उपनिवेशवाद विरोधी दिवस के रूप में मनी आजाद जयंती

लखनऊ: अमर क्रांतिकारी चन्द्रशेखर आजाद की जयंती को उपनिवेशवाद विरोधी दिवस के रूप में मनाया गया। इस उपलक्ष्य में आयोजित परिचर्चा को संबोधित करते हुए वरिष्ठ समाजवादी नेता शिवपाल सिंह यादव ने कहा कि चन्द्रशेखर आजाद उननिवेशवाद के घोर विरोधी एवं समाजवाद के प्रतिबद्ध व प्रबल पैरोकार थे। उन्होंने भगत सिंह, राजगुरू, सुखदेव, भगवतीचरण वोहरा सदृश क्रांतिधर्मी युवाओं के साथ मिलकर हिन्दुस्तान समाजवादी गणतांत्रिक संघ का गठन किया और संस्थापक अध्यक्ष बने। “समाजवाद“ के नाम पर भारत में प्रथम संगठन बनाने का श्रेय चन्द्रशेखर को ही जाता है। आजाद के समाजवाद सम्बन्धित रोमानी सपने को बाद में राममनोहर लोहिया ने सैद्धांतिक रूप दिया। बहुत कम लोगों को पता है कि आजाद से प्रभावित होकर ही राममनोहर लोहिया ने बयालिस की क्रांति के दौरान “आजाद दस्ता“ का गठन किया था ताकि भारत में चल रही आजादी की लड़ाई कुंद न हो। आजाद आजादी के पश्चात् जैसा भारत चाहते थे, वैसे भारत का निर्माण नहीं हो सका। चन्द्रशेखर के स्वप्न आज भी अधूरे हैं। वैश्विक उपनिवेशवाद के कारण आज भी भारत व हिन्दी को यथोचित सम्मान नहीं मिला। भारत संयुक्त राष्ट्र संघ सुरक्षा परिषद की स्थाई सदस्यता एवं हिन्दी संयुक्त राष्ट्र संघ की आधिकारिक भाषा की दर्जा से वंचित है, जबकि यूएनओ की स्थापना और भारत की आजाद हुए सात दशक बीत चुके हैं। श्री यादव ने संयुक्त राष्ट्र संघ के महासचिव एण्टानियो को साधुवाद देते हुए कहा कि हिन्दी में यूएनओ द्वारा खतोकिताबत शुरू करने, ट्वीटर व फेसबुक पर आने से हिन्दी का वैश्विक सम्मान बढ़ा है किन्तु आधिकारिक दर्जा प्राप्त होने तक दीपक मिश्र के संयोजन में समाजवादी सतत् संघर्ष जारी रखेंगे। जो लोग समाजवाद नहीं जानते, भारत व समाजवादी आंदोलन के इतिहास को नहीं जानते वही लोग “समाजवादी“ शब्द को हटाने की बात करते हैं। उन्हें आजाद के समाजवाद को पढ़ना चाहिए। समाजवाद के शत्रु दरअसल आजाद के विरोधी है।
बौद्धिक व चिन्तन सभा के राष्ट्रीय अध्यक्ष समाजवादी चिन्तक दीपक मिश्र ने कहा कि देश के इतिहासकारों व बुद्धिजीवियों ने चन्द्रशेखर आजाद के साथ काफी अन्याय किया है। उनकी विचारधारा एवं वैचारिक अवदान पर कभी भी विमर्श नहीं किया। रोमानी क्रांतिकारी, देशभक्त, शहीद व संगठक होने के अलावा आजाद एक चिन्तक, ज्ञानी, संस्कृतज्ञ एवं समाजवाद के शोध-अध्येता भी थे। उनके इस पहलू पर कभी ईमानदारी से बात नहीं की गई। आई.जी. कालिन्स के अनुसार वे अपने झोले मे तमंचे के साथ-साथ पुस्तक भी रखते थे। “भगवत गीता“, “अमेरिका को आजादी कैसे मिली“, कम्युनिस्ट मैनीफेस्टो“ एवं “बंदी जीवन“ उनकी प्रिय पुस्तकें थीं। उनके वैचारिक अवदान पर बौद्धिक सभा शीघ्र ही अभियान चलायेगी और आजाद की समाजवादी अवधारणाओं पर संगोष्ठियों व परिचर्चाओं का आयोजन करेगी। आजाद के जीवन दर्शन से सैद्धान्तिक प्रतिबद्धता व सतत् संघर्ष की प्रेरणा मिलती है। आजाद की मूर्ति बना पूजने से बेहतर है कि आजाद की वैचारिक विरासत को लोहिया की तरह आगे बढ़ाया जाये।
कार्यक्रमोपरान्त मौलाना अख्तर रज़ा व महाकवि गोपालदास नीरज को दो मिनट मौन रहकर श्रद्धांजलि दी गई। श्री यादव ने दोनों विभूतियों को याद करते हुए कहा कि अंतिम प्रयाण के एक हफ्ते पहले मौलाना ने उनके सर पर हाथ रख आशीर्वाद दिया था जो उनके लिए गौरव की बात है। नीरज को मरणोपरान्त केन्द्र सरकार सर्वोच्च नागरिक सम्मान “भारत-रत्न“ से विभूषित करे।
परिचर्चा में समाजवादी युवजन सभा के पूर्व अध्यक्ष अभिषेक सिंह “आशू“, नवाब अली अकबर, प्रकाश यादव, संगीता यादव, दिनेश त्रिपाठी, देवी प्रसाद यादव समेत कई बुद्धिजीवियों व समाजवादियों ने भाग लिया।