संरक्षित नहीं हुए तो विलुप्त हो जायेंगे लोक संस्कृति के तत्त्व : प्रो. सूर्य प्रसाद दीक्षित
लखनऊ: ‘बाजारवादी ताकतों और भूमण्डलीकरण ने शाश्वत मूल्यों का बहुत नुकसान किया है। इसके कारण लोक सांस्कृतिक मूल्यों का क्षरण हो रहा है। आज के समय की सबसे बड़ी जरुरत है कि लोक सांस्कृतिक मूल्यों का संरक्षण किया जाय।’
उक्त विचार वरिष्ठ साहित्यकार प्रो. सूर्य प्रसाद दीक्षित ने ‘लोक सांस्कृतिक अध्ययन की दिशायें’ विषय पर आयोजित व्याख्यानमाला में व्यक्त किये। एसएनए परिसर में लोक संस्कृति शोध संस्थान द्वारा आयोजित व्याख्यान श्रृंखला में उन्होंने लोक विश्वास, लोक पर्व, लोक देवता और लोक सन्दर्भों की मीमांसा वैज्ञानिक दृष्टि से करने की आवश्यकता बतायी।
उन्होंने कहा कि लोक गीत, लोकगाथा, लोकोक्तियां, लोक विश्वास, लोक पर्व, लोक नृत्य, लोक पर्व, लोक देवता जैसे विषय लोक संस्कृति अध्ययन के प्रमुख स्रोत हैं। आगे कहा कि लोक उत्सवधर्मी है जो अभावों में भी उल्लास के अवसर ढूंढ़ लेता है। कठिन श्रम दिनचर्या को लोकगीतों के माध्यम से सुखमय बना लेता है। यदि गा गाकर दुःख हल्का करने की चर्या न होती तो संस्कृति समाप्त हो चुकी होती। उन्होंने आगे कहा कि लोक संस्कृति सिमट रही है, परम्पराओं को तोड़ा जा रहा है, नई पीढ़ी रुचि नहीं ले रही। संस्कार गीत लुप्त हो रहे हैं।
प्रो. दीक्षित ने कहा कि लोकगीतों को फिल्मी तर्ज पर फूहड़ तरीके से गाया जा रहा है जो हमारे सांस्कृतिक वैशिष्ट्य को क्षति पहुंचा रही हैं। लोकगीतों में इतिहास के स्रोत विषय पर शोध किया जा सकता है। सोलह में से चार-पांच संस्कारों को ढोया जा रहा है, बच्चों के जन्म अस्पताल में हो रहे हैं, तो छठी, बरही, सोहर के स्वर मन्द पड़ रहे हैं, लोक धुनों की मिठास का आस्वादन दुर्लभ वस्तु बनती जा रही है। हमारी लोक संस्कृति में छिपे लोक संकेतों का अन्वेषण यदि अभी नहीं किया गया तो यह लुप्त हो जायेगी। उन्होंने कहा कि ‘नक्कारखाने में तूती की आवाज़’, ‘रणभेरी’ आदि शब्दों के अलावे हमारे अनेक लोकवाद्य हैं जो आज की पीढ़ी ने केवल सुना है, देखा नहीं। ऐसे वाद्यों की प्रदर्शनी लगे तथा लोक वांग्मय को संकलित व प्रकाशित किया जाय। उन्होंने आगे कहा कि सामाजिक लोकप्रथाओं और लोक विश्वासों को बिना कसौटी पर कसे, अन्धविश्वास मानकर अस्वीकार नहीं किया जाना चाहिए। उसमें निहित तत्वों का अन्वेषण किया जाना चाहिए।
लोक संस्कृति शोध संस्थान की सचिव सुधा द्विवेदी ने बताया कि लुप्त हो रही लोक संस्कृति को संरक्षित करने के उद्देश्य से संस्थान द्वारा उत्तर प्रदेश में जनपदवार सांस्कृतिक शोध कार्य की योजना आरम्भ की जा रही है। लोक भाषा, लोक कला, लोक साहित्य व लोक संस्कृति से जुड़े सांस्कृतिक प्रतिमानों से नई पीढ़ी को रुबरु कराने के लिए लखनऊ में वृहत संग्रहालय तथा पुस्तकालय की योजना पर भी कार्य चल रहा है।
वरिष्ठ लोक साहित्यकार डा. रामबहादुर मिश्र के संचालन में हुए व्याख्यान कार्यक्रम में लोक संस्कृति शोध संस्थान के उपाध्यक्ष शेख इब्राहिम, सचिव सुधा द्विवेदी, जनसम्पर्क अधिकारी सुरेश कुमार, फिल्म निर्देशक रवि गुप्ता, छायानट के सम्पादक एस. के. गोपाल, गीतकार सौरभ कुमार कमल, दबीर सिद्दीकी, हरित शर्मा आदि लोग मौजूद रहे। आयोजन के पूर्व उ.प्र. संगीत नाटक अकादमी की अध्यक्ष डा. पूर्णिमा पाण्डे, सचिव डा. रुबीना बेग ने भी प्रोफेसर दीक्षित से शिष्टाचार भेंट की तथा लोक संस्कृति शोध संस्थान द्वारा किये जा रहे कार्यों की सराहना की।