समाज और साहित्य एक दूसरे के परस्पर अवलम्बी हैं: राम नाईक
राज्यपाल ने किया साहित्य महोत्सव ‘शब्द रंग’ का उद्घाटन
लखनऊः उत्तर प्रदेश के राज्यपाल राम नाईक ने आज डाॅ0 राम मनोहर लोहिया विधि विश्वविद्यालय में उत्तर प्रदेश भाषा संस्थान, थिंक इण्डिया एवं कलाम मंच के संयुक्त तत्वावधान में आयोजित साहित्य महोत्सव ‘शब्द रंग’ का उद्घाटन किया। इस अवसर पर डाॅ0 राम मनोहर लोहिया विधि विश्वविद्यालय के कुलपति प्रो0 एस0के0 भटनागर, नागपुर से आये राज्य विश्वविद्यालय कार्य प्रमुख अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद श्री हरि बोरिकर, सुप्रसिद्ध पटकथा लेखिका सुश्री अद्वैता काला, उत्तर प्रदेश भाषा संस्थान के कार्यकारी अध्यक्ष डाॅ0 राज नारायण शुक्ल, राष्ट्रीय कला मंच के प्रांत संयोजक श्री गौरव अवस्थी, थिंक इण्डिया के प्रांत संयोजक श्री सिद्धार्थ दुबे सहित बड़ी संख्या में विशिष्टजन व विश्वविद्यालय के छात्र-छात्राएं उपस्थित थीं।
राज्यपाल ने इस अवसर पर अपने विचार व्यक्त करते हुये कहा कि साहित्य समाज का दर्पण होता है। साहित्य की मूल चेतना और भावना अथवा आधार मानव और समाज की उन्नति है। वास्तव में आत्मा और शरीर का जो संबंध है वही संबंध साहित्य और समाज का भी है। साहित्यकार जिस साहित्य की रचना करता है उसकी जड़ें समाज से ही विषय वस्तु प्राप्त करती हैं। आदिकाल, भक्तिकाल और आधुनिक काल में जिस साहित्य की सृजना हुई वह तत्कालीन समाज का दर्पण है। शब्द, भाषा एवं भाव का उपयोग लोगों को जोड़ने के लिये किया जाना चाहिये। साहित्य को देखने के अलग-अलग दृष्टिकोण हो सकते हैं। उन्होंने कहा कि समाज और साहित्य एक दूसरे के परस्पर अवलम्बी हैं।
श्री नाईक ने कहा कि सुखद संयोग है कि आज साहित्य महोत्सव का उद्घाटन ‘संविधान दिवस’ के अवसर पर किया जा रहा है। संविधान को अंगीकार किये हुये 68 वर्ष हो गये हैं। इतना बड़ा देश जिसमें 29 प्रदेश, 6 संघ शासित राज्य हैं, सबकी अपनी-अपनी भाषायें हैं परन्तु पूरा देश एक संविधान से बंधा है। संविधान के शिल्पी बाबा साहेब ने देश के सबसे बड़े साहित्य की रचना की थी। उन्होंने इस बात पर चिंता भी व्यक्त की कि पूर्व में कई जगह संविधान शिल्पी बाबा साहेब का सही नाम नहीं लिखा जाता था जिसे उनके प्रयास से ठीक किया गया। आपातकाल को छोड़ दिया जाये तो देश का संचालन संविधान के अनुरूप सफलता से आज तक संचालित हो रहा है। संविधान के प्रति हम प्रतिबद्ध हैं। उन्होंने कहा कि संविधान के शब्द और प्रस्तुतिकरण भी संुदर हैं तथा देश को चलाने के लिये संविधान सक्षम है।
राज्यपाल ने उपस्थित छात्र-छात्राओं को व्यक्तित्व विकास और जीवन में सफलता प्राप्त करने के लिये चार मंत्र बताते हुये कहा कि सदैव मुस्कुराते रहें, दूसरों की सराहना करना सीखें, दूसरों की अवमानना न करें क्योंकि यह गति अवरोधक का कार्य करती हैं, अहंकार से दूर रहें तथा हर काम को अधिक अच्छा करने पर विचार करें। राज्यपाल ने उच्च शिक्षा में महिलाओं के बढ़ रहे प्रतिशत पर प्रसन्नता व्यक्त करते हुये कहा कि यह महिला सशक्तीकरण का शुभ संकेत है। सूरज की तरह जगत वंदनीय होने के लिए निरन्तर आगे बढ़ते रहें। उन्होंने ‘चरैवेति! चरैवेति!!’ को उद्धृत करते हुए कहा कि सफलता का मर्म निरन्तर आगे बढ़ने में है।
श्री हरि बोरिकर ने अपने विचार व्यक्त करते हुये कहा कि बाबा साहेब ने पूरे देश को एक संविधान दिया। युवा संविधान को पढ़ें, समझें और उसे व्यवहार में लायें। साहित्य में ऐसे शब्दों का चुनाव हो जो युवाओं को देश के प्रति समर्पित होने की प्रेरणा दें। उन्होंने कहा कि साहित्य से समाज में सकारात्मक परिवर्तन हो सकता है।
सुश्री अद्वैता काला ने अपने विचार व्यक्त करते हुये कहा कि साहित्य लेखन में शब्दों का प्रयोग एवं चुनाव सबसे महत्वूपर्ण होता है। उन्होंने कहा कि साहित्य में निष्पक्षता ही उसकी पूंजी है।
कार्यक्रम में उत्तर प्रदेश भाषा संस्थान के कार्यकारी अध्यक्ष डाॅ0 राज नारायण शुक्ल ने कार्यक्रम की रूपरेखा पर चर्चा की तथा कुलपति प्रो0 एस0के0 भटनागर ने स्वागत उद्बोधन दिया।