मायावती की प्रेस वार्ता ने गठबंधन पर फिर उठाये सवाल
तौसीफ कुरैशी
लखनऊ।बसपा की सुप्रीमो मायावती की प्रेस वार्ता के बाद तरह-तरह की चर्चाओं को बल मिला है महागठबंधन होगा या नही होगा, होगा तो उसका प्रारूप क्या होगा क्या बसपा के अनुरूप उसका प्रारूप होगा क्या सबकुछ मायावती ही तय करेगी कि कौन गठबंधन में होगा और कौन नही किसको कितनी सीटें मिलेगी आदि-आदि अगर इस पर बारीकी से ग़ौर किया जाए तो सही भी है बसपा के अलावा किसी दल पर मज़बूत और टिकाऊ वोटबैंक नही है सबके पास ऐसा वोटबैंक है जो अपने राजनीतिक उद्देश्य के लिए किसी दल के साथ भी जा सकता है जैसे सपा की बात करे तो उसका मूल वोट यादव जाति है जो 2014 के आम चुनाव में हिन्दू बन गया था और वह भाजपा के पाले में चला गया था उस चुनाव में उसके पास सिर्फ़ बन्धवा मज़दूर के तौर पर मुसलमान रह गया था इस बात की चर्चा 2014 में मिली करारी हार की समीक्षा बैठक में सपा कंपनी ने मुलायम की मौजूदगी में सपा के वरिष्ठ नेता आज़म खान ने कहा था कि नेता जी अल्लाह का शुक्र है मुसलमान अपनी जगह सही रहा, पर यादव भाग गया इस दलील का बैठक में किसी के पास कोई जवाब नही था और मुलायम का सर शर्म से झुक गया था, तो उसका क्या यक़ीन वह अब भी भाग सकता है।अब बात करते है कांग्रेस की वह भी मुसलमानों को ही लेकर आशान्वित है उसका तर्क है लोकसभा में मुसलमान हमें ही पसंद करता है और हमें ही वोट देगा उसके पास भी ऐसा वोट नही दिखाई देता कि वह वोटबैंक उसके साथ खड़ा है यह बात अलग है जो वोट मोदी की भाजपा से नाराज़ होकर बैक करेगा उसके चांस भी कांग्रेस में जाने के ज़्यादा होते है क्योंकि और किसी दल पर वह यक़ीन नही कर पाता एक सच्चाई यह भी है कि जो आज मोदी की भाजपा का वोट है वह कभी कांग्रेस का वोटबैंक हुआ करता था।बस यही निष्कर्ष निकल कर आता है कि उत्तर प्रदेश में एक भी लोकसभा सीट न जीतने वाली बसपा सभी पर भारी पड़ रही है।रही बात पश्चिम उत्तर प्रदेश की एक जाति जाट उसकी भी एक पार्टी हुआ करती थी जो एक रणनीति के तहत मुलायम के बेटे अखिलेश यादव ने 2013 में जाटों और मुसलमानों के बीच झगड़े कराकर जाटों को मोदी की भाजपा में सिफ्ट करा दिया था जिसमें लाखों लोगों का आर्थिक व जानी नुक़सान हुआ था सैकड़ों लोगों की जाने व कितनी ही बहन ओर बेटियों की आबरू लूटी गई थी यह यादव कंपनी का गेम प्लान था कि अजित की सियासत खतम हो जाए जिसको खतम करने के लिए मुसलमान का इस्तेमाल किया जिसपर मुझे एक मिसाल याद आ रही है कि इसकी बकरी मरनी चाहिए चाहे मेरी दिवार गिर जाए तो उसमें सपा कंपनी की सरकार सफल रही अजित की सियासत क़िस्तों में सांसे गिन रही है यह बात अलग है कि अब जब उसका सियासी गुना भाग किया गया तो ग़लती का अहसास हुआ अब उसे वहाँ से लाने के प्रयास किए जा रहे है सपा कंपनी ओर चौ अजित सिंह के द्वारा कि जाटों को किसी तरह भाजपा से वापिस चौ के पाले में लाकर खड़ा कर दिया जाए, कैराना के उप चुनाव में यह प्रयास किये गए कहने को तो यह कहा जा सकता है कि जाटों में घर वापसी की उम्मीदें बढ़ गई है लेकिन सब दलों के साथ होने के बाद भी मोदी की भाजपा प्रत्याशी को भर पूर्व वोट मिला था जिससे यह अंदाज़ा लगाया जा सकता है कि जाटों ने उस संख्या में घर वापसी नही की जिसकी सियासी दलों ने उम्मीद लगा रखी थी पर हा यह कहा जा सकता है कि उनकी घर वापसी हो सकती है।