संघ को समझना है तो हेडगेवार को समझना जरूरी है: मोहन भागवत
नई दिल्ली: राजधानी दिल्ली में सोमवार से राष्ट्रीय स्वंयसेवक संघ ने तीन दिवसीय लेक्चर सीरीज 'भविष्य का भारत : राष्ट्रीय स्वंयसेवक संघ का दृष्टिकोण' का आयोजन किया है. दिल्ली के विज्ञान भवन में आयोजित होने वाले इस कार्यक्रम के पहले ही दिन संघ के सरसंघचालक मोहन भागवत ने लोगों को संबोधित किया. उन्होंने अपने संबोधन में कहा कि संघ को समझना है तो डॉ. हेडगेवार से प्रारंभ करना होगा. उन्होंने बीज के रूप में संघ के वृक्ष को बड़ा किया, इसलिए संघ को समझना है तो हेडगेवार को समझना जरूरी है. नागपुर के एक सामान्य परिवार में हेडगेवार का जन्म हुआ था. हेडगेवार जन्मजात देशभक्त थे. वह जब 11 वर्ष के थे तो एक ही दिन उनके माता-पिता का देहांत हो गया. वह बचपन से पढ़ने-लिखने में कुशाग्र थे. उन्होंने अपने संबोधन में हेडगेवार की जीवनी के बारे में बताया. उन्होंने बताया कि असहयोग आंदोलन में प्रचार के दौरान हेडगेवार पर देशद्रोह का आरोप भी लगा. राजस्थान से आंध्र तक क्रांतिकारियों को संगठित करने का काम हेडगेवार ने किया.
मोहन भागवत ने कहा कि सभी प्रकार की विचारधाराओं के लोगों से हेडगेवार के संबंध सुलभ थे. उन्होंने यह भी बताया कि राजद्रोह के मामले में एक साल तक जेल में भी रहे. भागवत ने कहा कि वस्तु स्थित को आपके सामने रखना जरूरी है और उसको मानना ना मानना आपका आधिकार है. भागवत ने हेडगेवार के बार में बताया कि उस समय स्वतंत्रता की लड़ाई के बारे में बात होने लगी थी. इस वातावरण में बचपन से ही हेडेगवार स्वतंत्रता की आकंक्षा लेकर जन्मे. उन्होंने बताया कि स्वतंत्रता से पूर्व सभी स्कूलों में बिटिश कार्यक्रम हो रहे थे. कार्यक्रम के बाद हेडगेवार सहित सभी बच्चों को मिठाई मिली. लेकिन उन्होंने मिठाई कूड़ेदान में फेंक दी. इन्होंने शिक्षक को जवाब दिया कि हमारा राज्य छीनकर दूसरे शासन कर रहे हैं, इनकी मिठाई मैं कैसे खाऊं. आप उनके व्यक्तित्व का इस बात से अंदाजा लगा सकते हैं. डॉ. हेडेगवार आगे चलकर डॉक्टर बने. वो पढ़ाई में टॉप 10 में आते थे और देश के बेहतरी के लिए बाते करते थे.
भागवत ने आगे कहा कि हेडेगवार ने उस समय इतना अद्भुत संगठन बनाया था कि चार महीने बाद भी उनका नाम सामने नहीं आया. 10वीं की परीक्षा में फर्स्ट क्लास से पास हुए. उनको कोलकाता डॉक्टरी की पढ़ाई के लिए भेजा गया. उनको वहां भेजने का मुख्य कारण था कि वहां क्रांतिकारियों से मिलें. और दोनों कामों को उन्होंने बहुत बढ़िया तरीके से निभाया. हेडेगवार मेडिकल की परीक्षा में पास हुए. उन्होंने एक संकल्प लिया कि था सिर्फ देश के लिए जीना है. कॉलेज के प्रिंसिपल ने कहा कि बर्मा में आपके लिए नौकरी है 3000 रुपये में. लेकिन उनका तय था कि कमाना नहीं है. देश के काम में लगा जाना है.
उन्होंने अपने चाचा को लिखा कि मैंने इस जीवन में शादी नहीं करने का फैसला किया है. उन्होंने बताया कि हेडगेवार ने कहा कि हमारे पास इतना बड़ा देश है. इतनी बड़ी जनसंख्या है. अंग्रेज मुट्ठी भर थे लेकिन हमारी हार कैसे हुई. अब हमारा देश आजाद है. सारे देश की एक धारा नहीं रही. अनेक राजनीतिक पार्टियां हैं. एक धारा यह थी कि हमें समाज को सुधारने की जरूरत है. हम समाज सुधारे बिना अंग्रजों का मुकाबला नहीं कर सकते. हुआ यह कि सागर में द्वीप जैसी उनकी स्थित हो गई. सारे समाज में परिवर्तन नहीं आया. उनका सपना अधूरा रह गया. हमारे देश में समाज का अच्छा चरित्र उत्पन्न होना चाहिए था. लेकिन आजादी से पहले और बाद में भी ऐसा नहीं हो सका.
उन्होंने पूर्व राष्ट्रपति अब्दुल कलाम का भी जिक्र किया. कलाम हमेशा समाज को जोड़ने की बात करते थे. मोहन भागवत ने आगे कहा कि संघ समाज के कल्याण के लिए काम करता है. हमारा काम बताता है कि हम कौन लोग हैं. किसी भी संगठन की तुलना आरएसएस नहीं की जा सकती. संघ को आज भी गलत समझा जा रहा है. समाज में परिवर्तन होगा तो सारे क्रियाकलापों में परिवर्तन होगा. समाज में जगह-जगह नायक होने चाहिए जिससे लोग प्रेरित हों.