5 अक्टूबर को बनाएंगे राम मंदिर पर आगे की रणनीति: विहिप
नई दिल्ली: अयोध्या के राम मंदिर-बाबरी मस्जिद विवाद से जुड़े एक अहम मामले में सुप्रीम कोर्ट की बैंच ने बड़ा फैसला सुनाते हुए कहा, पुराना फैसला उस वक्त के तथ्यों के मुताबिक था. मस्जिद में नमाज पढ़ना इस्लाम का अटूट हिस्सा नहीं है. पूरे मामले को बड़ी बेंच में नहीं भेजा जाएगा'. इस मामले में सुप्रीम कोर्ट की तीन जजों की बैंच ने 2 के मुकाबले 1 मत से फैसला सुनाया. विश्व हिंदू परिषद ने सुप्रीम कोर्ट के फैसले का स्वागत किया है. VHP के कार्यकारी अध्यक्ष आलोक कुमार का कहना है कि अब ये साफ हुआ है कि ये याचिका क्यों लगाई गई थी. उन्होंने कहा कि याचिका राम मंदिर पर फैसला टालने के लिए लाई गई थी.
विश्व हिंदू परिषद का कहना है कि आगामी 5 अक्टूबर को होने वाली बैठक में राम मंदिर के निर्माण के लेकर आगे की रणनीति बनाई जाएगी. आपको बता दें कि विश्व हिंदू परिषद ने पांच अक्टूबर को राम मंदिर के मुद्दे पर संतों की उच्चाधिकार समिति की बैठक दिल्ली में बुलाई है. इस बैठक में देशभर के 30 से 35 बड़े संत हिस्सा लेंगे और राम मंदिर के साथ कारसेवा पर भी फैसला लिया जा सकता है. संतो की इस बैठक के लिए विश्व हिंदू परिषद ने सभी संतों को पत्र जारी किया है और राम मंदिर निर्माण के लिए निर्णय लेने के लिए बैठक का न्योता भेजा है.
बताया जा रहा है कि इस बैठक में विश्व हिंदू परिषद संत समाज ये निर्णय लेगा कि राम मंदिर मामले में आगे क्या होना चाहिए. राम मंदिर के मुद्दे पर वीएचपी के राष्ट्रीय प्रवक्ता सुरेंद्र जैन ने कहा था कि सुप्रीम कोर्ट के फैसले का कब तक इंतजार किया जा सकता है. जब इस विषय पर इतना विलंब हो चुका है, तो हमने इस आंदोलन के लिए हमारी आगे की क्या नीति हो इसके लिए संतों की बैठक 5 अक्टूबर को बुलाई है. जब सुप्रीम कोर्ट की तरफ से इस फैसले को लेकर इतनी देरी की जा चुकी है, तो हमने इस दिशा में कुछ ठोस कदम उठाने का फैसला किया है.
आपको बता दें कि गुरुवार को अयोध्या विवाद पर चीफ जस्टिस ऑफ इंडिया दीपक मिश्रा, जस्टिस अशोक भूषण की राय इस मामले में एक थी, लेकिन तीसरे जज जस्टिस अब्दुल नजीर ने दोनों जजों से अलग राय रखी. जस्टिस भूषण ने कहा कि 'फैसले में दो राय, एक मेरी और एक चीफ जस्टिस की, दूसरी जस्टिस नजीर की. जस्टिस अब्दुल नजीर ने इस फैसले से असहमति जताई. उन्होंने फैसले पर अपनी राय देते हुए कहा, इस मामले में पुराने फैसले में सभी तथ्यों पर विचार नहीं किया गया. मस्जिद में नमाज पर दोबारा विचार की जरूरत है. इसके साथ ही इस मामले को बड़ी बैंच को भेजा जाना चाहिए.
जस्टिस नजीर ने कहा कि जो 2010 में इलाहाबाद कोर्ट का फैसला आया था, वह 1994 फैसले के प्रभाव में ही आया था. इसका मतलब इस मामले को बड़ी पीठ में ही जाना चाहिए था. मुस्लिम पक्षों ने नमाज के लिए मस्जिद को इस्लाम का जरूरी हिस्सा न बताने वाले इस्माइल फारुकी के फैसले पर पुनर्विचार की मांग की थी. इससे पहले मुस्लिम पक्षकारों ने फैसले में दी गई व्यवस्था पर सवाल उठाते हुए मामले को पुनर्विचार के लिए बड़ी पीठ को भेजे जाने की मांग की थी.