1947 के समझौते का सम्मान होता तो कश्मीर में हालात ऐसे नहीं होते: उमर अब्दुल्ला
नई दिल्ली: जम्मू कश्मीर के पूर्व मुख्यमंत्री और नेशनल कॉन्फ्रेंस के नेता ने उमर अब्दुल्ला ने घाटी में हो रही हिंसक घटनाओं के पीछे बड़ा कारण बताया है। उन्होंने कोलकाता में एक कार्यक्रम में कहा कि अगर 1947 के समझौते का सम्मान होता तो जम्मू कश्मीर में ऐसे हालात नहीं होते। अब्दुल्ला ने कहा, ‘इतिहास सवालों से भरा हुआ है, लेकिन अगर हम 1947 में जम्मू कश्मीर को लोगों और यूनियन के बीच हुए समझौते का सम्मान करते तो हमें आज जम्मू कश्मीर में खून-खराबा नहीं होता। हमारे पड़ोसियों ने हमारी जिंदगी बहुत कठिन बना दी है।’
इसके अलावा उन्होंने कहा कि इस वक्त भारत उतना मजबूत देश नहीं है, जितना उसे होना चाहिए। उमर ने कहा, ‘एक मजबूत देश के लिए मजबूत यूनियन का होना बहुत जरूरी होता है, लेकिन यूनियन राज्यों को दाव में लगाकर मजबूत नहीं बन सकता। ऐसा कहां कहा जाता है कि एक मजबूत यूनियन के लिए कमजोर राज्य होने चाहिए? आपका यूनियन तभी मजबूत होगा, जब आपके राज्य मजबूत होंगे। आज भारत उतना मजबूत नहीं है जितना उसे होना चाहिए। हम लोग बहुत सी परेशानियों का सामना कर रहे हैं, जैसे कई राज्यों में नक्सल की समस्या है, नॉर्थ ईस्ट और जम्मू कश्मीर में भी समस्या है। कमजोर राज्य यूनियन को उतनी प्रगति से आगे नहीं बढ़ने दे रहे हैं, जितना कि होना चाहिए।’
कोलकाता के इस कार्यक्रम के बाद मीडिया से रूबरू होते हुए पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी के फेडरल फ्रंट में शामिल होने के प्रस्ताव पर अब्दुल्ला ने कहा कि इस बारे में चर्चा की जा रही है कि आम चुनावों में किस तरह से क्षेत्रीय पार्टियां बीजेपी का सामना कर सकती हैं। उन्होंने कहा, ‘ममता दीदी के प्रस्ताव का जो आपने सवाल किया है, हम उस पर चर्चा कर रहे थे कि किस तरह से क्षेत्रीय पार्टियां एक होकर आम चुनाव में बीजेपी का सामना करेंगी। विपक्ष के एकजुट होने का प्रयास तब तक सफल नहीं होंगा जब तक कांग्रेस हमारी उम्मीद के मुताबिक बीजेपी से लड़ने के लिए तैयार नहीं हो जाती। विपक्ष की एकता पर चर्चा की जा रही है, आपने देखा होगा कि सोनिया गांधी द्वारा विपक्षी पार्टियों को एकजुट करने के लिए बहुत से प्रयास किए जा चुके हैं। जैसा कि हम आम चुनावों के करीब आ रहे हैं तो मुझे विश्वास है कि बड़ा कदम जरूर उठाया जाएगा।’