सरकार नीति में मुसलमान युवाओं को शरीक करे: क़ादरी
नई दिल्ली: देश में पहली बार मुस्लिम युवा छात्रों ने मिलकर राष्ट्रीय सुरक्षा नीति में उन्हें सम्मिलित कर सहयोग लेने की अपील की है। अगर भारत सरकार नहीं जानती है कि विश्व पर वहाबी ख़तरे का स्तर कितना विशाल है तो हम उन्हें बता सकते हैं। यह बात आज एक दिवसीय राष्ट्रीय सम्मेलन में उभरकर सामने आई जिसे भारत के सबसे बड़े मुस्लिम छात्र संगठन मुस्लिम स्टूडेंट्स ऑर्गेनाइज़ेशन ऑफ़ इंडिया यानी एमएसओ ने दिल्ली के कॉन्स्टिट्यूशन क्लब में आयोजित किया था।
इस मौक़े पर खचाखच भरे स्पीकर हॉल में युवाओं को संबोधित करते हुए मुख्य वक्ता और संगठन के पूर्व अध्यक्ष सैयद मुहम्मद क़ादरी ने कहाकि भारत एक बहुलवादी देश है और इसकी एकता को बनाए रखने के लिए युवा सबसे महती भूमिका निभा सकते हैं। प्राय देश में यह माहौल बनाया जा रहा है कि भारत का मुसलमान एक ज़िम्मेदार नागरिक नहीं है जबकि हमारा तो यह दावा है कि देश की राष्ट्रीय सुरक्षा नीति में शामिल किए जाने से मुस्लिम युवाओं की भूमिका का सही आंकलन हो सकेगा और राष्ट्रीय एकता के लिए यह आवश्यक तत्व है। उन्होंने कहाकि हम देश के निर्माण, प्रगति, सुरक्षा और स्थिरता को लेकर कई विकासवादी क़दम उठा सकते हैं। हमें गर्व है कि हमारे 38 वर्ष पुराने संगठन में यह कार्य बहुत ज़िम्मेदारी से निभाए जा रहे हैं। सैयद मुहम्मद क़ादरी ने उपस्थित युवाओं से अपील की कि वह देश को कमजोर करने वाली ताक़तों से डटकर मुकाबला करें और भारत की स्थिरता के लिए अपने प्राणों की बलि देने में भी पीछे नहीं रहें क्योंकि 1857 से लेकर 1947 तक चली 90 साल की क्रांति में मुसलमानों के बलिदान की बेशुमार कहानियाँ हैं और यह हमारे बुज़ुर्गों की सुन्नत है।
इस मौक़े पर तंज़ीम उलामा ए इस्लाम के अध्यक्ष और सभा के अध्यक्ष मुफ्ती अशफाक़ हुसैन क़ादरी ने कहाकि आज़ादी औऱ ज़िम्मेदारी एक ही शाख़ के दो फूल हैं। हमें नहीं भूलना चाहिए कि संभाल कर नहीं रखी गई आज़ादी गैर जिम्मेदारी के साथ ख़तरे में पड़ जाती है। हुसैन ने युवाओं को पैग़म्बर हज़रत मुहम्मद की कई उक्तियों और क़ुरान के संदर्भ में समझाने की कोशिश की कि देश के प्रति ज़िम्मेदारी और प्रेम का नाम ही राष्ट्र प्रेम है। मुफ्ती अशफाक़ हुसैन ने कहाकि देश और दुनिया को वहाबी विचारधारा से गंभीर ख़तरे हैं और तथाकथित इस्लामी आतंकवाद इसी वहाबी नीति का दुष्परिणाम है। अगर भारत सरकार समझना चाहे तो हम उनकी मदद कर सकते हैं लेकिन कम से कम मुसलमानों को साथ लेकर चलना पहले सीखे। उन्होंने कहाकि देश के साथ मुसलमान का प्रेम और बढ़ जाता है जबकि उसे नीति में भागीदारी मिले। नीति में भागीदारी को सत्ता में भागीदारी से बड़ा समझा जाना चाहिए क्योंकि सत्ता को नीति ही नियमित करती है। मुफ्ती अशफ़ाक़ हुसैन ने बताया कि हज़रत हुसैन ने मानवता की रक्षा के लिए अपने पवित्र प्राणों की बलि दे दी थी जो हमें राष्ट्र और मानवता के सेवा करने के लिए हमेशा प्रेरित करता रहेगा।
सभा में मुस्लिम स्टूडेंट्स ऑर्गेनाइज़ेशन ऑफ़ इंडिया के पूर्व अध्यक्ष मुफ्ती ख़ालिद अय्यूब मिस्बाही ने कहाकि देश की सुरक्षा के लिए महत्वपूर्ण तत्वों को बचाने, विकसित करने और संजोने के लिए युवाओं को प्रेरित करना आवश्यक है। यह देखा जाना चाहिए कि राष्ट्रीय सुरक्षा को लेकर युवाओं को देश को कमज़ोर करने वाली ताक़तों, विचारधाराओं, साज़िश और गतिविधियों को समझने, सूंघने और सुलझाने का प्रशिक्षण दिया जाना चाहिए। हमारे संगठन ने गौरवपूर्ण तरीक़े से इस चुनौती से निपटने के लिए युवाओं को वहाबी विचारधारा को समझने और इससे निपटने का प्रशिक्षण और शिक्षा दी जाती है। कई सफल प्रयोगों में हमने कई कट्टरवादी तत्वों को सूफ़ीवाद की विचारधारा की तरफ़ मोड़कर राष्ट्र के प्रति अपने कर्तव्य का निर्वहन किया है।
