नई दिल्ली: हापुड़ मॉब लिंचिंग मामले में सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि आईजी मेरठ रेंज की देखरेख में इस मामले की जांच होगी. सीजेआई दीपक मिश्रा की अध्यक्षता वाली पीठ ने कहा कि सुप्रीम कोर्ट के फैसले के मुताबिक संबंधित आईजी की देखरेख में मॉब लिंचिंग मामले की जांच होगी. वहीं, यूपी पुलिस ने कोर्ट को बताया कि 11 में 10 आरोपी गिरफ्तार हो चुके हैं और छानबीन नई टीम कर रही है. साथ ही नोडल ऑफिसर सुपरविजन कर रहा है. इसके बाद कोर्ट ने मामले की सुनवाई दो हफ्ते तक टाल दी.

दरअसल, सुप्रीम कोर्ट हापुड़ में मॉब लिंचिंग से घायल गवाह समीउद्दीन की याचिका पर सुनवाई कर रहा है. पिछली सुनवाई में सुप्रीम कोर्ट ने यूपी सरकार को नोटिस जारी कर जवाब मांगा था और साथ ही मेरठ के आईजी से पूरे घटना की रिपोर्ट सौंपने को कहा था. कोर्ट ने पुलिस से समीउद्दीन की सुरक्षा सुनिश्चित करने को भी कहा था. आपको बता दें कि गवाह समीउद्दीन ने सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर कर अपनी सुरक्षा और केस को यूपी से बाहर ट्रांसफर करने की मांग की थी. साथ ही मामले में सुप्रीम कोर्ट की निगरानी में SIT टीम के गठन की मांग भी की थी. याचिकाकर्ता ने दो आरोपियों को दी गई जमानत रद्द करने की मांग की थी.

याचिकाकर्ता ने कहा था कि लोकल पुलिस सुप्रीम कोर्ट द्वारा मॉब लिंचिंग केस में जारी दिशा निर्देशों का पालन नहीं कर रही है. पुलिस एफआईआर को रोड रेज का मामला बना कर केस दर्ज कर रही है. पुलिस ने अभी तक उसका बयान तक दर्ज नहीं किया है. उनकी मांग है कि बयानों को मजिस्ट्रेट के समक्ष दर्ज कराया जाए और साथ ही मामले में विशेष लोक अभियोजक नियुक्त किया जाए. आपको बता दें कि पिछली सुनवाई में सुप्रीम कोर्ट ने मॉब लिंचिंग और गौरक्षा के नाम पर होने वाली हत्याओं को लेकर कहा था कि कोई भी नागरिक कानून अपने हाथ में नहीं ले सकता. डर और अराजकता की स्थिति में राज्य सरकारें सकारात्मक रूप से काम करें. कोर्ट ने संसद से ये भी कहा था कि वो देखे कि इस तरह की घटनाओं के लिए कानून बन सकता है क्या.

सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र और राज्य सरकारों को दी गई गाइडलाइन जारी करने को कहा था और अगले 4 हफ्तों में कोर्ट में जवाब पेश करने के निर्देश भी दिए थे. सुप्रीम कोर्ट ने जाति और धर्म के आधार पर लिंचिंग के शिकार बने लोगों को मुआवजा देने की मांग कर रही लॉबी को भी बड़ा झटका दिया था. चीफ जस्टिस ने वकील इंदिरा जयसिंह से असहमति जताते हुए कहा था कि इस तरह की हिंसा का कोई भी शिकार हो सकता है, सिर्फ वो ही नहीं जिन्हें धर्म और जाति के आधार पर निशाना बनाया जाता है.