निर्भया केस के तीन दोषियों की पुनर्विचार याचिका खारिज, फांसी बरकरार
नई दिल्ली: सुप्रीम कोर्ट ने दिसंबर 2012 के सनसनीखेज निर्भया सामूहिक बलात्कार काण्ड और हत्या के मामले में फांसी के फंदे से बचने का प्रयास कर रहे तीन दोषियों की पुनर्विचार याचिकाएं खारिज कर दीं. शीर्ष अदालत ने कहा कि इस मामले में पुनर्विचार का कोई मामला नहीं बनता है. प्रधान न्यायाधीश दीपक मिश्रा, न्यायमूर्ति आर भानुमति और न्यायमूर्ति अशोक भूषण की तीन सदस्यीय खंडपीठ ने दोषी मुकेश (31), पवन गुप्ता (24) और विनय शर्मा (25) की पुनर्विचार याचिकाएं खारिज करते हुए कहा कि पांच मई 2017 के उसके फैसले पर पुनर्विचार करने का कोई आधार नहीं है.
शीर्ष अदालत ने कहा कि जिन दोषियों को मौत की सजा सुनाई गई है वे उसके निर्णय में साफ तौर पर कोई भी त्रुटि सामने रखने में विफल रहे हैं. न्यायालय ने कहा कि दिल्ली उच्च न्यायालय के फैसले के खिलाफ दायर अपील पर सुनवाई के दौरान तीनों दोषियों का पक्ष विस्तार से सुना गया था और अब मौत की सजा बरकरार रखने के शीर्ष अदालत के निर्णय पर पुनर्विचार के लिये कोई मामला नहीं बनता है.
पीठ ने कहा, ‘इन पुनर्विचार याचिकाओं में, फैसले पर फिर से विचार करने का कोई आधार नहीं बनता. इसलिए हमें इन पुनर्विचार याचिकाओं में कोई गुण नहीं मिला और पुनर्विचार याचिकाओं को खारिज किया जाता है.’ इस सनसनीखेज अपराध में चौथे मुजरिम अक्षय कुमार सिंह (33) ने मौत की सजा के निर्णय पर पुनर्विचार के लिये याचिका दायर नहीं की थी.
राजधानी में 16 दिसंबर, 2012 को हुए इस अपराध के लिए निचली अदालत ने 12 सितंबर 2013 को चार दोषियों को मौत की सजा सुनाई थी. इस अपराध में एक आरोपी राम सिंह ने मुकदमा लंबित होने के दौरान ही जेल में आत्महत्या कर ली थी जबकि छठा आरोपी एक किशोर था. दिल्ली उच्च न्यायालय ने 13 मार्च 2014 को दोषियों को मृत्यु दण्ड देने के निचली अदालत के फैसले की पुष्टि कर दी थी. इसके बाद, दोषियों ने शीर्ष अदालत में अपील दायर की थीं जिन पर न्यायालय ने पांच मई 2017 को फैसला सुनाया था.
शीर्ष अदालत के फैसले पर प्रतिक्रिया देते हुए आज 23 साल की मृतक के माता पिता ने कहा कि न्यायपालिका में उनका भरोसा फिर से पैदा हुआ है और उन्हें न्याय मिलने की आशा है. मृतक की मां आशा देवी ने कहा, ‘अपने फैसले को बरकरार रखने वाले उच्चतम न्यायालय ने इस तरह के जघन्य अपराध करने वालों के लिए कड़ा संदेश दिया है. न्यायपालिका में हमारा भरोसा फिर से पैदा हुआ है. मैं प्रधानमंत्री से लड़कियों और महिलाओं के साथ अत्याचार के खिलाफ ठोस कदम उठाने की अपील करती हूं.’
आरोपियों में शामिल नाबालिग को एक किशोर न्याय बोर्ड ने दोषी ठहराया था. उसे तीन साल के बाद सुधार गृह से रिहा कर दिया गया था.