लोकसभा संग्राम 18–पांच राज्यों के चुनावों में जादू चलता न देख मोदी की भाजपा ने लगाया ओवैसी का तड़का
लखनऊ से तौसीफ़ क़ुरैशी
राज्य मुख्यालय लखनऊ।पाँच राज्यों में हो रहे विधानसभा चुनावों में जनता पर साम्प्रदायिक रंग न चढ़ता देख मोदी की भाजपा व उसके रणनीतिकार यह सोचने पर मजबूर थे कि किस तरह लोगों की भावनाओं से खिलवाड़ किया जाएँ उनको कोई रास्ता नही सूझ रहा था इसी बीच मोदी की भाजपा ने ओवैसी का तड़का लगाया अपने विवादित बयानों को लेकर चर्चा में रहने वाले असदउद्दीन ओवैसी का मोदी की भाजपा के स्वयंभू चाण्क्य समझने वाले अमित शाह के बयान कि हम हैदराबाद को ओवैसी मुक्त चाहते है इस बे मतलब बयान पर प्रतिक्रिया दी कि मोदी की भाजपा भारत को मुसलमान मुक्त भारत बनाना चाहती है ओवैसी के बयान के बाद गोदी मीडिया ने अपना काम शुरू कर दिया लग गए हिन्दु-मुसलमान करने में आजकल एक फ़ैशन सा चल रहा कि टीवी डिबेट में कई तरह के लोगों को बैठा कर चर्चा कराई जाती है चर्चा कराना कोई ग़लत बात भी नही है होनी भी चाहिए पर उसके कराने का जो तरीका खोज निकाला है वह बहुत ग़लत है क्या करते है मुसलमानों में से किसी भी टोपी व दाढ़ी वाले को बुलाया जाता है और उनके के आगे लिखा जाता है कि फला नाम मुस्लिम धर्म के जानकार आदि-आदि कई नाम दिए जाते है जो बिलकुल ग़लत है उनको कोई जानकारी नही होती परन्तु उनका काम सिर्फ़ जनता में यह संदेश देना होता है कि देखो किस तरह मुसलमान बोल रहा है जिसके पास कुछ नही है लेकिन उनमें भी टीवी पर जाने की होड़ रहती है जो तथ्यात्मक बात नही कर सकते उनको ही बुलाया जाता है वही एक और खेल हो रहा है किसी को भी बुलाकर लिखा जाता है कि फला नारंग फला सारंग आरएसएस के जानकार अब वह दोनों बैठ जाते है एक दूसरे में कमियाँ निकालने और जनता को गुमराह करने में ख़ैर यह बात अपनी जगह है पर सवाल यह उठता है कि ये आरएसएस या मुस्लिम जानकार की डिग्री कहाँ से मिलती है इसका भी पता चलना चाहिए ताकि वहाँ जाकर मालूम किया जाए कि किस तरह आप विशेषज्ञ बनाते हो।ख़ैर हम बात कर रहे थे असदउद्दीन ओवैसी के उस बयान की जिसमें उन्होंने कहा कि मोदी की भाजपा भारत को मुसलमान मुक्त बनाने की तैयारी कर रही है मैं ये पूछना चाहता हूँ ओवैसी से कि साढ़े चार साल हो गए मोदी को सत्ता में बने हुए उनसे वो काम नही हो सका जिसके रथ पर वह सवार होकर आई थी मोदी की भाजपा के पास सियासी अनुभव की कमी है वह कुछ नही कर सकती वह जो कुछ कर सकती है वो कर रही है जनता का ध्यान मूल मुद्दों से भटकाना जिसपर वह बख़ूबी अंजाम दे रही है और आप जैसे बैरिस्टर भी जब उनके काम को आसान करने का काम करेगे तो रोने के अलावा कोई चारा नही सूझता अरे भाई वह कुछ नही करने वाली न उस पर कुछ करना आता वह तो बस बेवक़ूफ़ बनाने की मशीन है उसकी मशीन का चारा बनने के बजाए अपने काम से काम रखना चाहिए फजूल की बातें न कर इस पर चर्चा होनी चाहिए कि गुज़रे साढ़े सार सालों में क्या