आडवाणी चाहते थे मेरा ट्रांसफर, वाजपेयी जी ने किया था बचाव: जस्टिस काटजू
नई दिल्ली: कोर्ट के पूर्व न्यायाधीश मार्कंडेय काटजू ने भी देश के इस महान बेटे के जाने पर अपना दुख जाहिर किया और फेसबुक के जरिए अटल जी से जुड़ा हुआ एक किस्सा सुनाया। उन्होंने बताया कि एक बार जब इलाहाबाद हाईकोर्ट में मुसलमानों के हक में फैसला दिया गया था, उस वक्त लालकृष्ण आडवाणी उनका ट्रांसफर करवाना चाहते थे, लेकिन अटल जी ने सामने आकर काटजू का बचाव किया था।
पूर्व न्यायाधीश ने ‘किस तरह मेरे बचाव में अटल बिहारी वाजपेयी आगे आए थे’ शीर्षक के साथ फेसबुक पर एक पोस्ट लिखा। उन्होंने लिखा, ‘मेरी कभी अटल बिहारी वाजपेयी से मुलाकात नहीं हुई थी, लेकिन मैं वह किस्सा सुनाना चाहता हूं जब अटल जी मेरे बचाव में आगे आए थे। जब यह घटना हुई उस वक्त मैं इलाहाबाद हाईकोर्ट का जज था। उस वक्त बीजेपी केंद्र और उत्तर प्रदेश, दोनों ही जगह सत्ता में थी। अटल जी प्रधानमंत्री थे और ‘लौह पुरुष’ डिप्टी पीएम थे।’
काटजू ने आगे लिखा, ‘मोहम्मद शरीफ सैफी बनाम उत्तर प्रदेश राज्य, 1998 का केस इलाहाबाद हाईकोर्ट में मेरे सामने आया। याचिका दायर करने वाले मुसलमान थे। उनकी शिकायत थी कि उन्हें उनकी खुद की जमीन पर मस्जिद नहीं बनाने दी जा रही है। बहुत से मुसलमानों की शिकायत थी कि शुक्रवार की नमाज उन्हें सड़कों पर बैठकर करनी पड़ती है, क्योंकि उन्हें मस्जिद निर्माण करने की परमिशन नहीं दी जा रही है। उस वक्त राज्य सरकार ने अपना पक्ष रखते हुए यह कहा था कि मस्जिद के निर्माण के लिए जिला मजिस्ट्रेट से कोई अनुमति नहीं मिली थी। हमने 28 जनवरी 1999 को अपना फैसला सुनाया। फैसले में कहा गया कि यह आजाद, लोकतांत्रिक और धर्मनिरपेक्ष देश है और इसलिए मुसलमानों के पास अपनी जमीन पर मस्जिद बनाने का पूरा अधिकार है या फिर अगर कोई परमिशन देता है तो उसकी जमीन पर भी मस्जिद बनाने का पूरा हक है। इसके लिए डीएम की अनुमति की कोई जरूरत नहीं है।’
पूर्व न्यायाधीश ने आगे बताया कि इस फैसले से पूरे यूपी में आक्रोश फैल गया। उन्होंने कहा, ‘मुझे बाद में यह खबर मिली कि ‘लौह पुरुष’ इस फैसले से क्रोधित हैं और उनका कहना है कि मुझे इलाहाबाद हाईकोर्ट से हटाकर सिक्किम या फिर किसी अन्य रिमोट स्थान पर भेज दिया जाए, लेकिन फिर तत्कालीन प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी जी मेरे बचाव में आगे आए। उन्होंने कहा कि भले ही कोई व्यक्ति कोर्ट के फैसले से असहमत रहे, लेकिन हर किसी को न्यायपालिका की आजादी का सम्मान करना होगा। इलाहाबाद में अटलजी के एक एस्ट्रोलॉजर भी थे, जिनका सरनेम भी वाजपेयी ही था और जिन्हें मैं जानता था। अटलजी ने एस्ट्रोलॉजर को फोन किया और मेरे बारे में जानकारी ली। एस्ट्रोलॉजर ने मेरे पक्ष में बात कही और यह बात अटलजी के दिमाग में बैठ गई और फिर उन्होंने इस मामले में कोई एक्शन नहीं लिया। मैं इलाहाबाद में ही रहा। इस कहानी के बारे में मुझे एस्ट्रोलॉजर ने ही बाद में बताया, कुछ सालों पहले ही उनका निधन हुआ है।’