मध्य प्रदेश: दलित, आदिवासी, मुस्लिम कांग्रेस की ओर
नई दिल्ली: मध्य प्रदेश में 28 नवंबर को विधानसभा चुनाव होने वाले हैं। भाजपा जहां चाैथी बार सत्ता पर काबिज होने के प्रयास में है तो कांग्रेस 15 वर्षों के वनवास को खत्म करने की तैयार में है। दोनों दल वोटरों को लुभाने के लिए हर संभव प्रयास कर रहे हैं। रणनीतियां बनाकर मतदाताओं को रिझाने की कोशिश की जा रही है। भाजपा जहां अपने कार्यों को गिना रही है, वहीं, कांग्रेस सरकार की नाकामियों को दर्शा रही है। लेकिन इस बीच एक सर्वे के नतीजे ने भाजपा की चिंता बढ़ा दी है। इंडिया टीवी और सीएनएक्स द्वारा कराए द्वारा कराए गए सर्वे के अनुसार, प्रदेश में जातीय गोलबंदी से भाजपा सहम गई है। दलित, आदिवासी और मुस्लिम जहां कांग्रेस के पक्ष में गोलबंद होते दिख रहे हैं। वहीं, सवर्णों का भाजपा से मोहभंग होता दिख रहा है।
मध्य प्रदेश में सवर्ण समाज के वोटरों की हिस्सेदारी 22 प्रतिशत है। एससी-एसटी एक्ट पर लाए गए अध्यादेश के बाद सवर्ण वोटरो में भाजपा के प्रति आक्रोश है। इसके बावजूद सवर्ण समाज का एक बड़ा वर्ग का झुकाव भाजपा की ओर है। सर्वे के अनुसार, ब्राह्मण समाज के कुल वोटरों में से 56 प्रतिशत भाजपा, 29 प्रतिशत कांग्रेस, 5 प्रतिशत बसपा और 10 प्रतिशत अन्य के साथ जाते दिख रहे हैं। वहीं, राजपूत समाज की बात करें तो 59 प्रतिशत भाजपा, 16 प्रतिशत कांग्रेस, 4 प्रतिशत बसपा और 21 प्रतिशत अन्य के साथ जाते दिख रहे हैं। ब्राह्मण-राजपूत के अलावा अन्य सवर्ण जातियाें के 59 प्रतिशत मतदाता भाजपा, 35 प्रतिशत कांग्रेस, 3 प्रतिशत बसपा और 3 प्रतिशत अन्य के साथ जाते दिख रहे हैं।
सर्वे में मुसलमान वोटर्स के रूख को भी जानने की भी कोशिश की गई, जिनकी कुल हिस्सेदारी 7 से 8 प्रतिशत है। इनमें से 62 प्रतिशत कांग्रेस, 6 प्रतिशत भाजपा, 3 प्रतिशत बसपा और 13 प्रतिशत अन्य की तरफ जाते दिख रहे हैं। राज्य में सबसे ज्यादा आेबीसी समुदाय के वोटर्स हैं, जिनकी कुल हिस्सेदारी 55 प्रतिशत है। ओबीसी के कुल वोटर्स में से 50 प्रतिशत वोटर्स भाजपा की ओर, 32 प्रतिशत कांग्रेस की ओर, 8 प्रतिशत बसपा की ओर और 10 प्रतिशत अन्य की ओर जाते दिख रहे हैं। एससी (शिड्यूल कास्ट) की बात करें तो इनमें से 35 प्रतिशत वोटर्स भाजपा, 39 प्रतिशत कांग्रेस, 16 प्रतिशत बसपा और 10 प्रतिशत अन्य की ओर जाते दिख रहे हैं। राज्य में अनुसूचित जनजाति की संख्या 21 प्रतिशत है। उनमें से 37 प्रतिशत भाजपा की ओर, 47 प्रतिशत कांग्रेस की ओर, 3 प्रतिशत बसपा की ओर और 13 प्रतिशत अन्य की ओर जाते दिख रहे हैं।