तौसीफ कुरैशी

हिन्दुस्तान के नगरों में अगर किसी नगर की सीधे तौर पर देश और दुनियाँ में पहंचान है तो वह देवबन्द है जिसकी सबसे बड़ी वजह दारूल उलूम है। देवबन्द एक ऐसा नगर है जिसको किसी की पहंचान की ज़रूरत नही है।यह बात बिलकुल सही है।हिन्दुस्तान की आज़ादी की शुरूआत भी देवबन्द के अकाबिरों ने ही की जब भी इतिहासकारों ने आज़ादी के इतिहास को लिखने के लिए क़लम चलाई तो देवबन्द को जगह दिए बिना इतिहास मुकम्मल नही हुआ इसके अलावा भी देवबन्द की महान हस्तियों की बदौलत से देवबन्द ने देश व दुनियाँ में अपना अलग मुक़ाम बनाया जो अब तक बरक़रार है लेकिन उसी देवबन्द की सियासी रहनुमाई करने वालों की जब आप बात करेंगे तो लगता है कि हम देवबन्द में ही नही किसी ऐसी जगह है जहाँ के बाशिन्दों की कोई सोच ही न हो जिनपर यह शेर सही बैठता है कि–

कैसे कैसे ऐसे वैसे हो गए
ऐसे वैसे कैसे कैसे हो गए

टिकट ब्लैक करने वाले गरम गोश्त को अपने राजनीतिक आकाओं को पेश करने वाले, भ्रष्टाचार कर अपनी अकूत सम्पत्ति बनाने में कामयाब होने वाले,इस देवबन्द की पहंचान बनकर राजनीति के शिखर पर पहुँच गए। देवबन्द में बिरादरीवाद (जातिवाद) भी बहुत हद तक हावी है यहाँ पर ज़्यादातर चुनाव बिरादरीवाद (जातिवादी) व साम्प्रदायिकता के आधार पर होते है| मुसलमानों में एक बिरादरी ऐसी है जो पहले अपनी बिरादरी (जाति) को प्राथमिकता देती है बाद में मुसलमान को यानी पहले बिरादरी बाद में मुसलमान, इस बिरादरी का इतिहास रहा है कि उसने नगर निकाय चुनाव में अपनी बिरादरी के अलावा किसी अन्य को वोट ही नही दिया| मुसलमानों को जब-जब यह ख़तरा महसूस हुआ कि इस चक्कर में सीट दूसरे के पास चली जाएगी तो उसे बचाने के लिए बाक़ी मुसलमान उसी बिरादरीवादी (जातिवादी) के उम्मीदवार के साथ ही चला जाता है लेकिन उस बिरादरी (जाति) ने कभी दूसरी बिरादरी (जाति) के मुस्लिम उम्मीदवार को वोट नही दिया।

एक बिरादरी ऐसी भी है जिसका ज़मीर मर चुका है जिसने अपनी सियासी पहंचान ही समाप्त कर ली और एक बिरादरी (जाति) की पिछलग्गू बनकर रह गई उसी का नतीजा है कि वह अपने एक नंबर के मूल कारोबार को नंबर दो में करने को विवश है और वह बिरादरी अपनी इस बेशर्मी पर ख़ुश है, इसकी सबसे बड़ी वजह काले व सफ़ेद का कारोबार माना जाता है| ऐसा भी नही है कि काले और सफ़ेद के कारोबार को पूरी बिरादरी करती है, चन्द लोगों की वजह से पूरी बिरादरी का अस्तित्व समाप्ति की ओर है बल्कि अगर यह कहा जाए कि समाप्त हो गया है तो ग़लत नही होगा | इस पूरी बिरादरी में कुछ लोग ऐसे है जिनमें बुराइयाँ अपने चरम पर है उसी का फ़ायदा सियासी नेता उठाते है और भुगत पूरी बिरादरी रही है लेकिन उस बिरादरी को होश नही आ रहा।क्या उनमें नेतृत्व करने की क्षमता नही है ऐसा नही है।असल बात यह है कि सूद, जुआ, सट्टा जैसी बुराइयों ने इसके लोगों को जकड़ रखा है जिसकी वजह से यह सब हो रहा है, ऐसा भी नही है कि पूरी बिरादरी इन सामाजिक बुराइयों में शामिल है कुछ लोग हैं पर जो सही हैं वह ख़ामोश हैं जिसकी वजह से बुरे लोग नेतृत्व कर रहे हैं ।

