यूपी में नई पेंशन व्यवस्था में भारी गोलमाल, कैग ने किया खुलासा
नई दिल्ली: यूपी में नई पेंशन व्यवस्था(एनपीएस) में भारी गोलमाल का मामला सामने आया है. तीन साल में राज्य कर्मचारियों के वेतन से कितनी धनराशि काटी गई और सरकार ने कितना जमा किया, इसका कोई फंड ही नहीं उपलब्ध है. बाद के वर्षों में जो धनराशि कटी भी तो उसे ठीक से संबंधित खाते में जमा भी नहीं किया गया. पुरानी पेंशन व्यवस्था खत्म कर एक अप्रैल 2005 से लागू नई पेंशन व्यवस्था पर कैग की पड़ताल में बड़ा खुलासा हुआ है. नई स्कीम के तहत कर्मचारियों को अपनी बेसिक सेलरी और महंगाई भत्ते का दस प्रतिशत अंश देना पडता है. इतनी ही धनराशि राज्य सरकार भी देती है. इस प्रकार कर्मचारी और सरकार दोनों के अंश को नेशनल सिक्योरिटीज डिपोजिटरी लिमिटेड(NSDL) खाते में रखने की व्यवस्था है. इसे फंड मैनेजर बनाया गया है. इस प्रकार धनराशि कटौती और उसके उचित खाते में रख-रखाव में लापरवाही से कर्मचारियों को रिटायरमेंट के बाद पेंशन मिलने में दिक्कत आ सकती है.
सीएजी की जांच में पता चला कि नई पेंशन योजना के तहत उत्तर प्रदेश में कर्मचारियों के वेतन से 2005 से 2008 तक हुई कटौती की धनराशि का ब्यौरा ही उपलब्ध ही नहीं है. कैग ने वर्ष 2018 की रिपोर्ट नंबर एक में कहा है कि इससे यह नहीं पता चल सका है कि कितनी धनराशि सरकार ने काटी और कितना अंशदान सरकार ने किया. ब्यौरा उपलब्ध न होने से यह भी नहीं पता चला कि अगर कटौती हुई तो उससे अर्जित एनएसडीएल में जमा हुआ या नहीं. नई स्कीम के तहत कर्मचारियों के वेतन से हुई कटौती और राज्यांश का निवेश करने की बात है. कर्मचारियों के रिटायरमेंट पर मार्केट में शेयर की कीमत के हिसाब से लाभ मिलना है. मगर वर्ष 2005 से 2008 के बीच कितनी धनराशि का निवेश हुआ यह भी नहीं पता चल सका.
यूं तो यह कटौती एक अप्रैल 2005 से नियुक्त होने वाले कर्मियों के खाते शुरू हो जानी थी, मगर कैग को तीन साल तक कटौती का ब्यौरा ही उपलब्ध नहीं मिला. कैग की पड़ताल में पता चला कि वर्ष 2008-09 के बीच सरकारी कर्मचारियों की पेंशन के लिए वेतन से 2830 करोड़ रुपये की कटौती हुई. जिसके बदले में सिर्फ 2247 करोड़ रुपये राज्य सरकार ने अंशदान किया. खास बात है कि कर्मचारी और सरकारी अंश मिलाकर 2008-09 से लेकर 2016-17 के बीच कुल 5660 करोड़ रुपये जुटे. इसमें से सिर्फ 5001.71 करोड़ रुपये ही सरकार ने पेंशन वाले खाते में भेजा. 545.68 करोड़ रुपये भेजा ही नहीं गया.कैग ने रिपोर्ट में कहा कि सबसे गंभीर बात रही कि 2015-16 में कर्मचारियों के अंश जो 636.51 करोड़ था, वह 2016-17 में 199.24 करोड़ हो गया. इससे पता चलता है कि पैसा ट्रांसफर करने में अनियमितता हुई.