भारत के मुसलमानों को एक कांशीराम खोजना होगा
लखनऊ से तौसीफ़ क़ुरैशी
राज्य मुख्यालय लखनऊ।आज़ादी के सत्तर साल बीतने के बाद भी दलित-मुस्लिम विकास की किरणों से कोसो दूर है,आज़ाद भारत के नागरिकों ने अनेक सपने सँजोए थे कि आज़ाद भारत में हम सब साथ मिलकर रहेंगे और सबका विकास होगा लेकिन भारत के सामूहिक विकास में भेदभाव किया गया उसी का परिणाम है कि दलित-मुस्लिम आज भी अपने विकास को मुँह बाएँ खड़ा है लेकिन कोई भी इनके विकास को सकारात्मक क़दम उठाने के लिए तैयार नही है हाँ बातें तो सभी राजनीतिक दल करते है परन्तु हालात सुधरने का नाम नही ले रहे है इन सबके बीच सबसे ज़्यादा हालात ख़राब अगर किसी के सामने आए है तो वह मुसलमान के सामने है जब इस पर विचार किया जाता है कि मुसलमान की इस दुर्दशा के लिए कौन ज़िम्मेदार है तो देश में सबसे ज़्यादा राज करने वाली कांग्रेस पार्टी का नाम ऊभरकर आता है आज़ादी से पूर्व मुसलमानों की हालत हर लिहाज़ से बेहतर थे परन्तु आज़ादी के बाद कांग्रेस ने एक संकीर्ण मानसिकता से ग्रस्त होकर कार्य किया जिसका परिणाम आज हम सबके सामने है कि मुसलमान-दलित अपनी बेबसी पर आँसू बाँह रहे है और इनके थोक वोटों की वजह से देश में सबसे ज़्यादा राज करने का रिकार्ड बनाने वाली कांग्रेस सिर्फ़ सत्ता सुख प्राप्त करती रही पर अहसान फ़रामोश कांग्रेस को जब लगा कि अब इस तरह मुर्ख नही बना सकते है तो एक सदस्य रंगनाथ मिश्र आयोग बना कर मुसलमानों की स्थिति के आँकड़े सामने दिखलाए गए जिससे देश में एक नई बहस को जन्म दिया कि क्या वास्तव में ही मुसलमान के हालात ख़राब हो चले है इस पर लम्बी होती बहस के बाद एक और कमैटी का गठन किया गया जिसमें जस्टिस राजेन्द्र सच्चर ने अपनी इमानदारी व दयानतदारी का सबूत देते हुए देश व दुनिया के सामने ऐसे आँकड़ो को पेश किया जिनको देख मन रोने लगे फिर एक नई बहस को जगह मिली लेकिन भाजपा ने उसे भारत को मुस्लिम तुष्टीकरण करने का नाम दे दिया और देश के बहुसंख्यक वर्ग में यह बात घर कर गई कि कांग्रेस भारत में मुस्लिम तुष्टीकरण कर रही है जबकि सच्चाई कुछ और ही थी देश में साम्प्रदायिक ताकते ऊभर रही थी इसी बीच कांग्रेस यह बताने का प्रयास कर रही थी कि देखो मुसलमानों को हमने कहाँ से कहाँ लाकर खड़ा कर दिया है यह दोनों रिपोर्ट इसकी दलील है लेकिन बहुसंख्यकों में कुछ ऐसे प्रतिशत में लोगों की संख्या है जो यह बिलकुल नही चाहता की इस देश में मुसलमान रहे वह लगातार अपनी इस मुहिम में लगे रहते है उनकी इस मुहिम को मंज़िल तक पहुँचाने के लिए आरएसएस हवा देता रहा है और वह यह सपना लिए कि हमें भारत में सत्ता पर क़ाबिज़ होना है इसी को लेकर पिछले सत्तर सालों से RSS गुमराह करता चला आ रहा है उसके इस सपने को 2014 में गुजरात के मुख्यमंत्री नरेन्द्र मोदी के नाम को आगे कर चुनाव में जाने की तैयारी की गई उनके कई चेहरे बनाए गए एक चेहरा तो मोदी का 2002 में गोधरा काण्ड के बाद बना जिसको साम्प्रदायिक लोगों में ख़ासा पसंद किया जाता था कि कोई ऐसा चेहरा सामने आए जो भारत को हिन्दू राष्ट्र बनाने में हमारी सोच को अमली जामा पहना सके तो नरेन्द्र मोदी उस फ़्रेम में फ़िट बैठते थे लेकिन साम्प्रदायिक ताक़तों की तादाद इस देश में इतनी नही है कि उनके कन्धों पर सवार होकर देश की सत्ता पर क़ाबिज़ हुआ जा सके उसी को ध्यान में रखते हुए मोदी का एक और चेहरा तैयार किया गया जिसको विकास का नाम दिया गया गुजरात मॉडल जिसमें RSS कामयाब रहा देश में साम्प्रदायिक वोटर के अलावा जो सबको साथ लेकर चलने में विश्वास रखता है अब उसने प्रायोजित गुजरात मॉडल पर साम्प्रदायिक दंगों में राजधर्म नही निभाने वाले नरेन्द्र मोदी को स्वीकार किया और RSS का सपना पूरा हो गया भाजपा सत्ता पर क़ाबिज़ हो गई साम्प्रदायिक ताकते अब यह दबाव बनाने लगी कि देश को हिन्दू राष्ट्र घोषित किया जाए लेकिन यह मुमकिन न होने की वजह से RSS ने नया पैंतरा शुरू किया कि हिन्दू राष्ट्र मुसलमान के बिना अधूरा है अब फिर देश में एक नही बहस को जगह मिल गई थी विद्वान RSS के इस चक्रव्यूह में फँस गए।