कुल मिलाकर बसपा सबकी मजबूरी बन गई लगती है।अब यह तो आने वाला समय ही बताएगा कि देश व प्रदेश की राजनीति किस करवट जा रही है क्या साम्प्रदायिक ताकते अपने मिशन में कामयाब होती है या सेलुलर होने का मखोटा लगाए दल अपनी रणनीति को सफलता की और ले जाते है।जैसा आज उत्तर प्रदेश की पूर्व मुख्यमंत्री और बसपा सुप्रीमो मायावती ने कहा है कि मोदी की भाजपा ने देश को भय के वातावरण में जीने के लिए विवश कर दिया है वही कुछ लोग राजनीतिक फायदा लेने के लिए मुझसे रिश्ता जोड़ना चाहते हैं और मुझे बुआ कहते हैं। ऐसा ही सहारनपुर जातीय हिंसा मामले में आरोपी (भीम आर्मी के संस्थापक चंद्रशेखर आजाद 'रावण') ने भी किया,मेरा उनसे कोई लेना-देना नहीं है।यह मोदी की भाजपा का गेम प्लान है।मायावती ने कहा, 'मेरा ऐसे लोगों से कोई रिश्ता नहीं है। मेरा रिश्ता सिर्फ आम आदमी, दलितों, आदिवासियों और पिछड़े लोगों से है।' बीएसपी सुप्रीमो ने दो टूक कहा कि उनका किसी के साथ भाई-बहन या बुआ-भतीजे का रिश्ता नहीं है। बता दें कि पूर्व मुख्यमंत्री अखिलेश यादव भी अपने बयानो में बसपा सुप्रीमो मायावती को बुआ कहते रहे हैं।बसपा सुप्रीमो ने कहा कि आगामी चुनावों में पार्टी मोदी की भाजपा को रोकने का पूरा प्रयास करेगी।वहीं महागठबंधन पर उन्होंने कहा कि दूसरी पार्टियों से गठबंधन तभी होगा जब हमें सम्मानजनक सीटें मिलेंगी।ऐसा नहीं हुआ तो बीएसपी अकेले चुनाव लड़ेगी।' हालांकि इस दौरान मायावती ने मोदी की भाजपा को रोकने के लिए गठबंधन को अहम भी बताया। माना जा रहा है कि मायावती ने एसपी अध्यक्ष अखिलेश यादव पर सीटों के बंटवारे से पहले दबाव बनाने की रणनीति के तहत यह बयान दिया है।मायावती ने कहा कि 2 अप्रैल को एससी/एसटी एक्ट को लेकर हुए बंद में शामिल लोगों पर अभी भी अत्याचार जारी है। उन्हें झूठे मुकदमों में फंसाया जा रहा है,जो एक सरकारी आतंक है। बढ़ती मॉब लिंचिग की घटनाओं को लेकर उन्होंने कहा कि इससे देश कलंकित हुआ है।यदि पीएम मोदी और मूल भाजपा अटल के बताए रास्ते पर चलती तो आज देश की ये दशा नहीं होती।मायावती ने महंगाई को लेकर केंद्र की मोदी सरकार को भी घेरा। मायावती ने कहा कि भाजपा महंगाई और बेरोजगारी पर लगाम लगाने में विफल रही है। उन्होंने नोटबंदी का भी जिक्र किया और कहा कि नोटबंदी राष्ट्रीय त्रासदी के रूप में सामने है। वहीं,राफेल घोटाले को लेकर भी बीएसपी सुप्रीमो ने मोदी की भाजपा पर निशाना साधा।पूर्व मुख्यमंत्री ने आरोप लगाया कि भाजपा अटल की मौत का भी सियासी फायदा उठाने में जुटी है। उन्होंने मोदी की भाजपा पर भीड़तंत्र को बढ़ावा देने का भी आरोप लगाया।इसी तरह सबकुछ चलता रहेगा जब तक यह फ़ाइनल नही होता कि महागठबंधन होगा या नही होगा।ऐसा भी लग रहा कि अगर गठबंधन नही होता है मुसलमान क्या करेगा क्या वह सीधे तौर पर बसपा के साथ जाएगा या बिखर कर मोदी की भाजपा की मदद करेगा जिसकी संभावना कम ही नज़र आती है वह सीधे बसपा की तरफ़ जाकर मोदी की भाजपा के वोल्टज कम करने की रणनीति पर भी गौर कर सकता है सपा को यही भय सता रहा है जिसकी वजह से वह बसपा से गठबंधन को ज़मीन पर लेटने के लिए भी तैयार दिख रही है।