अलीगढ मुस्लिम यूनिवर्सिटी केरल सेंटर के शाहनवाज़ अहमद मलिक वारसी ने कहा कि देश में मानवाधिकार और सामाजिक न्याय के सम्मुख चुनौतियों से समाज में बहुत गंभीरता से विचार हो रहा है। मुसलमानों और दलित- जनजातियों को बेवजह निशाना बनाना चिंता का विषय है। उन्होंने कहा कि देश की मूल भावना और सामाजिक ताना बाना निहित राजनीतिक स्वार्थों से अतिरिक्त है। इस पर गंभीरता से विचार करके सामाजिक सौहार्द को बनाए रखने के प्रयासों और इसके लिए किए गए सूफ़ी आध्यात्मिक प्रयोगों पर चर्चा करना चाहिए। हमें गर्व है कि कई विश्वास, धर्म और नस्ल के लोगों के बीच भारतीय आध्यात्मिक सामाजिक समरसता के विचार को हमने सार्वजनिक किया है और इसके विकास, उत्थान और विस्तार के लिए हमको लगातार प्रयत्नशील रहना चाहिए, इसके लिए इंटरफेथ कॉन्फ्रेंस और सिम्पोज़ियम के बेशुमार कार्यक्रम किए जा चुके हैं और विश्वास है कि भविष्य में भी किए जाते रहेंगे।
सम्मलेन के संयोजक और कन्जुल इमान के एडिटर मौलाना ज़फरुद्दीन बरकाती ने कहाकि भारत का स्वभाव बहुलता में एकता में निहित है। इसलिए देश के सामने साम्प्रदायिक घटकों की चुनौती को कम करके नहीं आंका जा सकता। हर समुदाय को इससे निपटना चाहिए जिसमें मुसलमानों के बीच सबसे बेहतर सूफ़ी विचारधारा इसका निवारण प्रस्तुत करती है।
अम्बर मिस्बाही ने कहाकि हमें देश के प्रति जवाबदेही के लिए अन्तर सामाजिक कार्यक्रमों की आवश्यकता है क्योंकि देश में परस्पकर सामुदायिक अज्ञानता के अभाव में दूषित और असत्य जानकारी का आदान प्रदान किया जा रहा है। उन्होंने तकनीक के बेहतर इस्तेमाल करने और इसे समाज, देश और खुद को मज़बूत करने में इस्तेमाल किए जाने पर बल दिया।
मुस्लिम स्टूडेंट्स ऑर्गेनाइज़ेशन ऑफ़ इंडिया के अध्यक्ष शुजात अली क़ादरी ने कहाकि भारत का स्वभाव सामुदायिक है जिसे एक रंग, भाषा और सम्प्रदाय के तौर पर नहीं लाया जा सकता। हमें लगता है कि भारतीय मुस्लिम युवा जिसमें बहुमत सूफ़ी समुदाय का है, वह देश के प्रति अपनी ज़िम्मेदारियों को समझता है। उन्होंने कहाकि रोज़गार और कौशल प्रशिक्षण से उसे अपने साथ लाया जा सकता है। इस मौक़े पर एक रेंडम सर्वे के आधार पर शुजात क़ादरी ने युवाओं से कई सवाल पूछे जिसके प्रत्युत्तर में उन्होंने एक छह सूत्रीय प्रतिवेदन का प्रारूप तैयार किया जिसे बाद में डाक से भारत सरकार के नाम भेजा जाएगा।
इस मौक़े पर मुस्लिम स्टूडेंट्स ऑर्गेनाइज़ेशन ऑफ़ इंडिया ने सभा में उपस्थित लोगों के लिए छह सूत्रीय प्रतिवेदन पेश किया जिसमें देश की सुरक्षा, सामाजिक न्याय, आतंकवाद एवं कट्टरता से निवारण, रोज़गार एवं कौशल प्रबंधन, सामाजिक कार्यक्रम और पर्यावरण से जुड़े बिन्दुओं पर युवाओं को दिशा निर्देश दिए गए। इस मौक़े पर उपस्थित जनसमुदाय को यह प्रतिवेदन पढ़ कर सुनाया गया। सभी ने देश की नीति में मुस्लिम सूफ़ी युवाओं की भूमिका पर इस प्रतिवेदन को स्वीकार किया और इसे लागू किए जाने की भारत सरकार से अपील की।
सभा में कारी सगीर रिज़वी, मौलाना अब्दुल वाहिद, डॉ इमरान कुरैशी, MSO दिल्ली प्रदेश सचिव साकिब बरकाती, मुमताज़ अत्तारी, आफताब रिज़वी के साथ दिल्ली विश्वविद्यालय, जामिया मिल्लिया इस्लामिया, जवाहरलाल नेहरु विश्वविद्यालय के छात्र भी शामिल रहे और देश की सलामती और सद्भावना के लिए सभी ने कार्यक्रम के अंत में दुआ माँगी।