गौ-आतंकियों की हिंसा को जनभावना कहना संविधान का अपमान- रिहाई मंच
लखनऊ: रिहाई मंच नेता राजीव यादव ने कहा कि इंस्पेक्टर सुबोध कुमार के पार्थिव शरीर को शहीद की तरह सम्मान न दिया जाना और योगी आदित्यनाथ द्वारा सिर्फ गाय पर बयान देना साफ करता है कि उन्हें सुबोध से ज्यादा उन गौ-आतंकियों की चिंता है जिन्होंने इंस्पेक्टर को मार डाला। अपने पुलिस कर्मी की हत्या पर सरकार की आपराधिक भूमिका इसी से जाहिर होती है कि एसआईटी की जांच तो क्या, अब तक टीम का ही कोई अतापता नहीं है। जबकि यह बात आ चुकी है कि मिला अवषेष 48 घंटे पुराना था।
रिहाई मंच ने कहा कि गाय के नाम पर संगठित भीड़ के हमले पर सरकार कह रही है कि इस तरह के प्रदर्शन का मौका तभी मिलता है जब गौतस्करी या गौकशी हो रही हो। उसे ये भी बताना चाहिए कि हथियारों से लैस होकर गाय का सर सड़क पर उछालना कैसा पप्रदर्शन है, किस तरह की जनभावना है। वहीं बजरंग दल, भाजयुमो, विहिप द्वारा की गई हिंसा को जनभावना कहना और इन संगठनों का नाम तक लेने से बचना संघी संगठनों के खौफ के सामने प्रशासनिक अधिकारियों की निरीहता को दर्शाता है। गौहत्या में कुंदन का नाम आने के बाद यह स्पष्ट हो गया है कि बजरंग दल जैसे संघी संगठन गौहत्या करते है और नाबालिग मुस्लिम बच्चों तक को आरोपी बना देते हैं। मोदी-योगी सरकार के संरक्षण में इस तरह गौ-आतंकी देश को आग में झोंक रहे हैं।
मुख्य आरोपी योगेश राज जब वीडियो वायरल कर खुद को बजरंग दल का बता रहा है तो आखिर योगी सरकार उसका नाम लेने में क्यों बगलें झांक रही है। बेहतर हो कि विभिन्न सांप्रदायिक हिंसा के मामलों के आरोपी योगी स्पष्ट आदेश जारी कर दें कि हिंसा में लिप्त किसी भी संघी संगठन पर कोई कार्रवाई न की जाए। भाजयुमो के शिखर अग्रवाल ने अपने वीडियो में कर्तव्य निर्वहन करते हुए मारे गए इंस्पेक्टर सुबोध पर मुस्लिमों से यारी का हवाला देकर साफ कर दिया कि वे उनके निशाने पर पहले से थे। इस बात की पुष्टि सांसद भोला सिंह का पत्र भी करता है। हिंसक प्रदर्शन के दौरान सुमित की पत्थरबाजी और हमले का वीडियो वायरल हो चुका है तो किस आधार पर उसको दस लाख रुपया मुआवजा देने और प्रशासन एफआईआर से उसका नाम हटाने की बात कर रहा है।