किया गया जो वायदे करके सत्ता पाई थी उन वायदों में से कितने वायदे पूरे किए और कितने पूरे होने को है पर नही ये बात करेगे हिन्दु-मुसलमान की मन्दिर की मस्जिद की गाय की भैंस की हमें क्या खाना चाहिए क्या नही हमने सरकार बनाई थी देश को विकास के रास्ते आगे ले जाने की अपने देश की सरहदों की हिफ़ाज़त करने की न कि ये सब करने की हमें इसपर विचार करना चाहिए कि जो भी सियासी नेता इधर-उधर की बातें कर ध्यान भटकाने का काम करते हो उनको एक सिरे से नकार देना चाहिए वह चाहे कोई हो हमें इसका ख़याल नही रखना चाहिए कि सामने वाला कौन है ऐसा लगता है कि असदउद्दीन ओवैसी मोदी की भाजपा की बी टीम है जो ऐसी भाषा का प्रयोग करते है पर यह ख़ुशी भी है कि कम से कम ओवैसी मुसलमान की आईडियोलोजी नही है कोई कुछ भी कहे इससे क्या फ़र्क़ पड़ता है जब उसको या उसकी सोच को जनता स्वीकार नही करती फ़र्क़ जब पड़ता है जब उसकी आईडियोलोजी को स्वीकार किया जाए सत्ता में आने से पहले बड़ी-बड़ी बातें की गई थी कि हमारे आने के बाद चीन से हम आँख में आँख डालकर बात करेगे डोकलाम पर क्या हो रहा कोई यह न पूछ ले पाकिस्तान के पीएम नवाज़ शरीफ़ के यहाँ बिन बुलाए क्यों गए कोई इस पर सवाल न कर ले इससे बचने के लिए मोदी की भाजपा यह सब कर रही है एक शायर ने बहुत अच्छा कहा कि जो ये कहता था कि मैं सूरज हूँ करूँगा रोशनी,उसके आते ही अंधेरा और गहरा हो गया दिन भी सूना रात भी वीरा और सहर भी काली है हर चेहरे पर खोफ ये क्या ख़ुशहाली है,मौलवी नही साधू नही मदारी है ज़रा ये सोचो जब भी कही फ़साद हुआ तो क्या इन्हें भी किसी ने लहू से तर देखा ये मज़हबी नही ये सिर्फ़ कारोबारी है, है रहनुमा तो सफ़र साथ क्यों नही करते ग़रीब मरते है ये लोग क्यों नही मरते ये आश्रम के पुजारी ये कार वाले इमाम ये बे ज़मीर है दोनों हुकूमतों के ग़ुलाम जो इनसे कहते है हाकिम क़ुबूल करते है हमें आपस में लड़ाने की क़ीमत वसूल करते है समझ लिया जिसे मज़हबी झगड़ा दरअसल सारा करिश्मा है सियासत का है रहनुमाओं के सीने में कल्ब पत्थर के, ये लोग राम के हमर्दद है न बाबर के है| बेवक़ूफ़ जो जोश में आकर संभाल लेते है ख़ंजर एक दूसरे के सीने पर तमाम शहर को विरान कर देते हैं हर एक कूचे को शमशान करने लगते हैं|
चलाते है फ़साद जिनके कहने पर
कि हम खाते है तलवार जिनके कहने पर
वो अपने महलों में चैन से सोते है
हमारे फूल से बच्चे यतीम होते हैं
मैं झूठ बोल रहा हूँ तो यार मत सुनना
तुम अपने होठों से खार मत चुनना
है मेरी बात गर सच तो फिर अज़्म करो
कि दुश्मनी, ये तअस्सुब दिलों से ख़त्म करो
कोई भी मसला जंगों से हल नही होता
कि इख़्तेलाफ़ किसी का बदल नही होता'
'ये तय करो कि न लहू देंगे नफ़रतों के लिए
बचा के रखेंगे ये लहू सरहदों के लिए
"चलो कि बिगड़ी शमा यूँ सवार ली जाएँ
लड़ाने वालों की गर्दन उतार ली जाएँ
हम सबको एक साथ चलकर इस देश को आगे ले जाना है इसी रास्ते पर चलने वालों को आगे करना होगा।