‘रावण’ की रिहाई ने बढ़ाया राजनीतिक दलों का बीपी
लखनऊ से तौसीफ़ क़ुरैशी
सहारनपुर के चन्द्रशेखर आज़ाद रावण की देर रात रिहाई की ख़बर इस वक़्त नेशनल मीडिया में टॉप ट्रेंड पर है जहां मीडिया के लोग इस पर बहस चला रहे हैं कि अब रावण का अगला कदम क्या होगा वहीं ज़िले के तमाम सियासी और ग़ैर सियासी लोग भी रावण के अगले कदम पर अपनी-अपनी राय पेश कर रहे हैं जिसका जवाब अभी किसी के पास नही सिर्फ भविष्य के गर्भ में छुपा है,सबसे ओहले सवाल ये है कि आखिर प्रदेश सरकार ने रावण की समय पूर्व रिहाई कि ही क्यों प्रदेश सरकार ने जो सफाई दी है कि रावण की माँ की याचिका पर सहानुभितुपूर्वक विचार कर ये निर्णय लिया गया है उसकी हवा रावण के वकील के इस बयान से निकल गई कि रावण की माँ की याचिका 5 माह पूर्व की है और बीते 5 माह में कोई भी याचिका नही दी गयी,उनका साफ कहना है कि सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र और प्रदेश सरकार से गिरफ्तारी पर जवाब मांगा था जिससे बचने के लिए और दलितों के रोष और हालिया दिल्ली प्रदर्शन के दबाव से सरकार ने समय पूर्व ये रिहाई की है,वहीं कुछ राजनीतिक पंडितों के मुताबिक ये सब योगी की प्लानिंग है और दलित वोटों को साधना और रावण को अपने पाले में करके उसको चुनाव लड़ना या राज्यसभा भेजना मक़सद हो सकता है,ऐसे क़यास है मगर भाजपा के खिलाफ बढ़ते दलितों के रोष और बढ़ता नज़र आ रहा है मुस्लिम-दलित समीकरण को देखते हुवे ये बात कुछ हज़म नही होती,अगर रावण इतनी जल्दी अपनी राजनीतिक महत्वकांक्षा ज़ाहिर कर देते हैं तो उनको इसका नुकसान उठाना पड़ सकता है और मुझे निजी तौर पर नही लगता कि रावण ऐसा कदम उठाएंगे जो उनको अर्श से फर्श पर पहुंचा दे, वहीं कांग्रेस के एक पूर्व विधायक जो अपने आपको सहारनपुर की सियासत का बहुत बड़ा नेता समझते है और अपने लिए कोई ठोर ठिकाना ढूँढते फिर रहे है क्योंकि वह जिस दल में आज कल है उसमें उनकी साम्प्रदायिक छवि आड़े आ रही है वैसे वह जिस परिवार से तालुक रखते है उसका इतिहास रहा है न वह किसी दल के हुए और न ही कोई दल उनका हुआ वह भी अपने विधायकों के साथ रावण के दरबार में हाज़री लगाने पहुंचे और उनकी जेल बन्दी के दौरान की अपनी कथित भागदौड़ के बारे में विस्तार से बताया मगर रावण उनकी चालों में आ जाये ऐसा नामुमकिन है,दलित नेता पूर्व मुख्यमंत्री मायावती के भीम आर्मी को भाजपा की उपज और छोटा-मोटा संगठन बताए जाने के बावजूद रावण ने रिहाई के फौरन बाद मायावती को दलित हितैषी और अपनी बुआ बताया जिससे साफ पता चलता है कि वो हाल फिलहाल मायावती से भिड़ने के मूड में कतई नही हैं और आगे शायद तालमेल की कुछ संभावनाओं को खुला रखना चाहते हैं,रावण ने अगले चुनाव में नही खड़े होने की बात कही है और राजनीति में न आकर सिर्फ अपने दलित समाज को मजबूत करने और दलित-मुस्लिम समीकरण पर काम करने की जो बात कही है उसके निहितार्थ निकाले जा सकते हैं,रावण ने रिहाई के बाद जिस तरह से भाजपा और योगी-मोदी पर करारा हमला बोला है और भाजपा को नेस्तनाबूद करने की बात कही है उससे भाजपा से उनकी सांठगांठ नज़र तो नही आती मगर राजनीति में कुछ भी असंभव नही होता ये सभी अच्छे से जानते हैं,अब फिलहाल रावण की अगली रणनीति पर चारों और के लोगों की नज़र तब तक तो बनी ही रहेगी जब तब वो खुद अपने मुह से अगली योजना का ऐलान खुद ही नही कर देते।तब तक यही चलता रहेगा कि चन्द्रशेखर आज़ाद उर्फ़ रावण यह कर सकता है या ये कर सकता है यही दौर चलता रहेगा परन्तु आज रिहा होने के बाद जो उन्होंने कहा वह मोदी की भाजापा के लिए मुफ़ीद नही है इस पूरे मामले में मोदी की भाजपा बैकफ़ुट पर नज़र आ रही है और वह ख़ुद भी यह समझ रही है कि वार ग़लत पड़ गया।