नबरास शहरयार हैदर

चलो कुछ लिखते हैं आज,

ना – ना इतिहास नहीं , सिर्फ जज़्बात

चलो कुछ लिखते हैं आज ….

उतर जाओ मेरे क़लम की स्याही में तुम यूं

के धडकने लगें मेरे अलफ़ाज़

चलो कुछ लिखते हैं आज ….

वक़्त गुज़रता रहा ,तुम क़रीबतर होते गये

यक़ीन में थी मोहब्बत और मोहब्बत में यक़ीन बेहिसाब

चलो कुछ लिखते हैं आज ….

वादा हो या वफ़ा हो निभा देना तुम रस्मन

कहाँ मिलती है मोहब्बत ज़माने में इतनी बेशुमार

चलो कुछ लिखते हैं आज ….

चले आओ के दिल की उम्मीद क़ायम है अभी

ना करो मेरे सब्र को तुम इतना बेज़ार

चलो कुछ लिखते हैं आज ….

ये जिन्हें तुम अल्फाजों का खेल समझ रहे हो

जज़्बातों में लिपटा हुआ मेरा हुनर है जनाब

चलो कुछ लिखते हैं आज ….

वही तुम हो , वही मैं हूँ , वही ज़माना लगता है

अदावत कौन करे , हो सख़ावत दिल में जब मेरे यार

चलो कुछ लिखते हैं आज ….


नबरास शहरयार हैदर

असिस्टेंट प्रोफेसर ऑफ़ लॉ

कमला नेहरु इंस्टिट्यूट ऑफ़ फिजिकल एंड सोशल साइंसेज,सुल्तानपुर,उत्तर प्रदेश