मुंबई : डॉलर के मुकाबले रुपये में गिरावट का सिलसिला सोमवार को भी जारी रहा. सोमवार दोपहर को कारोबार के दौरान रुपया डॉलर के मुकाबले 71.21 पर पहुंच गया. यह रुपये का अब तक का रिकॉर्ड निचला स्तर है. इससे पहले रुपया 31 अगस्त को 71 के निचले स्तर पर पहुंच गया था. अमेरिका और चीन के बीच बढ़ते व्यापारिक तनाव, अर्जेंटीना व तुर्की के बढ़ते संकट और कच्चे तेल की वैश्विक कीमतों में बढ़ोतरी ने विदेशी मुद्रा विनिमय बाजार में धारणा प्रभावित की है.

ब्रेंट क्रूड की कीमत 0.57 प्रतिशत बढ़कर 78.08 डॉलर प्रति बैरल तक पहुंच गई है. इसी बीच बंबई शेयर बाजार का सेंसेक्स 332.55 अंक गिरकर 38,312.52 अंक पर और नेशनल स्टॉक एक्सचेंज का निफ्टी भी 98.15 अंक घटकर 11,582.35 अंक पर बंद हुआ है. रुपये में आगे भी गिरावट जारी रह सकती है. डॉलर के लगातार मजबूत होने से रुपया में कमजोरी आ रही है, अंतरराष्ट्रीय मार्केट में क्रूड की कीमतों में पिछले दिनों में तेजी देखने को मिल रही है. रुपये में गिरावट का असर आम आदमी पर इस तरह पड़ सकता है.

डॉलर के मुकाबले रुपए के 71 रुपये का स्तर पार पहुंचने का असर क्रूड के इंपोर्ट पर पड़ेगा. इंपोर्ट्स को तेल की ज्यादा कीमत चुकानी होगी. इसकी वजह से तेल कंपनियां रोजाना होने वाली पेट्रोल-डीजल की कीमतों में हो सकता है. भारत अपनी जरूरत का 80 फीसदी से ज्यादा क्रूड आयात करता है. ऐसे में डॉलर की कीमतें बढ़ने से इनके इंपोर्ट के लिए ज्यादा कीमत चुकानी होगी. इंपोर्ट महंगा होगा तो ऑयल मार्केटिंग कंपनियां पेट्रोल-डीजल की कीमतें बढ़ा सकती हैं.

देश में खाने-पीने की चीजों और दूसरे जरूरी सामानों के ट्रांसपोर्टेशन के लिए डीजल का इस्तेमाल होता है. ऐसे में डीजल महंगा होते ही इन सारी जरूरी चीजों के दाम बढ़ेगा. वहीं, एडिबल ऑयल भी महंगे होगे.

अगर पेट्रोलियम उत्पाद महंगे हुए तो पेट्रोल-डीजल के साथ-साथ साबुन, शैंपू, पेंट इंडस्ट्री की लागत बढ़ेगी, जिससे इन प्रोडक्ट्स के दाम बढ़ने की संभावना है.

ऑटो इंडस्ट्री की लागत बढ़ेगी, साथ ही डीजल की कीमतों में बढ़ोत्तरी से माल ढुलाई का खर्च भी बढ़ने का डर रहता है. रुपए में गिरावट बनी रही तो कार कंपनियां आगे कीमतें बढ़ाने पर विचार कर सकती हैं.