नई दिल्ली: भारत में बेरोजगारी को लेकर काफी चर्चा होती है. दरअसल, ये सरकार के लिए एक बड़ी चुनौती भी है. लेकिन खुद सरकार की ओर से जारी आंकड़े हैरान करने वाले हैं. सरकार द्वारा शुक्रवार को जारी पेरोल डाटा के मुताबिक जून तक हुए 10 माह में देशभर में 60 लाख से ज्यादा लोगों ने नौकरी ही छोड़ दी. हालांकि बड़ी संख्या में लोगों को रोजगार या नौकरियां मिली भी हैं. लेकिन सरकार को नौकरी छोड़ने के इस ट्रेंड को गंभीरता से लेना होगा.

सबसे चौंकाने वाली बात यह है कि नौकरी छोड़ने वाले 46 लाख लोग 35 साल से कम उम्र के युवा हैं. इनमें कई ने दोबारा नौकरी ज्वाइन की भी और नहीं भी की. अप्रैल में पहली बार पेरोल डाटा रिलीज की गई थी, उसके बाद से यह पहली बार हुआ है कि ईपीएफओ के आंकड़ों के हिसाब से लोग औपचारिक नौकरी छोड़ रहे हैं.

सरकार ने कहा कि सितंबर 2017 से जून 2018 के बीच एक करोड़ 7 लाख कर्मचारियों ने ईपीएफओ ज्वाइन किया, जिसमें 60 लाख 4 हजार कर्मचारियों ने ईपीएफओ ने योगदान करना बंद कर दिया. सरकार ने हाल में औपचारिक नौकरी के ट्रेंड को आंकने के लिए ईपीएफओ के आंकड़े को बड़ा पैमाना बनाया है.

हालांकि सरकार ने अपनी इस रिपोर्ट में यह स्पष्ट नहीं किया है कि ईपीएफओ से कर्मचारी इतनी बड़ी संख्या में क्यों नाता तोड़ रहे हैं. लाइव मिंट की खबर में एक सरकारी अधिकारी ने नाम न प्रकाशित करने की शर्त पर कहा कि भारत में नौकरी की स्थिति की सटीक जानकारी हासिल करने की कोई प्रणाली ही नहीं है.

ईपीएफओ डाटा एक पैमाना है. उनका कहना था कि ईपीएफओ में अंशदान करने को लेकर कई वजह हैं. कई बार कॉन्ट्रैक्चुअल जॉब का होना, ऑटोमेशन, सैलरी में असमानता आदि बड़ी वजह हैं.

भारतीय श्रम बाजार में नौकरी की गुणवत्ता परेशानी वाला मुद्दा है. अंतरराष्ट्रीय श्रम संगठन और वर्ल्ड बैंक ने कई बार कहा है कि भारत में गुणवत्ता परक नौकरियों की काफी जरूरत है.