बाबरी मस्ज़िद को ‘हिन्दू तालिबान’ ने ढहाया: मुस्लिम पक्षकार
सुप्रीम कोर्ट में बहस जारी, अगली सुनवाई 20 जुलाई को
नई दिल्ली: अयोध्या रामजन्म भूमि विवाद मामले में अब 20 जुलाई को भी सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई जारी रहेगी. सीजेआई दीपक मिश्रा की अध्यक्षता वाली 3 जजों की पीठ में शुक्रवार को हुई सुनवाई में यूपी शिया सेन्ट्रल वक़्फ़ बोर्ड ने अपना पक्ष रखते हुए कहा कि बाबरी मस्जिद को मीर बाक़ी ने बनाया था जो एक शिया थे. ऐसे में शिया वक़्फ़ बोर्ड के पास ही सही मायने में उसका अधिकार होना चाहिए. और देश में एकता, शांति और सद्भावना बनाए रखने के लिए वो अपना एक तिहाई हिस्सा राम मंदिर बनाने के लिए देने के पक्ष में हैं.
बोर्ड ने मस्जिद को इस्लाम का अभिन्न हिस्सा न मानने वाले इस्माइल फारुखी फ़ैसले के अंश को पुनर्विचार के लिए संविधान पीठ को भेजने का विरोध किया. वहीं दूसरी ओर सुन्नी वक़्फ़ बोर्ड और मुस्लिम पक्षकारों की ओर से पेश वकील राजीव धवन ने दलील दी कि अफगानिस्तान के बमियान में गौतम बुद्ध की मूर्ति को मुस्लिम तालिबान ने ख़त्म किया, वहीं बाबरी मस्ज़िद को 'हिन्दू तालिबान' ने खत्म किया. मूल अपीलकर्ता जमीयत उलेमा हिन्द के एम सिद्दीक़ी की ओर से वकील राजीव धवन इस्माइल फारुखी केस के अंश को पुनर्विचार के लिए संविधान पीठ को भेजे जाने के लिए बहस की.
पिछली सुनवाई में उत्तर प्रदेश सरकार ने मुस्लिम पक्ष पर अयोध्या राम जन्मभूमि मालिकाना हक मामले की अपीलों की सुनवाई लटकाने का आरोप लगाया था. प्रदेश सरकार की ओर से पेश एडीशनल साॅलिसिटर जनरल (एएसजी) तुषार मेहता ने 1994 के इस्माइल फारुखी फैसले में मस्जिद को इस्लाम का अभिन्न हिस्सा न मानने के अंश को पुनर्विचार के लिए संविधान पीठ को भेजने की मुस्लिम पक्ष की मांग का विरोध किया था. मेहता ने कहा था कि इतने दिन बाद इस तरह की मांग उठाना ठीक नहीं है इससे इन लोगों की मंशा पता चलती है.
अयोध्या जन्मभूमि मालिकाना हक के मामले की अपीलें सुनवाई के लिए पूरी तरह तैयार हैं लेकिन ये लोग उसे लटकाने का प्रयास कर रहे हैं. हलांकि मुस्लिम पक्ष की ओर से राजीव धवन ने कहा कि मस्जिद इस्लाम का अभिन्न हिस्सा है और इस्माइल फारुखी फैसले में की गई टिप्पणी गलत है इसलिए उस फैसले को पुनर्विचार के लिए संविधान पीठ को भेजा जाना चाहिए. अयोध्या रामजन्मभूमि मालिकाना हक मामले में इलाहाबाद हाईकोर्ट के फैसले के खिलाफ कुल 13 अपीलें 2010 से सुप्रीम कोर्ट मे लंबित है लेकिन औपचारिक रूप से अभी तक मुख्य अपीलों पर सुनवाई शुरू नहीं हुई है.
अयोध्या केस में सुप्रीम कोर्ट फिलहाल विचार कर रहा है कि नमाज के लिए मस्जिद को इस्लाम का जरूरी हिस्सा न बताने वाले इस्माइल फारुकी के फैसले पर पुनर्विचार की जरूरत है या नहीं. इससे पहले मुस्लिम पक्षकारों ने फैसले में दी गई व्यवस्था पर सवाल उठाते हुए मामले को पुनर्विचार के लिए बड़ी पीठ को भेजे जाने की मांग की थी.
दरअसल, सुप्रीम कोर्ट की पांच न्यायाधीशों की संविधान पीठ ने 1994 में अयोध्या में भूमि अधिग्रहण को चुनौती देने वाले डाक्टर एम. इस्माइल फारुकी के मामले में 3-2 के बहुमत से दी गई व्यवस्था में कहा था कि नमाज के लिए मस्जिद इस्लाम धर्म का अभिन्न हिस्सा नहीं है. मुसलमान कहीं भी नमाज अदा कर सकते हैं. यहां तक कि खुले में भी नमाज अदा की जा सकती है. ये बात फैसले के पैराग्राफ 82 में कही गई है. मुस्लिम पक्षकार एम. सिद्दीकी के वकील राजीव धवन ने गत 5 दिसंबर को इस फैसले पर सवाल उठाते मामला पुनर्विचार के लिए संविधान पीठ को भेजे जाने की मांग की है.