वायु प्रदूषण से निपटने के लिये उत्तर प्रदेश की तैयारी सुस्त
ग्रीनपीस इंडिया के आरटीआई से मिली जानकारी में हुआ खुलासा
लखनऊ: ग्रीनपीस इंडिया को प्राप्त आरटीआई (सूचना के अधिकार कानून) से मिली जानकारी में यह सामने आया है कि उत्तर प्रदेश के ज्यादातर शहर अभी भी वायु प्रदूषण से निपटने के लिये तैयार नहीं हैं। केन्द्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड ने आरटीआई के जवाब में बताया है कि उत्तर प्रदेश के 15 अयोग्य शहरों (नान- अटेन्मेंट शहर, वे शहर जहां वायु प्रदूषण का स्तर गुणवत्ता मानक से बहुत अधिक है) में से सिर्फ चार शहरों की वायु प्रदूषण से निपटने की कार्ययोजना लागू करने के लिये तैयार है, लेकिन जनता से साझा न होने के कारण प्रदूषण में कटौती के लक्ष्यों की समय सीमा पर अभी भी संशय बरकरार है। इन शहरों में आगरा, लखनऊ, वाराणसी और फिरोजाबाद शामिल है। वहीं छह अन्य शहरों- इलाहाबाद, अनपरा, बरेली, गाजियाबाद, कानपुर और मुरादाबाद को केन्द्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड ने फिर से कार्ययोजना भेजने के लिये कहा है। जबिक तीन शहर झांसी, नोएडा और खुर्जा ने अभी तक सीपीसीबी को अपनी कार्ययोजना भेजी ही नहीं है। फिलहाल रायबरेली और गजरौला की कार्ययोजना की समीक्षा की जा रही है।
2016 में पर्यावरण मंत्रालय ने देशभर के 96 शहरों को अयोग्य शहरों की सूची में शामिल किया था जिनकी संख्या अब बढ़ा कर 102 हो गयी है, ये वो शहर हैं जहां वायु प्रदूषण का स्तर मानक से कहीं अधिक है। केन्द्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड ने इन शहरों से वायु प्रदूषण को कम करने के लिये कार्ययोजना मांगी थी जिसमें उत्तरप्रदेश के भी 15 शहर शामिल किये गए थे।
हालांकि ग्रीनपीस द्वारा जनवरी 2018 में जारी की गयी रिपोर्ट एयरोप्किल्पिस 2 में उत्तर प्रदेश के उन सभी 22 शहरों, जहाँ वायु गुणवत्ता की निगरानी की जाती है- में वायु प्रदूषण की मात्रा को राष्ट्रीय वायु गुणवत्ता मानक से कहीं अधिक पाया था। इसके विपरीत उत्तर प्रदेश के 50 से अधिक जिलों में वायु गुणवत्ता को नापने के लिये अभी तक सरकार द्वारा कोई वायु गुणवत्ता यंत्र ही नहीं लगाया जा सका है। इस रिपोर्ट में 280 शहरों के वर्ष 2015 और 2016 के साल भर का औसत पीएम 10 को दर्ज किया गया था। इस आधार पर देश के 30 सबसे प्रदूषित शहरों में 15 शहर सिर्फ उत्तर प्रदेश के थे। इसी साल मई में विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्लू एच ओ) की तरफ से जारी एक अन्य रिपोर्ट में दुनिया के प्रदूषित शहरों की सूची में 20 सबसे अधिक प्रदूषित शहरों में से 6 शहर उत्तर प्रदेश के शामिल थे। अगर सिर्फ साल 2016 के आंकड़े को देखा जाये तो कानपुर को इस लिस्ट में दुनिया का सबसे प्रदूषित शहर बताया गया है।
ग्रीनपीस के सीनियर कैंपेनर सुनील दहिया कहते हैं,“उत्तर प्रदेश में सिर्फ 24 शहरों में ही वायु निगरानी यंत्र लगाए गए हैं,जबकि 50 से अधिक जिलों में वायु गुणवत्ता नापने का कोई यंत्र ही नहीं है। ऐसे में अयोग्य शहरों की लिस्ट में यूपी से सिर्फ 15 शहरों का होना पूरी कहानी नहीं दर्शाता, सत्य यह है की पूरा प्रदेश ही वायु प्रदूषण से उत्पन्न स्वास्थ्य आपातकाल से जुझ रहा है। चिन्हित 15 शहरों में से भी अधिकतर शहरों के द्वारा वायु प्रदूषण से निपटने के लिये कोई व्यापक कार्ययोजना तैयार न किया जाना सरकारी तंत्र पर कई सवाल उठाता है जिनमें सबसे महत्वपूर्ण सवाल यह है कि क्या सरकार प्रदूषण फैलाने वाले कारख़ानों एवं उद्योगों के फ़ायदे को नागरिकों के स्वास्थ्य से अधिक प्राथमिकत्ता दे रही है और प्रदूषण कम करने के लिए कोई ठोस क़दम नहीं उठा पा रही है ।”
सुनील आगे कहते हैं, “केन्द्र सरकार एक व्यापक और तय समय-सीमा को शामिल करते हुए अप्रैल में जारी किए गए प्रारूप (ड्राफ़्ट) राष्ट्रीय स्वच्छ वायु कार्यक्रम के पूर्ण संस्करण की घोषणा करने वाली थी जोकि अब तक नहीं हो पायी है, हालाँकि दोनों-केंद्र सरकार एवं राज्य सरकार इस पूर्ण संस्करण को बनाने के लिए महत्वपूर्ण भूमिका में हैं लेकिन इसकी देरी से हर रोज़ हमें आर्थिक एवं मानव स्वास्थ्य दोनो का ही नुक़सान हो रहा है।”
उत्तर प्रदेश सहित देश के दूसरे राज्यों में वायु प्रदूषण की स्थिति खराब बनी हुई है। यह जरुरी है कि केन्द्र सरकार एवं राज्य सरकारें मिल कर सभी प्रदूषण के कारको को चिन्हित करते हुए एक व्यापक और तय समयसीमा के साथ इस कार्यक्रम को लागू करे, जिसमें राष्ट्रीय स्तर के साथ-साथ शहर, क्षेत्रीय और राज्य स्तर पर इस योजना को प्रभावी तरीके से लागू किया जाये।
सुनील अंत में जोड़ते हैं, “राष्ट्रीय स्तर के साथ-साथ शहर स्तर पर प्रदूषण घटाने के लिए निर्धारित समय सीमाओं के साथ क्षेत्रीय कार्ययोजना वायु प्रदूषण की समस्या से निपटने में सहायक साबित होगी। आने वाले सर्दियों के मौसम में एक बार फिर पूरा उत्तर भारत और देश के दूसरे हिस्से वायु प्रदूषण की चपेट में होंगे। उससे पहले अगर ठोस कार्ययोजना लागू किया जाता है तभी इस समस्या से बचा जा सकता है।