनैतिक कद और स्वीकार्यता बढ़ेगी। वही गठबंधन की कोशिशों में तेजी के साथ कई नये दल उसमें शामिल भी होंगे।

मोदी सरकार के साढ़े चार साल के में लिये गये तमाम फैसलों से जनता में नाराजगी बढ़ी है। इन वर्षों में बेरोजगारी और महंगाई बढ़ी है। किसानों में आक्रोशा और गुस्सा था। व्यापार में निर्यात और जीडीपी की दर कम हो रही थी। पेट्रोल और डीजल की लगातार मार सहनी पड़ी थी। इन सब कारणों ने बीजेपी की हार की पटकथा लिखने काम किया। इस तथ्य से इंकार नहीं किया जा सकता है कि केंद्र की भाजपा सरकार के कई फैसलों से उसका पंरपरागत वोट बैंक बुरी तरह नाराज है, खासकर एससी-एसटी एक्ट को लेकर नाराजगी जगजाहिर है। इसलिए यदि बढ़ते जनाक्रोश को थामा नहीं गया तो वर्ष 2019 के आम चुनावों में राजनीतिक तस्वीर बदलते देर नहीं लगेगी। सहयोगी दलों के किनारा करने को एक चेतावनी के रूप में लिया जाना चाहिए। वैसे इन चुनावों ने भाजपा की कई खुशफहमियां तोड़ी हैं। जिस तरह कंाग्रेस ने अपने परंपरागत वोट बैंक का हल्के में लेना शुरू किया था, शायद वही गलती भाजपा ने भी इस बार की है। एससी-एसटी एक्ट को लेकर भले के विरोध में भले ही देशभर में विरोध प्रदर्शन न हुआ हो, लेकिन मोदी सरकार के इस कदम ने सवर्ण जातियों को अंदर ही अंदर बुरी तरह नाराज करने का काम किया।
जिसके चलते भाजपा अपने परंपरागत समर्थकों की सहानुभूति और समर्थन दोनों गंवा बैठी। यदि ऐसा नहीं होता तब कम से कम मप्र और छत्तीसगढ़ में इतनी बुरी हालत न होती।
कांग्रेस के लिए सिर्फ तीन राज्यों के अच्छे नतीजों से अंदाजा लगाकर खुश होना सही नहीं होगा। आगे चुनौती काफी है। पहली बात बीजेपी ने कांटे की टक्कर दी है। दूसरे विधानसभा चुनाव के मुद्दे आम चुनाव से अलग होते हैं। वहीं राहुल बनाम मोदी की लड़ाई में राह आसान नहीं है। बीजेपी आम चुनाव को प्रधानमंत्री बनाम राहुल गांधी करने की कोशिश करेगी, जिसकी काट अभी से तलाश करनी पड़ेगी। संसदीय चुनाव चेहरे पर नहीं, मुद्दे पर लड़े जाने चाहिए। लेकिन ये नैरेटिव कांग्रेस को अभी से बनाने की कोशिश करनी चाहिए। हालांकि ये जीत कांग्रेस का जोश बढ़ाने के लिए जरूरी थी. लेकिन मोदी को मात देने के लिए गठबंधन ही विकल्प है।

बीजेपी के नेता व कार्यकर्ता भले ही विकास के मुद्दे पर चुनाव लड़ने की बात कहते रहे हैं और लोकसभा चुनाव में इसी पर लड़ने की बात कहते रहे हैं। लेकिन चुनाव नतीजों के बाद बीजेपी को अपने लिए नया एजेंडा तलाशना होगा। ऐसे में बीजेपी क्या फिर से राममंदिर पर ही उम्मीद करेगी और फिर हिंदुत्व का बिगुल बजाएगी। अब राम मंदिर के लिए कानून पर भी उसका रुख सामने आ सकता है। चुनाव नतीजों के हिसाब से आने वाले दिनों में मोदी सरकार राम मंदिर सहित कई दूसरे बड़े फैसले ले सकती है। वहीं कई मामलों में मोदी सरकार का स्टैंड भी बदल सकता है। लोकतंत्र में किसी भी पार्टी को किसी गलतफहमी में नहीं रहना चाहिए, क्योंकि लोकतंत्र में मतदाता सर्वोपरि होता है। इन राज्यों में जो भाजपा को करारी हार मिली है, उसकी हार का ठीकरा केंद्र की मोदी सरकार के सिर फोड़ना सरासर गलत होगा, क्योंकि आमजन विधानसभा और लोकसभा चुनाव को अलग अलग नजरिए से देखते हुए अपने कीमती वोट का प्रयोग करता है। फिर भी भाजपा को अपनी हार का मंथन जरूर करना चाहिए। 2019 का अगर भाजपा को चुनाव जीतना है, तो उसे अभी से ही हर राज्य, वहां चाहे किसी भी पार्टी की सरकार क्यों न हो, में आमजन से जुडे मुद्दों की ओर ध्यान देना होगा। कुल मिलकार इन नतीजों ने मोदी के लिये 2019 का मुकाबला कड़ा व कांटेदार कर दिया है।


-आशीष वशिष्ठ
स्वतंत्र पत्रकार
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