बच्चों में विश्वव्यापी समझदारी विकसित करनी चाहिए!
डा0 जगदीश गांधी, शिक्षाविद् एवं संस्थापक-प्रबन्धक, सिटी मोन्टेसरी स्कूल, लखनऊ
(1) बच्चों की विश्वव्यापी समझदारी विकसित करनी चाहिए :-
21वीं सदी की चुनौतियों का सामना करने के लिए आज के युग का ज्ञान तथा आज के युग की बुद्धिमत्ता की आवश्यकता है। सिटी मोन्टेसरी स्कूल अपने विभिन्न शैक्षिक कार्यक्रमों के प्रारम्भ में बच्चों की विश्व संसद का आयोजन करके बच्चों को विष्वव्यापी जानकारियाँ देता है। विश्व के अलग-अलग देशों के प्रतिनिधि बने बच्चों की प्रत्येक विश्व संसद का एजेण्डा अलग-अलग होता है। 21वीं सदी के बच्चों को एक दिन बड़े होकर निकट भविष्य में गठित होने वाली विष्व संसद में बैठना है। आज की इस बाल एवं युवा पीढ़ी को दुनियाँ की समस्याओं पर सर्वसम्मति से विचार करके उनके समाधान खोजने हैं। आतंकवाद जैसी विश्वव्यापी समस्याओं को युद्धों के द्वारा नहीं वरन् प्रभावशाली वर्ल्ड कानून से रोका जा सकता है। टोटल क्वालिटी मैनेजमेन्ट देने के लिए बालक को टोटल क्वालिटी मैनेजर बनाना होगा। ऐसा टोटल क्वालिटी मैनेजर यदि घर का हेड बन जाये तो घर को बढ़िया चला देगा। जिले का हेड बन जायें तो जिले को बढ़िया बना देगा। प्रान्त का हेड बन जायें तो प्रान्त की बढ़िया व्यवस्था कर देगा। देष का हेड बन जायें तो देष को खुशहाल बना देगा। विष्व का हेड बन जायें तो सारे विष्व की न्यायप्रिय विश्व व्यवस्था बना देगा।
(2) बच्चों को राष्ट्र भाषा के साथ ही विश्व भाषा अंग्रेजी का ज्ञान कराना चाहिए :-
आपसी सम्पर्क, विश्वव्यापी समझदारी तथा परामर्श के लिए संसार की एक विश्व भाषा चाहिए। संयुक्त राष्ट्र संघ ने छः भाषाओं अरबी, चीनी, अंग्रेजी, फ्रेन्च, ंरूसी एवं स्पेनिष को विश्व की सम्पर्क भाषाओं (लिंक लेंग्वेज) के रूप में स्वीकारा है लेकिन अंग्रेजी को छोड़कर शेष पांच भाषायें अपने देष में ही सिमटकर रह गयी। अंग्रेजी अब विदेशी भाषा नहीं रही है। अंग्रेजी विष्व भाषा के रूप में सारे विश्व में फैल गयी है। अंग्रेजी आज तकनीकी, संचार, आधुनिक चिकित्सा, इण्टरनेट, कम्प्यूटर की भाषा भी बन गयी है। संसार के सभी बच्चों को अपनी राष्ट्र भाषा के साथ ही विश्व भाषा अंग्रेजी का बचपन से ही अच्छा ज्ञान कराना चाहिए। ताकि वे विश्व भर में बोली तथा समझी जाने वाली विश्व भाषा अंग्रेजी में आपस में परामर्श करके ज्ञान-विज्ञान के आदान-प्रदान के साथ ही विश्व एकता तथा विश्व शान्ति का सन्देष व्यापक रूप से फैला सके।
(3) 20वीं सदी की शिक्षा के परिणाम दुखदायी रहे हैं :-
हम सबको मिलकर मानव-जाति का भाग्य सवारना है। जाति-धर्म तथा संकुचित राष्ट्रीयता के नाम पर एक-दूसरे से नफरत करने का परिणाम बड़ा विनाषकारी होता है। इसी प्रकार यह सभी जानते हैं कि दो राष्ट्रां या अनेक राष्ट्रों के बीच युद्ध का परिणाम कितना विनाशकारी होता है। षान्ति में ही विकास होता है तथा बच्चों का भविष्य सुरक्षित होता है। यह पृथ्वी अपना घर है इसे सुन्दर बनाना है। 20वी सदी की षिक्षा ने संकुलित राष्ट्रीयता पैदा की थी जिसके दुखदायी परिणाम दो विश्व युद्धों, हिरोशिमा व नाकासाकी का महाविनाश तथा राष्ट्रों के बीच अनेक युद्धों के रूप में सामने आये। प्रतिवर्ष 155 देषों का रक्षा बजट बहुत तेजी से बढ़ रहा है। इस पर सभी देशों को मिल-बैठकर विचार करना चाहिए। आतंकवाद तथा पड़ोसी देशों से देश को सुरक्षित करने के लिए शान्ति प्रिय देश भारत को भी अपना रक्षा बजट प्रतिवर्ष बढ़ाना पड़ रहा है। दुनियाँ में आंठवे नम्बर पर रक्षा बजट भारत का है। हम जैसे गरीब देष रक्षा बजट के मामले में जर्मनी आदि देषों से आगे हैं। युद्ध तथा युद्धों की तैयारी में हजारों करोड़ डालर विश्व में प्रतिदिन खर्च हो रहे हैं। शान्ति पर कुछ भी खर्चा नहीं आता है। युद्धों तथा युद्धों की तैयारी से पैसा बचाकर इस पैसे से संसार के प्रत्येक बच्चे के लिए शिक्षा, सुरक्षा, चिकित्सा, रोटी, कपड़ा और मकान की अच्छी व्यवस्था की जा सकती है।
(4) 21वीं सदी की शिक्षा विश्वव्यापी होनी चाहिए :-
युद्ध के विचार मानव मस्तिष्क में उत्पन्न होते हैं। मनुष्य के विचार ग्रहण करने की सबसे श्रेष्ठ अवस्था बचपन है। मानव मस्तिष्क में शान्ति के विचार बचपन से ही डालना होगा। 21वीं सदी की षिक्षा ऐसी होनी चाहिए जो बालक को सारे विष्व से प्रेम करने के विश्वव्यापी दृष्टिकोण को विकसित करें। हम बड़ी उम्र के लोगों की जिम्मेदारी हैं कि संसार से जाने के पूर्व हमें विश्व के बच्चों को सुरक्षित भविष्य देकर जाना चाहिए। एकता तथा शान्ति से ओतप्रोत उद्देश्यपूर्ण शिक्षा ही इसका एकमात्र समाधान है। सारे विष्व की एक षिक्षा प्रणाली हो। विश्व एकता की शिक्षा इस युग की सबसे बड़ी आवष्यकता है। यह पृथ्वी पूरी की पूरी हमारे परमात्मा की है। परमात्मा की बनायी पृथ्वी अपनी ही है। यह परायी नहीं है। यह विष्व परिवार हमारे परमात्मा का है। सारे विश्व की एक न्यायपूर्ण विश्व व्यवस्था बनाकर आध्यात्मिक साम्राज्य स्थापित करना है।