ईकाॅमर्स मार्केटप्लेस माॅडल ही भारतीय लघु व मध्यम उद्यमों को विश्व स्तर पर पहुंचा सकता है-एम.पी. शोरावाला
हम सभी इससे वाकिफ हैं कि किस तरह से वैश्वीकरण ने सम्पत्ति के निर्माण, रहन-सहन के स्तर में सुधार में योगदान दिया है और विभिन्न प्रकार की वस्तुओं की खपत को मुमकिन किया है, रोजगार पैदा किया है और विभिन्न अर्थव्यवस्थाओं में आय का अभिसरण (कन्वर्जेंस) संभव हुआ है। हालांकि शुरुआत में इससे तत्काल तो बड़े व्यापार समूहों को लाभ मिला लेकिन अब इसका फोकस लघु व मध्यम उद्यमों की तरफ शिफ्ट होने का वक्त आ गया है। अधिकांश देशों में अर्थव्यवस्था का सबसे बड़ा सैगमेंट लघु व मध्यम उद्यमों का ही है।
एम.पी. शोरावाला,पूर्व निदेशक, सेंट्रल बैंक आॅफ इंडिया बोर्ड, मुंबई, पूर्व निदेशक, कंटेनर काॅर्पोरेशन आॅफ इंडिया बोर्ड, नई दिल्ली के अनुसार भारतीय संदर्भ में लघु व मध्यम उद्यमों पर फोकस और ज्यादा अहम हो जाता है क्यों.कि इस सैगमेंट का चहुंमुखी असर होता है जिसमें रोजगार उत्पन्न होने से लेकर नवोन्मेष की वृद्धि तक बहुत कुछ शामिल है। साथ ही पर्यावरणीय संवहनीयता को हासिल करने की कोशिशों के केन्द्र में भी लघु व मध्यम उद्योग रहते हैं और इनकी वजह से समावेशी विकास होता है जिसकी देश को बहुत जरूरत है।
इंटरनैट ने लघु व मध्यम उद्यमों को सशक्त किया है कि वे ज्यादा बड़े बाजारों में बिक्री कर सकें और अपने व्यापार को ज्यादा तेज गति से बढ़ा सकें। अब जब 80 प्रतिशत से अधिक वैश्विक व्यापार ग्लोबल सप्लाई चेनों के माध्यम से हो रहा है, तो एजेंडा यह होना चाहिए कि इन ’ग्लोबल वैल्यू चेनों’ तक लघु व मध्यम उद्योगों की पहुंच को किस तरह से सुगम किया जाए। सफल लघु व मध्यम उद्यम अमेज़न, फ्लिपकार्ट जैसे ईकाॅमर्स प्लैटफाॅर्मों से जुड़ रहे हैं; ये प्लैटफाॅर्म लघु व मध्यम उद्योगों के उत्पादों के लिए देश-विदेश में बड़े बाजारों की राह खोल रहे हैं।
ईकाॅमर्स मार्केटप्लेस प्लैटफाॅर्म लघु व मध्यम उद्यमों के विक्रेताओं के दृष्टिकोण से अधिकतम योगदान करता है, यह उन्हें उनकी पेशकशों के लिए व्यापक पहुंच एवं तुरंत विश्वसनीयता प्रदान करता है। यह लघु व मध्यम उद्यमों को सुविधा देता है कि वे अपने मूल कार्य पर ध्यान केन्द्रित करें और निरंतर इनोवेशन करते हुए खुद को खरीददार के नजरिए से विशिष्ट तथा प्रासंगिक बनाए रखें।
जैसा कि ईबे के मामले में है, चुनिंदा एपीईसी अर्थव्यवस्थाओं में, इसके पंजीकृत आॅनलाइन विक्रेता दुनिया भर में निर्यात करने में सक्षम हैं, जबकि इसके मुकाबले परम्परागत (आॅफलाइन) कारोबार में लघु व मध्यम उद्योगों का प्रतिशत कम है। यूएस में 95 प्रतिशत आॅनलाइन विक्रेता निर्यात करते हैं जबकि आॅफलाइन कारोबार करने वाले लघु व मध्यम उद्यमों में 5 प्रतिशत से कम निर्यात करते हैं।