निराशा के अंधकार से सफलता के उजाले तक पहुंचने का सफर
आईसीआईसीआई एकेडमी की ओर से महिलाओं के सशक्तीकरण की मिसाल है यह सच्ची कहानी!
एक तरफ जहां पूरी दुनिया अंतरराष्ट्रीय महिला दिवस का जश्न मना रही है, वहीं आजादी के 70 से अधिक वर्षों बाद भी भारत जैसे देश में यह कहना गलत नहीं होगा कि समाज के अभी भी कुछ वर्ग हैं जहां महिलाएं अपने अस्तित्व के लिए हर दिन संघर्ष करती हैं, यह उनके सपनों से लेकर सामाजिक दबाव से जूझने या कमजोर आर्थिक स्थिति तक फैला हो सकता है!
लखनऊ से 25 वर्षीय दीपिका चैहान की एक प्रेरणादायक कहानी समाज में अपनी जगह बनाने के लिए जूझ रही देश की तमाम महिलाओं के लिए मिसाल पेश करती है!
दीपिका के लिए जीवन कभी आसान नहीं था। अभी किशोर उम्र में पैर रखा ही था कि मां हमेशा के लिए साथ छोड़ कर चली गई जो दीपिका के लिए बहुत दुखद और बहुत बड़ा नुकसान था। 2006 में मां के निधन के बाद हालात की मारी दीपिका अपने छोटे भाई के साथ अकेली रह गई थी। परिस्थितियों ने दीपिका और उसके भाई के लिए कोई राह नहीं छोड़ी थी और उन्हें अपनी नानी के घर रहना पड़ा। अनाथ हो चुके दोनों बच्चों के लिए जीवन एक चुनौती से कम नहीं था।
इन बाधाओं के बावजूद, दीपिका ने बच्चों को पढ़ाना शुरू किया और बीकॉम की पढ़ाई करने के लिए लोगों के कपड़े सिले। स्नातक स्तर की पढ़ाई पूरी करने के बाद भी, दीपिका के लिए कुछ भी नहीं बदला। वह अपनी आंटी के घर चली गई और खुद को घर के कामों में लगा दिया।
उन दिनों को याद करते हुए दीपिका ने बताया- ‘जीवन में आगे बढऩे के लिए मेरा दृढ़ संकल्प मुझे अब तक चला रहा था, लेकिन यहां तक पहुंच कर भी मैं दूर-दूर तक उम्मीद की कोई किरण नहीं देख पा रही थी।’
दीपिका की उम्मीद तब जगी, जब कपूरथला के उनके चचेरे भाई ने उन्हें लखनऊ में आईसीआईसीआई एकेडमी फॉर स्किल्स (आईएएस) की ओर से संचालित मुफ्त पाठ्यक्रमों के बारे में बताया। अपनी आंखों में कई सपने लिए दीपिका ने ऐसे किसी कोर्स और प्लेटफार्म के बारे में जानकारी लेने के लिए एकेडमी का दौरा किया जो उनके जीवन को बदल सकता था।
दीपिका ने कहा, ‘मेरा मन कह रहा था कि यहां ऐसा कुछ हो सकता है जो मेरी जिंदगी बदल देगा।’
घर के विरोध और विपरीत हालातों के बावजूद दीपिका ने विश्वास नहीं खोया और मौके का फायदा उठाते हुए लखनऊ में आईसीआईसीआई एकेडमी फॉर स्किल्स में ‘ऑफिस एडमिनिस्ट्रेशन’ पाठ्यक्रम में शामिल हो गई। एकेडमी के माहौल ने दीपिका में आत्मविश्वास व सक्षमता की भावना को बढ़ाने में मदद की। यहां उन्होंने अन्य परिचालन और पेशेवर कौशल के साथ ग्राहक प्रबंधन कौशल हासिल किया। उन्हें भोजन, औपचारिक पोशाक और परिवहन जैसी आवश्यकताओं सुविधाएं भी निशुल्क प्रदान की गई थी। और वह एक जीवन बदलने वाला पल था जब दीपिका को यूरेका फोब्र्स में प्रति माह 8,000 रुपए के वेतन पर काम करने का ऑफर मिला।
अब दीपिका का कहना है, ‘मैं एक ऐसी जिंदगी जी रही हूं, जिसके बारे में मैंने सपने में भी नहीं सोचा था।’
अब, दीपिका अपने सपनों का जीवन जी रही है और एक भी सेल्स टार्गेट नहीं चूकती। इस क्षेत्र (उत्तर प्रदेश) में ‘बेस्ट परफॉर्मर ऑफ द रीजन’ के रूप में सम्मानित होकर दीपिका ने साबित कर दिया है कि लक्ष्यों को प्राप्त करने के लिए अगर इरादे पक्के हैं और समर्पण पूरा है तो बेहतर जीवन की कोई सीमा नहीं है। दीपिका अब प्रति माह 25,000 वेतन का पैकेज पा रही हैं और अपना अगला प्रमोशन पाने के लिए कड़ी मेहनत कर रही है – यह बड़े सपने देखने और खुद को सीमाओं में नहीं बांधने का एक जीवंत उदाहरण हैं।
‘मैं कभी नहीं भूल सकती कि आईसीआईसीआई एकेडमी ने मेरे लिए क्या किया और कैसे उन्होंने मुझे दुनिया का सामना करने के लिए तैयार किया। मुझे आज भी आईएएस में बिताए अपने दिन बहुत याद आते हैं, मैं आईएएस के कौशल विकास पाठ्यक्रमों में शामिल होने के लिए दोस्तों और परिचितों को प्रोत्साहित करती रहती हूं। मुझे लगता है कि मैं आज भी एकेडमी का हिस्सा हूं और अक्सर वहां जाती हूं। धन्यवाद आईसीआईसीआई, मैं आज जो कुछ भी हूं, आपकी बदौलत हूं!’