पूर्व मुख्य सांख्यिकीविद् ने नोटबंदी को पूरी तरह नाकाम बताया
नई दिल्ली: नोटबंदी के करीब दो साल बाद भारतीय रिजर्व बैंक ने कहा कि बंद किए गए 500 और 1000 के नोटों की गिनती पूरी हो गई है. रिजर्व बैंक ऑफ इंडिया ने वित्त वर्ष 2017-18 के सालाना रिपोर्ट में कहा है कि नवंबर 2016 से पहले मौजूद 500 और 1000 के नोटों में से 99.3 फीसदी नोट बैंकों में लौट आए हैं.
विपक्षी पार्टियों की आरबीआई की ओर से सालाना रिपोर्ट को चौंकाने वाला करार देने के बीच भारत के पूर्व मुख्य सांख्यिकीविद् प्रोनब सेन ने इस घटना को अपेक्षा के मुताबिक बताया है. जानेमाने अर्थशास्त्री ने नोटबंदी की पूरी प्रक्रिया को विफल बताया है.
सेन ने कहा, 'नेटबंदी सफल रही या विफल ये उसके उद्देश्यों पर निर्भर करता है. सरकार ने जिन नोटों को अवैध करार दिया था, वो सिस्टम में अब वापस नहीं आएंगे. अनुमान के मुताबिक, इनकी संख्या करीब 3 लाख करोड़ थी. अगर इसे सरकार का उद्देश्य कहा जाए, तो हां सरकार का ये उद्देश्य फेल हो गया. क्योंकि, ऐसे नोटों का कुल आंकड़ा 13 हज़ार करोड़ है. ये नेपाल, भूटान, बांग्लादेश, म्यांमार जैसे देशों की वजह से है, क्योंकि इन देशों के पास करेंसी के एक्सचेंज की सुविधा नहीं है.'
नवंबर 8, 2016 से पहले 500 और 1,000 रुपए के 15.41 लाख करोड़ रुपये के नोट चलन में थे. रिजर्व बैंक की रिपोर्ट के मुताबिक इसमें से 15.31 लाख करोड़ रुपए के नोट बैंकों के पास वापस आ चुके हैं.
सेन ने आगे कहा कि सरकार इस बात में विफल रही कि कैसे कालाधन अर्थव्यवस्था में परिचालित होता है. सेन ने कहा, 'किसी भी व्यक्ति को जिसे थोड़ी सी भी इस बात की समझ होगी कि कैसे कालाधन काम करता है, ये जानता था कि इसका यही परिणाम होगा. मैं बिल्कुल आश्वस्त था कि ज्यादातर नोट वापस लौट आएंगे. इसका कारण है कि कोई भी कालेधन को अपने पास नहीं रखता. केवल कुछ अस्थायी उपायों को छोड़ दिया जाए तो बहुत ही कम लोग इसे नकदी में रखते हैं. बेहद कम समय के लिए इस पैसे को लोग नकदी के रूप में अपने पास रखते हैं जिसके बाद उसे किसी ऐसे जगह पर लगा दिया जाता है जिससे आमदनी आ सके.'
उन्होंने आगे विस्तृत रूप से समझाते हुए कहा कि कालेधन के दो सबसे सामान्य उपयोग व्यापार और पैसे का लेनदेन करना है. उन्होंने कहा, 'पूरा व्यापार नकदी पर चलता है, जिसमें से एक अच्छा-खासा हिस्सा कालाधन है. ये दोनों ही आर्थिक रूप से मूल्यवान गतिविधियां हैं. इसमें कोई शक नहीं है कि इन दोनों गतिविधियों में कालेधन का उपयोग कम हुआ है, लेकिन उस हिसाब से नहीं जितनी सरकार ने उम्मीद की थी.'