अब बात करते है एक ऐसी बिरादरी की जो अपने आप में परिपक्व व शिक्षित होने की वजह से बड़ी ख़ूबसूरती से अपने बिरादरीवाद (जातिवादी) चेहरे को छुपाकर पूरा गेम बजाती है लेकिन पता नही चलता परन्तु घोर बिरादरीवाद की कोई कमी नही है| ख़ैर कौन नही यह चाहेगा कि हमारा वर्चस्व रहे, यह वही हैं ।देवबन्द के मुसलमानों में तीन बिरादरी बड़ी मानी जाती है अन्सारी, क़ुरैशी, शेखजादा अन्य बड़ी जातियों में पठान व गाड़ा है। वहीँ दूसरी ओर उद की तस्करी के बादशाह के भी देवबन्द से ताल्लुक़ को नकारा नही जा सकता क्योंकि उनका देवबन्द से 35 सालों से रिश्ता चला आ रहा है तथा वह एक सियासी पार्टी भी चलाते है उनकी ही वजह से एक प्रदेश में आज अफ़रातफ़री का माहौल है क्योंकि उन्होंने मोदी की भाजपा से साँठगाँठ कर वहाँ मोदी की भाजपा की सरकार बनवाने में अहम किरदार निभाया ओर जो काम नही हो सकता था वह उन्होंने कर दिखाया क्योंकि वहाँ मोदी की भाजपा की सरकार किसी भी सूरत में यह नही कहा जा सकता था कि वहाँ साम्प्रदायिक सरकार बन सकती है राजनीतिक पण्डित उस राज्य के चुनावी परिणाम आने पर हैरान थे कि अनमल ऐसा भी कर सकते है लेकिन केन्द्र की मोदी सरकार के द्वारा उद की तस्करी के मामले पर वह सियासी रहनुमा ऐसा घिरा कि पूरी कॉम व मिल्लत को ही बेच दिया उसी का ही नतीजा है कि आज वहाँ मोदी की भाजपा की सरकार है और वहाँ उसकी सरकार का क़हर जारी है और वह है कि बड़ी ही शान से ज़िन्दगी जी रहा है वही शख़्स आजकल शहर में चर्चा का विषय बना हुआ है| पता चला है कि उसने किसी को अपने सियासी रसूख़ का लाभ उठाकर रंगदारी के आरोप में पकड़वा दिया अब यह कहना उचित है या अनुचित यह तो आने वाले समय में ही मालूम पड़ पाएगा कि सियासी रसूख़ का लाभ उठाकर रंगदारी के आरोप में जेल गया व्यक्ति सही है या ग़लत लेकिन यह बात किसी तरीक़े से गले नही उतर रही कि जो व्यक्ति अपने निजी लाभ के लिए कॉम व मिल्लत का सौदा कर सकता है वह कुछ भी कर सकता है।सही को ग़लत और ग़लत को सही।मोदी के सियासी खेल तीन तलाक़ के बिल पर अपनी पार्टी होने के बाद भी ख़ामोशी अख़्तियार रखना यह शख़्स पहले ही सवालों के घेरे में है यही नही दारूल उलूम देवबन्द में मोहतमिम के पद को लेकर चले विवाद को जन्म देने में भी इन्हीं का हाथ था जिसकी वजह से दारूल उलूम को गोदी मीडिया ने बड़े पैमाने पर उछाला था,जिसकी वजह से देवबन्दी हल्को में बहुत नाराज़गी थी वह भी उसकी सियासी चाल का हिस्सा थी क्योंकि जब भी उसके राज्य में चुनाव होने थे और देवबन्द के मौलाना उनके ख़िलाफ़ प्रचार में जा रहे थे उनको देवबन्द में उलझाने के लिए दारूल उलूम देवबन्द के मोहतमिम के पद को विवादित बना दिया था।यह है उनका चाल चरित्र और चेहरा।

TAUSEEF QURESHI

Accredited Journalist

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