तीन तलाक को दंडात्मक अपराध बनाने के सरकार के फैसले की निंदा
महिला सामाजिक कार्यकर्ताओं ने कहा, पत्नी छोड़ने के लिए केवल मुस्लिम पुरुषों को सजा क्यों, हिन्दुओं को क्यों नहीं?
नई दिल्ली: कुछ महिला सामाजिक कार्यकर्ताओं ने फौरी तीन तलाक को दंडात्मक अपराध बनाने के सरकार के फैसले की निंदा की है। इसे मुस्लिम महिलाओं के सामने आ सकने वाली मुश्किलों पर विचार किये बिना ‘‘राजनीति से प्रेरित कदम’’ बताया। दरअसल, विधि मंत्री रविशंकर प्रसाद ने बुधवार को कहा कि केन्द्रीय कैबिनेट ने फौरी तीन तलाक की परंपरा को दंडात्मक अपराध बनाने के प्रावधान वाले अध्यादेश को मंजूरी दी है। प्रसाद ने इस कदम को जरूरी बताया क्योंकि उच्चतम न्यायालय द्वारा असंवैधानिक घोषित की गई यह परंपरा निरंतर जारी है। ‘आल इंडिया प्रोग्रेसिव वीमंस एसोसिएशन’ की कार्यकर्ता और सचिव कविता कृष्णन ने सवाल किया, ‘‘अपनी पत्नी छोड़ने के लिए केवल मुस्लिम पुरुषों को क्यों सजा दी जा रही है, हिन्दु पुरुषों को क्यों नहीं?
कृष्णन ने पीटीआई से फोन पर कहा, ‘‘तीन तलाक, तलाक का आधिकारिक तरीका नहीं है, यह परित्याग का तरीका है। क्या कोई हिन्दू पुरुष को अपनी पत्नी को त्यागने पर जेल की सजा होती है? हम इसे अपराध बनाने के सरकार के फैसले से सहमत नहीं हैं।
‘नेशनल फेडरेशन आफ इंडियन वीमैन’ की महासचिव एनी राजा ने कहा कि उन्हें फौरी तीन तलाक की परंपरा को दंडात्मक अपराध बनाने के लिए अध्यादेश लाने में सरकार की ‘‘मंशा’’ पर संदेह है। महिला अधिकार कार्यकर्ता शबनम हाशमी ने कहा कि तीन तलाक को अपराध बनाने की मंशा लोगों का ध्रुवीकरण करना है। उन्होंने कहा, ‘‘उच्चतम न्यायालय ने इस पर पाबंदी लगाई थी, इसे अपराध की श्रेणी में लाने से आम लोगों से पहले लोगों की ध्रुवीकरण होगा।