नई दिल्ली: देश में नोटबंदी हुए 2 साल पूरे होने वाले हैं, लेकिन देश का मध्यम और लघु उद्योग अभी तक नोटबंदी के असर से पूरी तरह से ऊबर नहीं पाया है। नोटबंदी के करीब एक साल बाद ही देश में जीएसटी लागू होने के बाद इन मध्यम और लघु उद्योगों की परेशानी में और इजाफा ही हुआ है। बता दें कि रिजर्व बैंक ऑफ इंडिया की एक स्टडी में ये खुलासा हुआ है। आरबीआई की इस स्टडी के अनुसार, देश के सूक्ष्म, लघु और मध्यम उद्योग (एमएसएमई MSMEs) को बीते दिनों दो बड़े झटके लगे। पहले नोटबंदी और बाद में जीएसटी। उदाहरण के लिए, नोटबंदी के कारण परिधान उद्योग, रत्न और ज्वैलरी सेक्टर में काम करने वाले संविदाकर्मियों को, खबर के अनुसार, वेतन नहीं मिल पा रहा है।

उसी तरह, जीएसटी के आने के बाद सूक्ष्म, लघु और मध्यम वर्ग के उद्योगों में अनुपालन लागत और अन्य लागत काफी बढ़ गई है। साथ ही अधिकतर सूक्ष्म, लघु और मध्यम वर्ग के उद्योग टैक्स की सीमा में आ गए हैं। हालांकि वित्तीय वर्ष अप्रैल-जून 2016 से तुलना करें तो वित्तीय वर्ष 2018-19 में जून तिमाही तक इन उद्योगों के बैंक क्रेडिट में करीब 8.5% की तेजी आयी है। आरबीआई की रिपोर्ट के अनुसार, सूक्ष्म, लघु और मध्यम उद्योगों की बड़ी संख्या लोन के लिए अनौपचारिक चैनलों पर निर्भर है, क्योंकि अनौपचारिक चैनल के माध्यम से इन उद्योगों को आसानी से लोन मिल जाता है और इन्हें कोई डॉक्यूमेंटेशन भी नहीं करना पड़ता, हालांकि इस तरह के लोन में ब्याज दर काफी ऊंची होती है।

एमएसएमई सेक्टर में लोन आमतौर पर माल का मूल्यांकन करने के बाद दिया जाता है, ना कि बिजनेस की क्षमता के आधार पर। साथ ही बैंक स्टार्ट अप पर विश्वास भी नहीं करते हैं और इस तरह के लोन को रिस्की मानते हैं। उल्लेखनीय है कि औपचारिक चैनल्स में एमएसएमई को लोन मुख्यता बैंकों द्वारा दिया जाता है। आरबीआई की स्टडी के अनुसार, बैंकों द्वारा दिया जा रहा लोन नोटबंदी के बाद से कम हो गया है। जिसका असर सूक्ष्म, लघु और मध्यम उद्योगों पर सबसे ज्यादा पड़ा है।