आधार की अनिवार्यता पर फैसला कल
नई दिल्ली: आधार की वैधता को चुनौती देने वाली एक याचिका पर बुधवार को सुप्रीम कोर्ट फैसला सुना सकता है. पांच जजों की संविधान पीठ तय करेगी कि आधार निजता के मौलिक अधिकार का उल्लंघन करता है या नहीं.
इस मामले पर फैसला सुनाने वाली प्रधान न्यायाधीश दीपक मिश्रा की अध्यक्षता वाली पांच सदस्यीय संविधान पीठ में जस्टिस एके सिकरी, एएम खानविलर, डीवाई चंद्रचूण और अशोक भूषण शामिल हैं. इससे पहले सुप्रीम कोर्ट ने इस साल मई में आधार और इससे जुड़ी 2016 के कानून की संवैधानिक वैधता को चुनौती देने वाली याचिकाओं पर सुनवाई पूरी कर ली थी. 38 दिन तक चली सुनवाई के बाद 10 मई को पांच न्यायाधीश की बेंच ने फैसला सुरक्षित रखा था. पीठ ने उच्च न्यायालय के पूर्व न्यायाधीश के एस पुत्तस्वामी की याचिका सहित 31 याचिकाओं पर सुनवाई की थी.
10 मई को हुई सुनवाई में अटॉर्नी जनरल के के वेणुगोपाल ने पीठ को जानकारी दी कि 1973 के ऐतिहासिक केशवानंद भारती मामले के बाद निरंतर सुनवाई के संदर्भ में यह ‘दूसरा सबसे लंबा’ मामला बन गया है.
वेणुगोपाल ने कहा था कि केशवानंद भारती मामले में पांच महीने सुनवाई हुई थी और इस मामले में निरंतर साढ़े चार महीने सुनवाई हुई. यह इतिहास में निरंतर सुनवाई के संदर्भ में दूसरा सबसे लंबा मामला है.
सुप्रीम कोर्ट का फैसला आने तक सभी केंद्र व राज्य सरकारों की योजनाओं में आधार की अनिवार्यता पर रोक लगाई गई है, जिसमें मोबाइल सिम और बैंक खाते भी शामिल हैं.
सुनवाई के दौरान केन्द्र सरकार ने आधार नंबरों के साथ मोबाइल फोन जोड़ने के निर्णय का बचाव करते हुए कहा था कि यदि मोबाइल उपभोक्ताओं का वेरिफिकेशन नहीं किया जाता तो उसे शीर्ष अदालत अवमानना के लिए जिम्मेदार ठहराती. हालांकि, कोर्ट ने कहा था कि सरकार ने उसके आदेश की गलत व्याख्या की और उसने मोबाइल उपभोक्ताओं के लिए आधार को अनिवार्य बनाने के लिए इसे एक हथियार के रूप में इस्तेमाल किया.
बता दें कि सुप्रीम कोर्ट में इस मामले पर कई याचिकाएं दायर हैं, जिसपर बुधवार को फैसला आने के बाद यह साफ हो जाएगा कि आधार जरूरी होगा या नहीं. हालांकि इस मामले पर कोर्ट ने सख्त रुख अपनाते हुए यह भी कहा था कि सरकार आधार को अनिवार्य करने के लिए लोगों पर दबाव नहीं बना सकती है.
गौरतलब है कि 2016 के आधार एक्ट को संवैधानिक तौर पर चुनौती देने वाली याचिका पर फैसला आना है. इस एक्ट को ये चुनौती दी गई है कि यूनिक आइडेंटिटी नागरिकों की प्राइवेसी के अधिकार का उल्लंघन करती है.