हिन्दी को आधिकारिक दर्जा दे यूएनओ: दीपक
लखनऊ: समाजवादी चिन्तक, बौद्धिक व चिन्तन सभा के राष्ट्रीय अध्यक्ष एवं इण्टरनेशनल सोशलिस्ट काउन्सिल के सचिव दीपक मिश्र ने संयुक्त राष्ट्र संघ से हिन्दी को आधिकारिक भाषा का दर्जा देने की मांग की है। उन्होंने दिल्ली स्थित संयुक्त राष्ट्र संघ दूतावास जाकर संयुक्त राष्ट्र संघ के महासचिव एण्टानियो मैनुअल डी ओलिविरा गुतेरस को संबोधित हिन्दी की उपेक्षा से सम्बन्धित पत्रक यूएनओ के भारत में प्रतिनिधि यूरी अफनासिएव के माध्यम से सौंपा। इसके बाद संयुक्त राष्ट्र संघ ने ट्विटर पर हिन्दी सेवा प्रारम्भ किया। अपने तिहत्तर साल के इतिहास में पहली बार यूएनओ कोई अथवा किसी भी प्रकार का संवाद हिन्दी में किया है। श्री मिश्र ने इसका श्रेय राष्ट्र संघ के महासचिव एण्टानियो गुतेरस की समाजवादी सोच को देते हुए धन्यवाद दिया है। श्री मिश्र के अनुसार श्री गुतेरस सोशलिस्ट इण्टरनेशनल के अध्यक्ष रह चुके हैं, वे हर प्रकार के उपनिवेशवाद के प्रतिबद्ध विरोधी हैं। हिन्दी पिछले 73 साल से यूएनओ द्वारा उपेक्षित है। ट्विटर पर यूएनओ का हिन्दी में आना एक सांकेतिक विजय व शुभ संकेत है किन्तु आधिकारिक भाषा का दर्जा हिन्दी का नैतिक व लोकतांत्रिक अधिकार है। वैश्विक आँकड़ों द्वारा सर्वविदित है कि हिन्दी 410 मिलियन लोगों की मातृ अथवा प्रथम एवं सवा सौ मिलियन लोगों की द्वितीय भाषा है। अरबिया, फ्रेंच, रसिया जैसी कम विस्तार वाली भाषाओं को यूएनओ में आधिकारिक महत्व प्राप्त है किन्तु हिन्दी को नहीं। श्री मिश्र ने बताया कि हिन्दी को विश्व सरकार में राजकाजी सम्मान दिलाने की लड़ाई का सूत्रपात महात्मा गाँधी की वैचारिक प्रेरणा से महान स्वतंत्रता संग्राम सेनानी व समाजवादी चिन्तक राममनोहर लोहिया ने साठ के दशक में किया था जिसे हम समाजवादी लोग पूरी निष्ठा से आगे बढ़ाने के लिए कटिबद्ध हैं। इस अभियान को कई देशों के प्रमुख रातनेताओं व बुद्धिजीवियों का खुला समर्थन मिल रहा है। श्री मिश्र का कहना है कि संयुक्त राष्ट्र संघ साधारण सभा की धारा 51 व सुरक्षा परिषद कार्यवाही अधिनियम की धारा 41 में व्यापक संशोधन का समय आ गया है। भारतीय सांस्कृतिक अस्मिता की प्रतीक व प्रतिनिधि हिन्दी की अब और अधिक उपेक्षा बर्दाश्त नहीं किया जायेगा।
समाजवादी चिन्तक श्री मिश्र के अनुसार हमारा अभियान किसी भाषा के विरोध में नहीं अपितु हिन्दी व भारतीय भाषाओं के समर्थन में है। लोहिया भी अंग्रेजी विरोधी नहीं थे, लोकतंत्र की मजबूती के लिए लोकभाषाओं के समर्थक थे। उनके द्वारा लोकभाषा के समर्थन में चलाई गई बहस “अंग्रेजी विरोध“ बन गई। ऐसा कुछ लोहियावादियों की ही गलती से हुआ। लोहिया के मणिपुर सत्याग्रह के सहयोगी रीशांग कीशिंग से संवाद के बाद इस संदर्भ में मेरा ही भ्रम टूटा। केन्द्र सरकार को आड़े हाथों लेते हुए श्री मिश्र ने कहा कि हिन्दी व भारत को वैश्विक पटल पर मजबूत करने के परिप्रेक्ष्य मोदी-सरकार का रवैया घुटनाटेकू व उदासीन है। गत चार वर्षों में हिन्दी को उसका सम्मान व भारत को सुरक्षा परिषद की स्थाई सदस्यता दिलाने के लिए श्री मोदी व सुषमा जी ने चार कदम भी सलीके से उठाना तो दूर चार शब्द तक नहीं बोला। अभी तक दोनों को यूएनओ की ट्विटर पर हिन्दी सेवा के पक्ष में दो शब्द भी लिखने की फुर्सत नहीं मिली। उनके लिए “हिन्दी व हिन्दुस्तान“ महज एक चुनावी नारा है जो चुनाव खत्म होते ही अपनी प्रासंगिकता खो देता है।
श्री मिश्र ने सभी भारतीयों व हिन्दी भाषियों से UnitedNationsHindi (@UNinHindi) को फॉलो कर हिन्दी के साथ खड़े होने की अपील की है। श्री मिश्र ने कहा कि हिन्दी को आधिकारिक दर्जा, भारत को सुरक्षा परिषद की स्थाई सदस्यता दिलाने व वीटो हटाने के लिए चलाए जा रहे वैश्विक हस्ताक्षर को काफी समर्थन मिल रहा है।