नई दिल्ली: सुप्रीम कोर्ट ने बुधवार को फैसला दिया कि एडल्ट्री यानी व्याभिचार को महिलाओं के लिए अपराध नहीं बनाया जा सकता. मुख्य न्यायाधीश दीपक मिश्रा की अध्यक्षता वाली बेंच ने यह भी कहा कि वह इस पर भी विचार करेगी कि एडल्ट्री को अपराध बनाए रखना चाहिए या नहीं.

सुप्रीम कोर्ट ने यह साफ किया है वह आईपीसी की धारा 497 के उस हिस्से से छेड़छाड़ नहीं करेगा जिसके तहत किसी और की पत्नी के साथ अवैध संबंध रखने वाले पुरुष को दोषी बनाया जाता है.

बेंच ने आगे कहा कि वह इस बात की जांच करेगी कि आईपीसी की यह धारा कहीं 'समानता के अधिकार' का उल्लंघन तो नहीं करती है क्योंकि इसके तहत व्याभिचार करने वाली महिला को कानून के तहत सजा देने का कोई प्रावधान नहीं है.

इस मामले में केंद्र सरकार ने शपथपत्र दिया था कि IPC की धारा 497 और CPC की धारा 198(2) को खत्म करने का सीधा असर भारत की संस्कृति पर पड़ेगा जोकि शादी की संस्था और उसकी पवित्रता पर जोर देता है.

पिछले साल दिसंबर में सुप्रीम कोर्ट की बेंच ने केंद्र सरकार को धारा 497 की वैधता के संबंध में नोटिस भेजते हुए कहा था कि यह कानून बेहद प्राचीन लगता है और यह महिला को पुरुष के समकक्ष नहीं मानता है. हालांकि केंद्र ने अपने शपथपत्र में कहा कि धारा 497 एक उचित प्रावधान है और इसका होना अनिवार्य है.

केरल के रहने वाले जोसेफ शीने से सुप्रीम कोर्ट में पीआईएल दाखिल की थी कि कोर्ट को धारा 497 की वैधता पर फिर से विचार करना चाहिए क्योंकि यह लिंग के आधार पर भेदभाव करने वाला है.

पीआईएल में कहा गया, 'क्या एक रिश्ते में पुरुष ही एकमात्र सिड्यूसर (बहकाने वाला) हो सकता है? क्या एक महिला एडल्ट्री में लिप्त नहीं हो सकती है? क्या किसी की पत्नी के साथ शारीरिक संबंध बनाने पर सिर्फ पुरुष को ही जेल होनी चाहिए? क्या पति से रिश्ते की सहमति मिलने के बाद प्रेमिका को बरी किया जा सकता है? और क्या शादी से बाहर रिश्ते के लिए पति की सहमति एक महिला को महज एक इस्तेमाल की वस्तु नहीं बना देता है?'

धारा 497 एडल्ट्री यानी शादी से बाहर संबंधों से जुड़ा है. इसके तहत यदि एक पुरुष किसी और की पत्नी से संबंध बनाता है तो वह अपराधी माना जाएगा और उसे 5 साल तक की सजा हो सकती है. जबकि पत्नी को न ही आरोपी माना जाएगा और न ही उसे कोई सजा होगी.