कहा- पता चलता है नीचे कितना गिर सकते हो
नई दिल्ली: सुप्रीम कोर्ट ने दिल्ली भाजपा प्रमुख और सांसद मनोज तिवारी के खिलाफ चल रही अवमानना की कार्रवाई गुरुवार (22 नवंबर, 2018) को बंद कर दी। हालांकि कोर्ट ने कानून हाथ में लेने के लिए तिवारी की खूब निंदा की। स्थानीय निकाय द्वारा एक परिसर पर लगाई गई सील सितंबर में तोड़ने के सिलसिले में तिवारी के खिलाफ अवमानना की कार्रवाई चल रही थी। न्यायमूर्ति मदन बी. लोकूर की अध्यक्षता वाली पीठ ने तिवारी की निंदा करते हुए कहा कि कोर्ट उनके इस व्यवहार से ‘बेहद दुखी’ है क्योंकि निर्वाचित प्रतिनिधि होने के नाते उन्हें जिम्मेदाराना तरीके से व्यवहार करना चाहिए। पीठ ने कहा कि तिवारी ने अदालत से अधिकार प्राप्त समिति के खिलाफ ओछे आरोप लगाए जिससे पता चलता है कि ‘वह कितना नीचे गिर सकते हैं।’ कोर्ट ने यह भी कहा कि ‘गलत राजनीतिक दुष्प्रचार के लिए कोई जगह नहीं है’ और इनकी निंदा की जानी चाहिए। कोर्ट ने 19 सितंबर को तिवारी के खिलाफ अवमानना का नोटिस जारी किया था। उत्तर पूर्व दिल्ली के गोकलपुरी इलाके में सीलिंग के चलते लगाई गई एक सील मनोज तिवारी ने तोड़ दी थी। तब उनके खिलाफ ईडीएमसी ने प्राथमिकी दर्ज कराई थी। इस परिसंपत्ति को पूर्वी दिल्ली नगर निगम (ईडीएमसी) ने सील किया था।

इससे पहले न्यायमूर्ति मदन बी. लोकुर की अध्यक्षता वाली पीठ ने मामले में दलीलें सुनने के बाद 30 अक्टूबर को अपना आदेश सुरक्षित रख लिया था। दलीलें पेश किए जाने के दौरान तिवारी ने अदालत से अधिकार प्राप्त निगरानी समिति पर आरोप लगाया था कि वह सीलिंग के मुद्दे पर दिल्ली के लोगों को आतंकित कर रही है। हालांकि, समिति ने दावा किया कि वह (तिवारी) अदालत को राजनीतिक अखाड़ा बनाने की कोशिश कर रहे हैं। शीर्ष न्यायालय ने निगरानी समिति द्वारा दाखिल रिपोर्ट पर संज्ञान लेने के बाद उत्तर पूर्व दिल्ली से लोकसभा सदस्य तिवारी के खिलाफ 19 सितंबर को अवमानना नोटिस जारी किया था। रिपोर्ट में आरोप लगाया था कि भाजपा नेता ने परिसर की सील तोड़ी है।

वहीं, तिवारी ने कोर्ट के समक्ष दलील दी कि समिति ने अपने अधिकार क्षेत्र का उल्लंघन किया और यहां अनधिकृत कॉलोनियों में सीलिंग अभियान चलाया गया, जो कानून के तहत संरक्षण प्राप्त हैं। भाजपा नेता की ओर से पेश हुए वरिष्ठ अधिवक्ता विकास सिंह ने पीठ के समक्ष आरोप लगाया था कि निगरानी समिति दिल्ली के लोगों को आतंकित करना चाहती है। यह सिर्फ प्रचार के लिए किया जा रहा है। उन्होंने दलील दी कि इस मामले में शीर्ष न्यायालय के आदेश का कोई उल्लंघन नहीं किया गया है।

गौरतलब है कि शीर्ष न्यायालय ने इससे पहले अपनी 2006 की निगरानी समिति को बहाल करने का आदेश दिया था ताकि दिल्ली में अनधिकृत ढांचों की पहचान की जा सके और उन्हें सील किया जा सके। इस समिति का गठन 24 मार्च 2006 को किया गया था।