सरकार ने माना, वित्तीय संकट से गुज़र रहा है गैर बैंकिंग सेक्टर और हाउसिंग फायनेंस कंपनियां
नई दिल्ली: भारत का गैर बैंकिंग सेक्टर (NBFC) और हाउसिंग फायनेंस कंपनियां (HFC) गंभीर वित्तीय संकट से गुजर रही हैं। लिक्विडिटी क्रंच (फंड की कमी) के कारण हालात और भी खराब हो हो गए हैं। आर्थिक मामलों के विभाग (DEA) ने कंपनी मामलों के मंत्रालय को पत्र लिखकर मौजूदा स्थिति पर गंभीर चिंता जताई है। DEA का कहना है कि यदि आने वाले 6 सप्ताह में बाजार में (डेट मार्केट) पर्याप्त पैसों की आपूर्ति नहीं की गई तो कई नॉन-बैंकिंग फायनेंस और हाउसिंग फायनेंस कंपनियों के सामने डिफॉल्ट होने का खतरा पैदा हो जाएगा। DEA ने अपने पत्र में इस स्थिति से बचने के लिए बाजार में अविलंब अतिरिक्त फंड मुहैया कराने की बात कही है। DEA ने कंपनी मामलों के मंत्रालय को 26 अक्टूबर को चिट्ठी लिखी थी। इसमें इंफ्रास्ट्रक्चर लिजिंग एंड फाइनेंशियल सर्विसेज (IL&FS) के डिफॉल्ट घोषित होने के बाद वित्तीय स्थायित्व पर पड़ने वाले प्रभावों की चर्चा की गई है। बता दें कि IL&FS 91,000 करोड़ रुपये का लोन चुकता करने में विफल रही थी, जिसके बाद वित्तीय स्थायित्व को बरकरार रखने के लिए केंद्र सरकार को दखल देना पड़ा था। केंद्र ने IL&FS के बोर्ड को भंग कर नया बोर्ड भी गठित कर दिया है। DEA ने स्पष्ट शब्दों में मौजूदा वित्तीय स्थिति को कमजोर करार दिया है। ‘मनीकंट्रोल’ की रिपोर्ट में इस पत्र का हवाला देते हुए कहा गया है कि पैसों की किल्लत को दूर न करने से आर्थिक विकास पर गंभीर प्रतिकूल असर पड़ेगा। बता दें कि कंपनी मामलों के मंत्रालय की जिम्मेदारी भी वित्त मंत्री अरुण जेटली के पास है।
कंपनी मामलों के मंत्रालय को लिखे पत्र में DEA ने कहा कि यह स्थिति ऐसे समय उत्पन्न हुई है जब भारत दुनिया की सबसे तेज रफ्तार से बढ़ती अर्थव्यवस्था के तौर पर सामने आया है। DEA के मुताबिक, NBFC और HFC को दिसंबर, 2018 के अंत तक तकरीबन 2 लाख करोड़ रुपये का लोन चुकता करना है। आर्थिक मामलों के विभाग का मानना है कि अगर फंड जुटाने की रफ्तार अक्टूबर के पहले हाफ की तरह ही रही तो साल के अंत तक 1 लाख करोड़ रुपये का गैप आ जाएगा। DEA के अनुसार, अक्टूबर के पहले हाफ में अगस्त की तुलना में फंड जुटाने की दर 68% (महज 20,000 करोड़ रुपये) तक कम रही। इसके अलावा कंपनी मामलों के मंत्रालय को यह भी बताया गया है कि जनवरी-मार्च 2019 की अवधि में 2.7 लाख करोड़ रुपये भी चुकाने हैं। DEA ने लिखा, ‘अतिरिक्त फंड न मिलने की स्थिति में 6 सप्ताह के अंदर कई NBFC और HFC डिफॉल्ट के कगार पर आ जाएंगी। इससे बेहतर उत्पादन करने वाले सेक्टर पर प्रतिकूल असर पड़ेगा।’
RBI और केंद्र सरकार के बीच टकराव की वजह: जोखिम वाले कर्ज (NPA) की समस्या को देखते हुए RBI ने लोन देने और वसूली के मानक बेहद सख्त कर दिए हैं। इसके कारण बैंकिंग सेक्टर भी सतर्क हो गया है और कर्ज देने में अतिरिक्त सतर्कता बरत रहा है। खासकर कमजोर वित्तीय स्थिति वाले बैंकों के लिए कर्ज देना और कठिन हो गया है। आरबीआई ने लोन देने और उसकी वसूली में कोताही बरतने वाले सरकारी क्षेत्र के कई बैंकों को पीसीए (प्रॉम्प्ट करेक्टिव मेजर) की श्रेणी में डाल दिया है। ऐसे में इन बैंकों के लिए कर्ज देना आसान नहीं रह गया है, लिहाजा बाजार में लिक्विडिटी क्रंच की स्थिति उत्पन्न हो गई है। इससे NBFC और HFC के सामने गंभीर आर्थिक संकट की स्थिति उत्पन्न हो गई है। मोदी सरकार चाहती है कि आरबीआई बाजार में पर्याप्त फंड मुहैया कराने के लिए और उपाय करे। साथ ही कमजोर वित्तीय स्थिति वाले बैंकों को लोन देने में ढील दी जाए।