लखनऊ: भाकपा (माले) ने जाने-माने मानवाधिकार कार्यकर्ताओं व वाम रुझान वाले बुद्धिजीवियों की 'शहरी नक्सली' के नाम पर दिल्ली समेत विभिन्न राज्यों से मंगलवार को हुई गिरफ्तारी को लोकतंत्र पर हमला बताते हुए कहा है कि नरेंद्र मोदी की सरकार इंदिरा गांधी के आपातकाल को दुहरा रही है।

राज्य सचिव सुधाकर यादव ने इसकी निंदा करते हुए कहा कि ये गिरफ्तारियां राजनीतिक हैं। इससे लगता है हम सभी लोग संवैधानिक लोकतंत्र की जगह फासीवादी हुकूमत में रह रहे हैं। जिन पांच व्यक्तियों – वकील व ट्रेड यूनियन नेता सुधा भारद्वाज, मानवाधिकार कार्यकर्ताओं गौतम नवलखा, वर्नोन गोंजाल्विस व अरुण फेरेरा और कवि वारावरा राव को कल गिरफ्तार किया गया, वे सभी लोकतंत्र की थाती हैं। उन्हें गिरफ्तार कर सरकार असहमति, जनतंत्र और न्याय की आवाज को सत्ता की ताकत से कुचलने की कार्रवाई कर रही है। यह मोदी सरकार की लोकसभा चुनाव पूर्व की हताशा-निराशा को दर्शाता है।

माले नेता ने कहा कि इन बुद्धिजीवियों की गिरफ़्तारी को भीमा-कोरेगांव की घटना और प्रधानमंत्री मोदी की हत्या योजना से जोड़ने का आरोप निहायत ही हास्यास्पद है। जबकि भीम कोरेगांव मामले में हिंसा भड़काने वाले असल अपराधी और संगठन – सांभाजी भिड़े से लेकर सनातन संस्था तक – जिन्हें सजा मिलनी चाहिए – महाराष्ट्र व केंद्र की भाजपा सरकार के संरक्षण में मजे कर रहे हैं, क्योंकि वे संघ (आरएसएस) की आंखों के तारे हैं।

माले नेता ने कहा कि ये गिरफ्तारियां भाजपा संगठन और सरकार में शीर्ष नेतृत्व के इशारे पर की गई हैं, ताकि चुनाव पूर्व बेला में मोदी सरकार की नाकामियों और देश में बढ़ रहे गुस्से से देशवासियों का ध्यान हटाया जा सके। उन्होंने कहा कि लेकिन मोदी सरकार को नही भूलना चाहिए कि हिटलर के फासीवाद और इंदिरा गांधी के आपातकाल का क्या हस्र हुआ। मतलब यह कि उन जैसों का काम करने वालों को देश सबक सिखाना जानता है। उन्होंने गिरफ्तार बुद्धिजीवियों की अविलंब रिहाई की मांग करते हुए सभी लोकतंत्र पसंद नागरिकों व संगठनों से मोदी सरकार के फासीवादी हमलों के खिलाफ एकजुट होकर आगे आने की अपील की।

उन्होंने बताया कि इन गिरफ़्तारियों के विरोध में भाकपा (माले) और जनसंगठनों के कायकर्ताओं ने बुधवार को वाराणसी, इलाहाबाद, लखनऊ, गाजीपुर व प्रतापगढ़ में प्रदर्शन किया।