34 बिजली कंपनियों पर दिवालिया होने का खतरा
नई दिल्ली: बिजली क्षेत्र के लिए 15 दिन बहुत नाजुक हैं. क्योंकि कर्ज में डूबीं जिंदल, जेपी पॉवर वेंचर, प्रयागराज पॉवर, झबुआ पॉवर, केएसके महानंदी समेत 34 बिजली कंपनियों के लिए रिजर्व बैंक ऑफ इंडिया (RBI) ने जो डेडलाइन सेट की थी, वह 27 अगस्त (सोमवार) को खत्म हो गई और केंद्रीय बैंक उन्हें और मोहलत देने को तैयार नहीं है. इन 34 बिजली कंपनियों पर बैंकों का 1.5 लाख करोड़ रुपए बकाया है.
मीडिया रिपोर्टों के मुताबिक, रिजर्व बैंक ने फरवरी 2018 में एक सर्कुलर में स्पष्ट किया था कि कर्ज में डूबीं 70 कंपनियां इसे चुकाने में देरी करती हैं तो उसे डिफॉल्टर मान कर उनके कर्ज की गई रकम को एनपीए (फंसा लोन) घोषित कर दिया जाएगा. इसे तकनीकी भाषा में 'वन डे डिफॉल्ट नॉर्म' कहते हैं. यह 1 मार्च 2018 से लागू हो गई थी. बैंकों को ऐसे सभी पिछले मामलों को सुलझाने के लिए 1 मार्च 2018 से 180 दिनों का वक्त दिया गया था जो सोमवार (27 अगस्त) को पूरा हो गया. इस दौरान कंपनियों और बैंकों के बीच जो मामले नहीं सुलझे उन सभी कंपनियों के खातों को दिवालिया घोषित करने की प्रक्रिया में शामिल होने के लिए मजबूर किया जा सकता है. इन खातों में बैंकों का कुल 3800 अरब रुपये का कर्ज फंसा है. आरबीआई ने इन 70 कंपनियों को 15 दिन का समय दिया है ताकि वे अपना वकील और रिजॉल्यूशन प्रोफेशनल एप्वाइंट कर सकें. अगर इन 15 दिन में कंपनियों कोई समाधान पेश करती हैं और वह सभी कर्ज देने वाले बैंकों को मंजूर होता है तो इन खातों को कोर्ट नहीं भेजा जाएगा.
स्टेट बैंक के चेयरमैन रजनीश कुमार ने कहा कि समयसीमा का बैंकों के प्रावधान पर कोई ठोस प्रभाव नहीं पड़ेगा क्योंकि बैंक पहले से ही इन खातों के समाधान की प्रकिया में लगे हैं. भारतीय बैंक संघ (आईबीए) की सालाना आम बैठक से इतर कुमार ने कहा, "27 अगस्त की समयसीमा का प्रावधान आवश्यकताओं पर कोई ठोस प्रभाव नहीं पड़ेगा क्योंकि उनमें से अधिकतर की पहचान डूबे कर्ज के रूप में वर्गीकृत किए जा चुके हैं. कुमार ने कहा कि 34 संकटग्रस्त बिजली कंपनियों के खातों में से 16 को पहले ही एनसीएलटी के पास भेजा जा चुका है, इनका कुल मूल्य 1740 अरब डॉलर है और सात मामलों में समाधान प्रक्रिया अंतिम चरण में है.
वित्त मंत्री अरुण जेटली ने कहा है कि संप्रग के दौरान उच्च आर्थिक वृद्धि के आंकड़े और बैंकों के फंसे कर्जों (एनपीए) की बाढ़ दरअसल 2008 के वैश्विक ऋण संकट से पहले और बाद में दिये गये अंधाधुंध कर्ज की वजह से है. संप्रग सरकार के दौरान आर्थिक वृद्धि दर के आंकड़ों को लेकर सत्ताधारी भाजपा और विपक्षी दल कांग्रेस में जुबानी जंग के बीच जेटली ने कहा कि उस समय की वृद्धि अंधाधुंध ऋण के बलबूते थी. बैंकों ने उस समय अव्यावहारिक परियोजनाओं को ऋण दिया, जिसके कारण बैंकिंग प्रणाली में एनपीए 12 प्रतिशत पहुंच गया है.इन्हीं वजहों से 2012-13 और 2013-14 में वृहत आर्थिक समस्याएं खड़ी हुईं.
वित्त मंत्रालय बिजली क्षेत्र के मसलों के समाधान के लिए जल्द ही रिजर्व बैंक के साथ बातचीत कर सकता है.सूत्रों ने कहा कि इलाहबाद उच्च न्यायालय के आदेश के तहत मंत्रालय आरबीआई से परामर्श करेगा. अदालत ने निजी बिजली कंपनियों को आरबीआई के एनपीए पर 12 फरवरी के आदेश से कोई अंतरिम राहत देने से इनकार कर दिया. आठ-नौ चालू बिजली परियोजनाएं इलाहबाद उच्च न्यायालय के फैसले से प्रभावित होंगी.