ख़ैर हम बात कांग्रेस के द्वारा गठित उन दो समितियों पर कर रहे थे जिसमें एक स्वरूप आयोग का दिया गया था तो दूसरी को कमैटी का असल में कांग्रेस इन दोनों कमेटियों के ज़रिए यह बता पाने की कोशिश कर रही थी कि देखो हमने इस देश में मुसलमानों को दलितों से बत्तर हालत में लाकर खड़ा कर दिया है और मुसलमानों में यह संदेश दिया कि हम ही है जो आपकी चिन्ता करते है जबकि वह यह भूल गई कि अगर आज मुसलमान दलितों से बत्तर हालातों में जीने को विवश है तो उसका ज़िम्मेदार कौन है अगर इमानदारी से राजधर्म निभाया जाता तो यकीनी तौर पर कहा जा सकता है कि मुसलमानों की दुर्दशा दलितों से बत्तर न होती और न ही दलितों की मिसाल दी जाती उनके साथ भी सौतेला व्यवहार हुआ है अब कांग्रेस की हालत यह हो गई है कि उससे न हिन्दूत्व पर चला जा रहा है और न ही सबको साथ लेकर चलने वाली नीति पर कांग्रेस की इसी डुल मुल नीति का फ़ायदा उठाते हुए कई ऐसे दलो का उदय हुआ जिसमें दलितों-मुसलमानों की संख्या भारी मात्रा में चली गई और वह दल देश की मुख्य राजनीति के केन्द्र बिन्दू बन गए जिसका श्रेय मुसलमानों व दलितों को ही जाता है देश का सबसे बड़ा राज्य होना का गौरव हासिल उत्तर प्रदेश में दो दलों का जन्म हुआ जिसमें एक दलितों को अपने पाले में सिफ्ट करने में कामयाब हुए जो यह मिशन काफ़ी लम्बे अर्से से चला रहे थे जिनको देश की सियासत में मान्यवर कांशीराम के नाम से जाना जाता है हालाँकि उनके द्वारा लगाए गए बहुजन समाज पार्टी के नाम के इस पोधे का ज़्यादा आनन्द नही लिया गया क्योंकि जब यह पोधा अपनी ऊँचाइयों को छूने का हौंसला कर रहा था तो तभी ऊपर वाले ने उन्हें अपने पास बुला लिया और उस बरगद के छांव में बैठने का आनन्द लेने की बारी आई तो वह अपने सामने ही यह तय कर गए मान्यवर कांशीराम कि मेरे बाद मायावती रहेगी जो इस बरगद की देखभाल करेगी परिणाम स्वरूप उन्होंने की भी पर उन्होंने उसके विस्तार को रोक दिया और उसे दूसरा रूप दे दिया हालाँकि मायावती देश के सबसे बड़े राज्य की इसी बरगद रूपी छांव की वजह से चार बार मुख्यमंत्री बनी और अपनी छवि आयेरन लेडी के नाम से बनाई बेहतर शासन की मिसाल मायावती को कहा जाता है जो आज बरगद का रूप ले चुका है।दूसरे पोधे को समाजवादी विचार धारा को मानने का दावा करने वाले मुलायम सिंह यादव ने रोपा जो बरगद का रूप तो लेने में कामयाब रहा लेकिन सामूहिक पार्टी नही बन पाई जो एक जेबी संस्था बन कर रह गई उन्होंने सियासी लाभ के लिए मुसलमानों के जज़्बातों से खिलवाड़ कर उनको मूर्ख बना कर सिर्फ़ यादव परस्ती तक महदूद रख पाए जिसमें वह तो सफल रहे मगर मुसलमान अपने उस मुक़ाम को नही छू पाया जिसकी उसे दरकार है पर अफ़सोस कोई भी दल या राजनेता ऐसा नही हुआ जो मुसलमानों को उसका हक़ दिला या दे सके बात सब करते है पर देने के नाम पर किसी के पास कुछ नही है और जहाँ तक मुसलमानों के खुद की कयादत की बात है वह भी उसे सही दिशा देने की पहल नही करना चाहता है क्योंकि उसके लिए कांशीराम बनना पड़ता है वह कोई बनने को तैयार नही है और न ही मुसलमान कोई कांशीराम बनाना चाहता है ज़रूरत मुसलमान की है न कि किसी एक की जब हम खुद ही नही अपने विकास की सोचते तो दूसरा कोई क्यों हमारे बारे में सोचेगा हमें ही अपने बारे में सोचना होगा और कोई कांशीराम तलाशना होगा न कोई कांग्रेस न कोई सपा कंपनी और न कोई क़ायद देगा हमें खुद तैयार होना पड़ेगा तभी कुछ मिल पाएगा नही तो अब फिर कोई आयोग या कमैटी बना कर हमारा मज़ाक़ बनाया जाएगा उससे बचने के लिए हमें कांशीराम का तलाशना होगा।