लखनऊ से तौसीफ़ क़ुरैशी

राज्य मुख्यालय लखनऊ।नफ़रत की सियासत करने वाले एक बार फिर देश के सियासी माहौल को नफ़रत से भर देने का जीतोड़ असफल प्रयास कर रहे है नफ़रत से भरी सहेज को प्यारी न समझना नागपुरियां आईडियोलोजी को कभी राजदुलारी न समझना यही सोच है जो हिन्दु-मुसलमान कर काफ़ी दिनों से अपना सियासी उल्लू सीधा करती चली आ रही है 2014 में इसके वायदों पर यक़ीन कर जनता ने देश की सत्ता इनके हाथों में सौंपी थी परन्तु किसी भी वायदे पर खरी नहीं उतरी अयोध्या में भव्य राममन्दिर बनाने को बेहद संवेदनशील मुद्दा बना देने वाले संघ परिवार सहित उससे जुड़े अराजकता फैलाने वाले संगठनों ने बीते साढ़े चार साल में अयोध्या में राममन्दिर को लेकर को लेकर कोई सकारात्मक पहल नहीं की अब सब इस तरह के संगठन ही हो हल्ला मचा रहे है अराजकता शब्द का प्रयोग इस लिए किया है जब-जब देश व प्रदेशों में माहौल ख़राब होता है यही संगठन है जिनकी वजह से माहौल ख़राब होते है यह बात किसी छिपी नही है, क्योंकि 2019 के आमचुनाव होने का टाइम नज़दीक आ गया है इसी लिए इसको चुनावी मुद्दा बनाने की तैयारी चल रही ताकि मोदी सरकार से कोई बीती सरकार का हिसाब न माँग सके और वह अपनी सियासी काँठ की हांडी एक बार फिर सत्ता की भट्टी पर चढ़ा सके लेकिन लगता है नागपुरियां सोच इस बार फ़ेल हो रही है क्योंकि जिस तरह का माहौल यह आईडियोलोजी चाहती थी उस तरह का माहौल बनता नहीं दिख रहा है जिसके बाद संघ परिवार हताश नज़र आ रहा है उनकी योजना यह है कि इस मुद्दे पर जनता से एक मौक़ा और माँगेंगे की राममन्दिर बनाने के लिए नरेन्द्र मोदी को 2019 में एक मौक़ा और दीजिए यह कहा जाएगा, लेकिन अभी तक ऐसा नहीं लग रहा कि संघ और बद (बजरंग दल) की नीति को जनता सीरियस ले रही है।राममंदिर मुद्दा गीले पटाखे की तरह फुस्स होता नजर आ रहा है।संघ और मोदी की भाजपा चाहते थे कि मोदी का कार्यकाल खत्म होने के आखिरी दिनों में राममंदिर निर्माण पर बहस शुरू करा कर देश में नफरत का माहौल पैदा कर दिया जाए जिससे हिन्दू-मुस्लिम फिर बट जाएं।मगर ये फार्मूला भी फेल हो गया।क्योंकि मुसलमानों की तरफ से कोई विपरीत प्रतिक्रिया नही हुई बल्कि कुछ मुस्लिम धर्मगुरुओं ने राममंदिर निर्माण की तारीख मोदी की भाजपा से पूछ ली।संघ और मोदी की भाजपा अब चाहते हैं कि हिंदुओं से कहा जाए कि भव्य राममंदिर निर्माण के लिए मोदी को एक बार और सत्ता में लाना ज़रूरी है।
क्योंकि बेरोजगारी महंगाई और नोटबन्दी से बेहाल जनता का ध्यान धार्मिक भावनाओं की तरफ ले जाना है।वरना मोदी की भाजपा को मालूम है कि उसका क्या अंजाम होने वाला है।कर्नाटका उपचुनाव में जनता ने संदेश साफ दे दिया है तीन लोकसभा सीट में से मोदी की भाजपा ने 2 गंवा दी एक सीट जो जीती भी उसमें मोदी की भाजपा का कोई योगदान नही है वह कर्नाटका के पूर्व सीएम येदुरपा का अपना मामला है उनका बेटा जीता न की मोदी की भाजपा , इससे पूर्व यूपी में भी तीन लोकसभा सीटों पर हुए उपचुनाव में तीनों गोरखपुर फूलपुर और कैराना और बिजनौर की नूरपुर विधानसभा सीटें मोदी की भाजपा के हाथ से निकल गई यहाँ यह भी बताना ज़रूरी है कि गोरखपुर लोकसभा सीट से सांसद हिन्दुवादी नेता वर्तमान मुख्यमंत्री यूपी योगी आदित्यनाथ के राज्य का मुख्यमंत्री बनने से ख़ाली हुई थी और फूलपुर लोकसभा सीट राज्य भाजपा के अध्यक्ष रहे केशव प्रसाद मौर्य के उप मुख्यमंत्री बनने से ख़ाली हुई थी और यही मौर्य मुख्यमंत्री बनने के भी दावेदार थे लेकिन पिछड़े होने की वजह से नही बने और वह अभी तक है बनने की इच्छा रखते है , तीसरी सीट हुकुम सिंह के निधन से ख़ाली हुई थी ये वही हुकुम सिंह थे जिन्होंने यूपी विधानसभा चुनाव से पूर्व कैराना से हिन्दुओं के पलायन का मुद्दा उठाया था जिसे कुछ दिनों के बाद उन्होंने यह कह कर वापिस लिया था कि मेरा कहने का मतलब यह नहीं था लेकिन तब तक वह हो चुका था जो संघ परिवार चाहता था इसके बावजूद तीनों सीटों पर जनता ने मोदी की भाजपा को बुरी तरह हराया था कैराना के उप चुनाव में तो मोदी ने पास के जनपद बागपत में एक मात्र आठ किमी सड़क के उद्घाटन को बहाना बना कर रोड शो भी किया था जिसका लाइव प्रसारण कराया गया था पर फिर भी हार हुई थी यह हाल हो गया है मोदी के मैजिक का उसी की काट को संघ परिवार व नरेंद्र मोदी राम मन्दिर के मुद्दे पर सवार होकर 2019 जीतना चाहते है अब यह जनता तय करेगी की क्या वह एक बार फिर झूठ के रथ में सवार लोगों पर भरोसा करेगी या उन्हें सत्ता से बेदख़ल कर उनके सियासी पापों की सज़ा देगी यही सवाल लोगों के ज़हन में घूम रहे है जो माहौल संघ परिवार व मोदी सरकार चाहती थी उस तरह का माहौल बनता नहीं दिख रहा है जिससे उसकी पेशानी पर चिन्ता की लकीरें साफ़ नज़र आ रही है।अध्यादेश लाना कोई बड़ी बात नही वह ला सकती है पर गठबंधन के साथी दल है मोदी की भाजपा के विपरीत दिशा वाले वह न भाग जाए इसका भय सता रहा है अगर वह भागे तो मोदी की भाजपा को मिले 31% वोटों में कमी आ जाएगी वह मात्र 18-20% पर आने की कगार पर आ सकता है उसी से बचने के लिए तरह तरह के फ़ण्डे इस्तेमाल कर रही है जो लगता है ना काफ़ी है अब उसकी नय्या पार होना कठिन लग रही है।