लोकसभा संग्राम 28–मोदी की भाजपा का 31 प्रतिशत वोट सुरक्षा कवच में रखना हुआ मुश्किल
जयपुर से तौसीफ़ क़ुरैशी
जयपुर। जैसे-जैसे देश लोकसभा चुनाव की ओर बढ़ता जा रहा है वैसे-वैसे ही मोदी की भाजपा की मुश्किलें भी बढ़ती जा रही है पाँच राज्यों में हुए या हो रहे विधानसभा चुनावों को मोदी की भाजपा साम्प्रदायिकता की राह पर ले जाने में नाकाम हुई है इन चुनावों में जीत किसकी होगी यह तो आने वाली 11 दिसम्बर को मालूम चलेगा लेकिन इतना ज़रूर पता चल गया है कि यह चुनाव साम्प्रदायिकता की भेंट नही चढ़े हालाँकि मोदी की भाजपा की हर संभव कोशिश रही कि किसी तरह यह चुनाव साम्प्रदायिक हो जाए उसके लिए उन्होंने अयोध्या में धर्म संसद बुलवाकर यह संदेश देने का प्रयास किया कि हम राम मन्दिर के लिए प्रयास कर रहे है लेकिन बहुसंख्यक वर्ग यानी हिन्दू समाज ने इस मुद्दे की हवा निकाल दी क्योंकि इसमें शामिल होने वाली संख्या को इतनी भारी संख्या बतायी जा रही थी लेकिन हुआ उसका उलटा मुश्किल तमाम चालीस हज़ार लोगों के पहुँचने की जानकारियाँ सामने आ रही है जिससे मोदी की भाजपा के साम्प्रदायिक ग़ुब्बारे की हवा निकलती जा रही है उससे भयभीत मोदी की भाजपा व उसकी रणनीतिकार RSS तरह-तरह के फ़ार्मूले पेशकर देश को 2014 वाले ट्रैक पर ले जाने का भरपूर्व प्रयास कर रहा है लेकिन बहुसंख्यक वर्ग के साथ-साथ मुसलमान भी इनकी रणनीतिक चालों को नाकाम करने का प्रयास कर रहे है अयोध्या में धर्म संसद इसी कूटनीति व रणनीतिक चाल का हिस्सा थी इससे पहले भी मुसलमानों को आक्रोशित करने के प्रयास किए लेकिन मुसलमानों ने टकराव की स्थिति पैदा ही नही होने दी तलाक़ का मामला भी उसी कूटनीतिक चाल का हिस्सा थी लेकिन मुसलमान ने इसे भी नाकाम कर दिया कोई रिएक्शन नही किया जबकि यह उसके धार्मिक मामलों में सीधा-सीधा हस्तक्षेप था लेकिन मुस्लिमों ने इसपर कोई ख़ास तवज्जो नही दी इतना ही नही मुस्लिम औरतों ने इसको ग़लत क़रार दिया यहाँ भी फेल हो गई और भी बहुत दलील है जिससे यह साबित होता है कि मोदी की भाजपा व RSS साम्प्रदायिक ग़ुब्बारे की हवा न निकले ऐसे मार्ग बनाती रहती है लेकिन न तो बहुसंख्यक और न ही मुसलमान उनके मकड़जाल में फँस नही रहा है इसी लिए हैरान परेशान मोदी की भाजपा व RSS को कुछ सूझ नही रहा कि किस तरह 31 प्रतिशत वोट को सहेज कर रखे हालाँकि इस 31 प्रतिशत वोट में 15-16 प्रतिशत वोट ऐसा है जो साम्प्रदायिकता को पंसद नही करता वह RSS के द्वारा स्वयंभू गुजरात मॉडल के जाल में फँस गए थे हिन्दुस्तान में साम्प्रदायिकता की कोई गुंजाईश नही है चाहे बहुसंख्यक हिन्दु हो या मुसलमान दोनों ही इसे एक सिरे से नकारते है यह बात हिन्दुस्तान का इतिहास बताता है हालाँकि कुछ ज़मीर फरोश मुस्लिम RSS के एजेंडे को टीवी पर बैठकर उलटी सीधी डिबेटो में हिस्सा लेकर ऐसे मामलों को बेवजह तूल देते है जिनको समाज तवज्जो ही नही देना चाहता है।इस लिए मुझे यह कहने में गुरेज़ नही कि आगामी लोकसभा चुनाव 2019 विकास के मुद्दे पर होगा जिसमें मोदी की भाजपा असफल सी दिखती है क्योंकि वही चाहती है कि चुनाव साम्प्रदायिकता के आधार पर हो विकास उसका मुद्दा ही नही लगता अगर वह विकास पर चुनाव लड़ना व जीतना जानती तो कभी भी साम्प्रदायिकता के आधार पर चुनाव को ग़लत राह न पकड़ने देते।हनुमान को दलित बताना अली और बजरंगबली की बातें करना क्या बतलाता है लेकिन उसकी इस तरह की सभी स्ट्रेटेजी फेल हो रही है।राजस्थान के विधानसभा चुनाव में तो इतनी बुरी तरह से हार होने के क़यास लग रहे है कि हम कल्पना भी नही कर सकते हर मोर्चे पर मोदी की भाजपा के पास कोई जवाब नही है चाहे किसानों का मुद्दा हो या बेरोज़गारी , महँगाई व आर्थिक हालात भी ठीक नही है इस लिए वह इन सब मुद्दों पर चर्चा करने से बच रही है।अब यह तो आने वाले दिनों में और साफ हो जाएगा कि साम्प्रदायिकता का मकड़जाल जीतता है या सब का साथ सबका विकास पाँचो प्रदेश के विधानसभा चुनाव के परिणाम यह तय करेगे कि आगामी चुनाव का ट्रैक क्या होगा।